नीलकंठ से गंजीत

दस जून: श्रद्धा की छाया में छब्बीसवां दिन

नीलकंठ से रवाना होते ही एक सज्जन पीछे से आये और प्रेमसागर को हलवा दे कर चले गये। ज्यादा बात भी नहीं हुई उनसे। यह जरूर था कि वे नीलकंठ के थे। अपने खेत पर जाने की जल्दी मे थे वे। नाम बताया – रघुराज सिंह।

यूं कोई आये और आपको हलवा-मिष्टान्न दे कर चला जाये, नर्मदा किनारे चलते पदयात्री को यह लग सकता है कि नर्मदा माई ने ही भेजा है प्रसाद। अगर यात्री सोलो चल रहा हो, अकेला, और वह थोड़ा बहुत आध्यात्म-खोजी (Spiritual Seeker) हो तो वह जरूर ऐसी घटना को नर्मदा माता के चमत्कार से जोड़ कर देखेगा।

वहां लोग अजनबी पदयात्री को इतना भाव देते हैं। इसके पीछे नर्मदा माई ही हैं ऐसा प्रेमसागर कहते रहते हैं। मैं प्रेमसागर की श्रद्धा को चैलेंज नहीं करना चाहता। उम्र का असर है या नर्मदा की इतनी हो गई यात्रा का, या नर्मदा पर पूरी श्रद्धा से लिये ट्रेवलॉग्स को पढ़ने का, मैं महसूस कर रहा हूं कि भौतिकता, तार्किकता और श्रद्धा को कुछ तो जोड़ने वाली कड़ी है।

रघुराज सिंह: “एक सज्जन पीछे से आये और प्रेमसागर को हलवा दे कर चले गये।”

कोनार नदी नीलकंठ मंदिर के आगे नर्मदा में मिलती है। पर कोनार को संगम स्थल पर पार करने का मार्ग नहीं है। पदयात्री घूम कर आगे बढ़ते हैं। “संगम के पास काफी ढलान है, भले ही नदी में पानी कम है। वहां उतरने लायक नहीं है। और नदी में पार होने के लिये वहां नाव भी नहीं है।”

कोनार के बारे में प्रेमसागर को बताया गया कि इसका नाम कौशल्या नदी भी है। यहां राम लक्ष्मण सीता और शंकर जी पैदल चले थे और उनके पदचिन्ह भी हैं। आस्तिक हैं प्रेमसागर। रास्ते में पदचिन्ह देखते चले। “अगर दिखे तो फोटो ले कर आपके पास भेजूंगा।”

अन्तत: कोनार नदी पर पुल प्रेमसागर ने पौने नौ बजे पार किया। नदी का जल ज्यादा नहीं हैं, पर गहरी जरूर है। गम्भीर स्वभाव की नदी लगती है। अगर नाम कौशल्या है तो अपने नाम को सार्थक करती जान पड़ती है। नदी में बारिश के मौसम में पानी बढ़ता होगा।

कोनार नदी

आगे जो गांव पड़ा वहां राजू सिंह जी ने अपने घर पर चाय पिलाई। “इस इलाके में राजपूत ज्यादा लगते हैं भईया।” प्रेमसागर ने कहा।

दिन भर की यात्रा करने के बाद शाम को एक और घटना प्रेमसागर ने बताई। दोपहर बारह बजे एक गांव था जैना टप्पर। एक बच्चा प्रेमसागर को बुला कर अपने घर ले गया। वहां भोजन कराया।

“भोजन में आमरस था, रोटी और नमकीन सेवियां। दोपहर हो गई थी तो मैं वहीं बराम्दे में चादर बिछा कर आराम करने लगा। मुझे नींद आ जाती है और तीन बजे सोता हूं। वह भी गहरी नीद। उठाने पर भी नहीं जागता।”

पर आज घंटा भर बाद ही कुछ अजीब हुआ। प्रेमसागर ने एक रहस्य कथा सुनाने के अंदाज में कहा कि उन्हे लगा कोई गाल हिला कर कोई कह रहा है – उठो, कब तक सोते रहोगे।

“मैं उठ गया भईया। आसपास देखा तो कोई नजर नहीं आया। आवाज किसी औरत की थी। एक बार मुझे लगा कि मेरी बहन तो नहीं आ गई है मुझे सरप्राइज देने। दीदी ने फोन पर कहा भी था कि कभी मौका मिला तो आ कर मिलेंगी।”

“पर आसपास खूब देखा, मुझे कोई नजर नहीं आया। फिर सोचा कि कहीं कोई कुत्ता न हो, जो सोते देख मेरे पास आ गया हो। पर कोई जीव नहीं था वहां।”

