8 जून: प्रेमसागर की पदयात्रा में किसान की पीड़ा, बिटिया की प्रसादी और माफी गांव की कथा
अजय पाल जी के घर से थोड़ा देर से निकले प्रेमसागर। “हम तो तैयार थे भईया, पर उन लोगों का दरवाजा थोड़ा देर से खुला। बिना कह कर बिदा लिये चलना मुझे ठीक नहीं जान पड़ा।”
दिन में कई नदियां पार कीं। बागदी और जामनेर नदियों के नाम दिये प्रेमसागर ने। इनके पाट काफी चौड़े थे और पानी भी खूब था उनमें। उसके अलावा छोटी छोटी कई नदियां थीं। कुछ पर पुल थे और कुछ के बांस के पुल बह चुके थे। पानी कम था तो चल कर पार करना कठिन न था। एक नदी को पार करने के बाद प्रेमसागर ने वीडियोकॉल से नर्मदा तट का हाल बताया। नाम बताया गोंदी नदी। गोंदी नर्मदा संगम स्थान था। गोंदी पर ह्यूमपाइप का पुल रहा होगा जो आधा बह चुका था। एक पाइप से दूसरे पर कूद लगाई होगी। पानी कम था तो पार करने की खुशी प्रेमसागर को थी। पदयात्री को इस तरह के छोटे छोटे एडवेंचर प्रसन्नता देते हैं। और उनसे दो चार किलोमीटर अतिरिक्त चलना बच भी जाता है।
एक दुकान पर बैठी लड़की ने बाबाजी को रोका। उसने कहा आज उसका जन्मदिन है। प्रसादी बन रही है। ग्रहण कर ही जायें। “भईया, बिटिया का आग्रह कैसे न मानता मैं। एक घंटा वहीं रुका।” जगह थी निकुंज आश्रम ब्रजवाड़ा। बिटिया का भंडारा वहीं हुआ था।
वहीं एक परिक्रमावासी की पुरानी डायरी पड़ी थी। हर दिन का तीन चार लाइन में विवरण लिखा था और उसके पास आश्रम की सील भी लगाई हुई थी। सील लगवाने का कारण समझ में नहीं आता, अगर यात्री कोई प्रायोजित यात्रा न कर रहा हो। प्रेमसागर की थ्योरी है कि कुछ परिकम्मावासी किसी और के संकल्प की पूर्ति के लिये यात्रा करते हैं और उसका प्रमाण इस तरह रखते हैं। यह जरूर है कि प्रायोजित परिकम्मा बहुत कम ही होती होगी। यूं मुझे लगता है कि प्रायोजक और पदयात्री दोनो ही इसका प्रचार करने से बचते होंगे।

इस संदर्भ में मुझे अमृतलाल वेगड़ जी की पुस्तक का अंश याद हो आया। उन्होने लिखा था – रास्ते में एक सन्यासी की कुटी मिली। मैने सन्यासी से पूछा – कैसे कैसे लोग नर्मदा की परिक्रमा करते हैं?” तो कहने लगे “अधिकतर लोग भीख मांगने के लिये ही परकम्मा उठाते हैं। इससे पेट भी भर जाता है और पैर भी पुज जाते हैं।” (सौंदर्य की नदी नर्मदा, पेज 2-3)
एक जगह मूंग की फसल का ढेर लगा दिखा। “भईया मूंग यहां खूब होती है, पर किसान खुश नहीं है। उनका कहना है कि इस साल सरकार खरीद नहीं रही। बाजार में दाम अच्छे नहीं मिल रहे। वे याद करते हैं कि शिवराज सिंह मामा का टाइम अच्छा था। सरकार किसान की फिकर ज्यादा करती थी।”
रात ढलने पर ही ठिकाने पंहुचे प्रेम बाबाजी। कोई जगह है करौंदमाफी। वहां आश्रम है – करुणाधाम आश्रम। बोर्ड पर लिखा है – अन्नक्षेत्र और परिक्रमावासियों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था। आठ दस कर्मचारी भी हैं आश्रम में। स्थानीय ही हैं। मैने प्रेमसागर से कहा कि उनसे पता करें करौंद के आगे माफी क्यूं लगा है। गांव को कभी मालगुजारी/लगान में माफी दी गई होगी? शायद मुगल काल में? पर उन स्थानीय लोगों में से कोई बता नहीं पाया। सिर्फ यही बताया कि उनके दादा-परदादा के जमाने से नाम यही है – करौंदमाफी।

नेमावर पार कर आये हैं प्रेमसागर। नेमावर या नर्मदा तट के दूसरी ओर हंडिया को नर्मदा माई का नाभि स्थल कहा जाता है। प्रेमसागर ने उत्तर तट की पदयात्रा का आधा पार कर लिया है। पूरी परिक्रमा होने में अगर कोई संशय रहा हो, तो अब दूर हो जाता है। नर्मदा माई की कृपा से पदयात्रा अच्छी ही चल रही है। और उनके साथ मेरी मनयात्रा भी खूब मौज में है।
बकिया, प्रेमसागर हलुआ पूड़ी छान रहे हैं और मैं अपनी कैलोरी गिनता घासफूस पर जिंदा हूं। मुझे अगर पच्चीस किलोमीटर रोज चलना आता तो इस युग का अमृतलाल वेगड़ बनता। अभी तो प्रेमसागर के जरीये देख सुन रहा हूं नर्मदा माई की हलचल को!
प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes
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नर्मदे हर!!

अब यात्रा में कुछ तेजी आई है. यथावत रहे. आनन्द वर्षा होती रहे.
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