बडदिया सुरता से बरास्ते जंगल बडेल

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दिनांक 04 जून

प्रेमसागर के कमर में दर्द था। गांव के प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर की डाक्टर रेखा पण्डित जी ने उन्हें दवायें भी थी थीं और इंजेक्शन भी लगाया था। रेखा पण्डित शायद प्रेम बाबाजी से प्रभावित थीं। उन्होने कम्पाउंडर को इंजेक्शन नहीं लगाने दिया, खुद लगाया। बोला – तुम नहाये नहीं होगे, बाबाजी अशुद्ध हो जायेंगे।

रात में गांव के नर्मदा अन्न क्षेत्र में रुकने पर प्रेमसागर का मन था कि एक दिन और रुक कर आराम कर लिया जाये। कमर और पीठ का दर्द भी उससे ठीक हो जाता। पर अगले दिन आश्रम के कर्ताधर्ता ने प्रेमसागर से पूछ लिया – आप आज जायेंगे न? पूछने की टोन से प्रेमसागर को लगा कि उनका रुकना कर्ताधर्ता जी को अच्छा नहीं लगेगा। वे वहां से चल दिये। सात किलोमीटर दूर बड़वाह में उन्हें रुकने का स्थान मिलने की आशा थी।

पर बड़वाह में भी उन्हें जगह नहीं मिली। एक दर्जन साधू लोग वहां पहले ही डेरा जमा लिये थे। वे शायद चौमासा भर रुकने जा रहे थे। उसके आगे सात किलोमीटर और चले पर वहां अन्नक्षेत्र पर ताला लगा था। “भईया, चौमासा में अपने साधन की कमी के कारण कई अन्नक्षेत्र बंद हो रहे हैं। लोगों को चार महीना बिठा कर खिलाना उनके लिये भारी पड़ने वाला होता।

आगे ममोदरी में च्यवन ऋषि का आश्रम है, पर वहां भी रुकने को स्थान नहीं मिला। प्रेमसागर आगे बढ़ गये। करीब साढ़े इग्यारह बजे के बाद प्रेमसागर से नेटवर्क सम्पर्क टूट गया।

बड़वाह के आगे नर्मदा की घाटी खत्म हो जाती है और विंध्य का पहाड़ी इलाका पड़ता है। सागौन और शाल के वन हैं। चोरल नदी बहती है – सर्पिल तथा गहरी घाटी बनाती हुई। शायद ही कोई यात्री मिलता होगा सड़क पर। इस इलाके को मैं खूब जानता हूं बरास्ते रेल मार्ग के। यहीं कालाकुंड-पातालपानी का घाट सेक्शन पड़ता है। मीटर गेज की स्टीम और फिर डीज़ल इंजनों वाली ट्रेने मुझे बहुत बार इस इलाके से गुजार चुकी हैं। पर सड़क मार्ग से मैने कभी इस इलाके को नहीं देखा। प्रेमसागर का नेटवर्क अगर होता तो मैं उनकी यात्रा के बारे में जानकारी लेता रहता। पर वे तो नेटवर्क न होने के कारण खो गये थे।

छ-सात घंटे बाद एक बार उनकी लोकेशन मैप पर झलकी। कोई बड़ेल जगह थी। बड़दिया सुर्ता से बडेल तक प्रेमसागर 32-33किलोमीटर चल चुके थे। पर उनकी लोकेशन पांच सात मिनट के बाद फिर गायब हो गई।

बाबाजी बडेल में रुक गये हैं या आगे बढ़े हैं, कुछ पता नहीं चलता था। बडेल कैसी जगह है? मैप पर उस जगह का कोई चित्र किसी के द्वारा पोस्ट नहीं किया गया था, जिससे जगह की प्रकृति का अंदाज लगे। बत्तीस किलोमीटर पहाड़ी इलाके में चलना बहुत मेहनत का काम है और प्रेमसागर को कमर में दर्द भी है।

पिछली द्वादशज्योतिर्लिंग पदयात्रा में इसी इलाके में मुख्त्यारा के पास जंगल में प्रेमसागर से छिनैती हो गई थी। उनका मोबाइल छिन गया था। वैसा ही आज भी तो नहीं हुआ है? मेरे मन में कई आशंकायें थीं। रात में एक दो बार फिर गूगल मैप को निहारा मैने, पर प्रेमसागर ऑफलाइन ही मिले।

दिनांक 5 जून

सवेरे सात बजे प्रेमसागर की लोकेशन फिर झलकी। बडेल के आसपास थी। फोन पर पूछा तो कट कट कर आती आवाज से इतना पता चला कि रात में बाबाजी बडेल में ही रुके थे। “भईया गांव वाले पारी पारा अपने घर से भोजन बना कर भेजते हैं परिक्रमावासियों को। करीब बीस पच्चीस घर हैं यहां। कार्तिक में गांव के लोग जो बाहर काम करते हैं, वे भी अपनी पारी बांध कर गांव आते हैं, परिक्रमावासियों की सेवा के लिये।”

बडेल में जहां प्रेमसागर रुके, उस जगह का एक चित्र भेजा है। मिट्टी का खपरैल वाला मकान है। मकान क्या एक दालान जैसा है – जिसमें कई लोग रुक सकते हों। आजकल गांवों में भी सीमेंट के मकान बन गये हैं। यह मकान तीन चार दशक पहले के भारत की याद दिलाता है। मकान के एक किनारे एक लकड़ी के खम्बे के साथ पुराना सा डिश एंटीना दीखता है। वही शायद पिछले दशक की पहचान है।

“पूरे रास्ते नेटवर्क नहीं था तो कोई फोन नहीं आया। सत्रह किलोमीटर में कोई आदमी क्या, कोई जानवर भी मुझे नहीं मिला। भईया, जब जंगल से इत तरह गुजरना होता है तो मैं एक ब्ल्यूटूथ स्पीकर पर भजन लगा कर सुनता चलता हूं। स्पीकर की ऊंची आवाज से कोई जंगली जानवर सामने नहीं आता। वह भी आदमी से बचना चाहता है।” – प्रेमसागर ने जंगल से गुजरने की जुगत मुझे बताई।

प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes

नर्मदाप्रेम नर्मदे हर!!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “बडदिया सुरता से बरास्ते जंगल बडेल

  1. एक बार फिर से प्रेम शंकर जी की यात्रा के बारे में पढ़कर अच्छा लग रहा है, लेकिन विस्तार के लिए आपको उन्हें बार बार कोंचना पड़ेगा, जो शायद आप किसी कारण से कर नहीं पा रहे. अगर उन कारणों पर काबू पर उनको जरा ज्यादा कोंचेंगे तो निश्चित ही और भी ज्यादा मैटेरियल मिलेगा हम पाठको को.

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