प्रेमसागर ने कहा – उन्हें लगा, यह आवाज़ नर्मदा माई की रही होगी। आवाज़ और स्पर्श ऐसा ही अनुभव करा रहे थे। माई कह रही थीं कि उठो और चलो। उन्होने मुंह धो कर पानी पिया और चल दिये।

भोजन में आमरस था, रोटी और नमकीन सेवियां।

अपनी यात्रा के पूर्वार्ध और अब की तुलना करते हुये प्रेमसागर ने कहा – “कुछ दिन पहले तक भईया चलने में थकान होती थी। रास्ते में पचीस पचास आदमी अपनी बाइक और कारें रोक कहते भी थे कि वे आगे छोड़ देंगे। कभी कभी मन डोलता भी लगता था। उनका अनुरोध कभी माना नहीं। पर अब तो थकान नहीं लगती।”

“शाम को दो किलोमीटर पहले एक जगह लोग आश्चर्य कर रहे थे कि नीलकंठ से एक दिन में चल कर आ गये यहां तक। लोग इतना चलने में दो-तीन दिन लगाते हैं। भईया, अब चलने में कोई परेशानी नहीं होती मुझे। लगता है, नर्मदा माई सब ध्यान रख रही हैं।”

प्रेमसागर नर्मदा का नाभि स्थल पार कर चुके नेमावर में। उत्तर पथ की आधी यात्रा सम्पन्न हो गई है। आज छब्बीस दिन हो गये। आधी यात्रा तक पदयात्री नर्मदा को समझने में लगा रहता है। आधी यात्रा के बाद नदी उसको समझने लगती है। अब नर्मदा समझ रही हैं प्रेमसागर को।

प्रेमसागर आंवली घाट रुकना चाहते थे। नर्मदा परिक्रमा में आंवली घाट का बहुत अधिक महत्व है। इसे लोक मान्यताओं में एक सिद्ध और प्रसिद्ध घाट माना जाता है। यहां हथेड़ नदी और मां नर्मदा का संगम होता है। आंवली घाट के बारे में लोक मान्यता और कथायें हैं कि यहां अनेक ऋषि-मुनि, संत और तपस्वी आते-जाते रहे हैं, और कईयों ने यहां तपस्या की है। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने भी यहीं तपस्या की थी और यहां अमावस्या और पूर्णिमा पर देवी-देवता स्नान करने आते हैं।

पर आंवली घाट में प्रेमसागर जी का रुकना नहीं हो सका। वहां 3-4 अन्न क्षेत्र बंद थे। ताला लगा था। एक सज्जन ने गंजीत जाने का सुझाव दिया। गंजीत आंवलीघाट से तीन किलोमीटर आगे है। वहां भी नर्मदा किनारे नाथ सम्प्रदाय का आश्रम है। गंजीत जा कर वहां जगह मिली। वहां प्रेमसागर अकेले परिक्रमावासी थे।

मैंने पूछा – गंजीत का आश्रम कैसा है?

“कुल मिला कर ठीकठाक है। आश्रम के पास तीन बीघा जमीन है। महंत जी कोई मालवीय जी हैं। वे पास में जूना अखाड़ा के दत्तात्रेय मंदिर गये हैं। आश्रम के कर्मचारी लोगों ने मुझे रुकने को कह दिया है। वे भोजन-प्रसादी का इंतजाम कर रहे हैं। कल सवेरे बगल में नर्मदा माई के दर्शन करूंगा और फिर आगे निकल लूंगा।”

गंजीत का नाथ सम्प्रदाय का आश्रम

आज प्रेमसागर को यात्रा करते छब्बीस दिन हो गये हैं। शरीर और मन रंवा हो गया है रेवा माई की यात्रा में। अब शारीरिक थकान नहीं है। छोटी छोटी बातें पूरे मनोयोग से मुझे बताने लगे हैं। शायद मुझमें भी परिवर्तन है। मैं उनकी यात्रा की कमियां (जो मेरे हिसाब से हैं, पर शायद हैं नहीं) अनदेखा करना भी सीख गया हूं। उनकी पदयात्रा और मेरी मनयात्रा चल ही निकली है।

अब प्रेमसागर नहीं चल रहे — नर्मदा माई स्वयं उन्हें चला रही हैं।


प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes

#नर्मदाप्रेम #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #प्रेमसागर_पथिक

नर्मदे हर!!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “नीलकंठ से गंजीत

  1. नर्मदे हर ! अनंत काल से मानव प्रकृति को भय और आश्चर्य से समझने का प्रयास कर रहा है, पर घड़ा कुंभकार को जान पाएगा ?

    Liked by 1 person

Leave a reply to Anonymous Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started