गंजीत से पीलीकरार

सताईसवां दिन – मिले नाश्ता, गमछा, लाठी और इक्यावन रुपये

दो विकल्प थे प्रेमसागर के पास। एक था पक्की सड़क के रास्ते चलने का और दूसरा नर्मदा किनारे किनारे कुछ असुविधाजनक मार्ग का। ज्यादातर लोग सुविधा चाहते होंगे। मैं तोल रहा था कि प्रेमसागर कौन सा रास्ता चुनते हैं। अगर वे झटपट परिक्रमा कर अपने बैज की तरह परिक्रमा पूरा करने को भुनाना अधिक वरीयता पर रखते हैं तो पहला विकल्प उनके लिये है। और अगर उन्हें ‘नर्मदा खींच रही हैं’ तो दूसरा। भला हुआ कि उन्होने दूसरा विकल्प चुना।

असुविधाजनक मार्ग

गंजीत में नाथ सम्प्रदाय के आश्रम में मुख्य बाबा रात इग्यारह बजे आये। भोजन कर अलग होने चले गये। प्रेमसागर की उनसे बात नहीं हो पाई। सवेरे वो पैंट पहन कर घूमते दिखे। पैंट पहने दिखने से महंत जी का आभामंडल ध्वस्त हो गया प्रेमसागर की नजर में। महंत जी नाथ पंथ में दीक्षा लिये हैं पर उन्हें अभी लंगोटी नहीं मिली है। “बारह साल की कड़ी परिच्छा के बाद लंगोट मिलती है भईया। आसान बात नहीं है।”

प्रेमसागर शायद कनफड़ दीक्षा की बात कह रहे थे जिसमें योगी को कान में मुंदरी पहना कर पूर्ण योगी को सनद मिलती है। उसी में हो सकता है, दो टुकड़ों का लंगोट भी पहनाया जाता हो।

पीलीकरार का नर्मदा तट

नर्मदा किनारे चलते हुये कुछ चित्र लिये प्रेमबाबा ने। अच्छे आये। आगे रास्ता कठिन हो गया। नहीं दिखा तो खेत के बीच से चलना पड़ा। कपास की बुआई की तैयारी हो रही थी। खेत बड़े बड़े थे। पांच दस एकड़ के। प्रेमसागर प्रभावित थे जुताई के तरीके से। “यहां हल का फाल 9इंच से एक फुट का होता है। उससे अढ़ाई फुट की मिट्टी ऊपर नीचे हो जाती है। उसके बाद रोटर और उलाव से गोलगोल घुमा कर खेत तैयार किया जाता है। मिट्टी वैसे हो जाती है जैसे आटा गूंथा जाता है।”

“भईया, हमें किसानी करनी हुई तो हल यहीं से मंगायेंगे।”

कई खेतों में बिजली का तार की बाड़ से झटका मशीन जोड़ी गई थी। इस इलाके में जंगली और बहेतू जानवरों की भी दिक्कत है।

“आज का दिन खास था भईया। आज मेरे सामने मोर नाचता दिखा। फोटो लेने से मैं चूक गया। दिन भर में अगर दिखा तो फोटो जरूर लूंगा।” पर मौका आया नहीं।

जहाजपुर में शत्रुघ्न पटेल और उनकी पत्नी ने नाश्ता कराया और उसके बाद एक गमछा, लाठी और इक्यावन रुपये दे कर पैर छुये।

जहाजपुर में शत्रुघ्न पटेल और उनकी पत्नी ने नाश्ता कराया और उसके बाद एक गमछा, लाठी और इक्यावन रुपये दे कर पैर छुये। मुझे जब बताया तो प्रेमसागर से ईर्ष्या हुई। गमछा, लाठी और ऊपर से रुपये – ये तीनो बहुत काम के हैं! मुझे मिले होते तो कितना आनंद आता। “लाठी बहुत अच्छी है भईया। और मुझे बहुत जरूरत भी थी।” प्रेमसागर ने यह नहीं कहा – आप इतना लिखते हैं मेरे लिये, गमछा और 51 रुपया आप रख लीजियेगा! :lol:

जहाजपुर में नाश्ता मिला और पंडिज्जी गांव में एक महिला दुकानदार ने भोजन कराया। नर्मदा माई समय समय पर चुग्गा डालती रहीं बाबाजी के मुंह में।

शाम चार बजे सातधारा से गुजरे प्रेमसागर। बीच में बड़े पत्थरों से नदी सात धाराओं में विभक्त हो जाती हैं। प्रेमबाबा गिनते चले – एक दो तीन…छ। सातवीं थोड़ा आगे चल कर स्पष्ट हुई। “ठीक, पूरी सात हैं भईया।”

सातधारा

आगे भागनेर नदी मिली। वेगड़ ने अमृतस्य नर्मदा में लिखा है कि वह बड़ी मासूम सी नदी है। आसानी से पार की जा सकती है। पर जब नर्मदा में बाढ़ आये तो इसमें पानी बहुत हो जाता है। वह पानी भगनेर का नहीं, नर्मदा का होता है जो उफन कर भगनेर में चला आता है।

अभी तो प्रेमसागर भगनेर किनारे पगडंडी पकड़ चल रहे थे। गांव वाले उन्हें बताये कि नदी पार करने के लिये बांस का पुल है। उससे पार कर लें, वर्ना 10-12 किलोमीटर ज्यादा चलना होगा, तब सड़क का पुल आयेगा। लेकिन पुल नीचे था करीब दो मंजिल नीचे। झाडियों में छिप गया था। उस चक्कर में दिखा नहीं और प्रेमसागर दो किलोमीटर आगे बढ़ गये। खेत में काम करने वाले लोगों ने पीछे से जा कर उन्हें वापस बुलाया और पुल पार कराया।

“गांव वालों ने ही पार कराया वह बांस का पुल भईया। जर्जर था। बिल्कुल लछमन झूला की तरह।”

भागनेर का पुल

भागनेर का बांस और लकड़ी से बना संकरा पुल पहली नज़र में ही भरोसा और भय दोनों उत्पन्न करता है। यह लक्ष्मण झूला कहां है? यह तो आधुनिक इंजीनियरिंग की सभी मान्यताओं को विखंडित करता लक्ष्मण जुगाड़ है। प्रेमसागर की श्रद्धा और एडवेंचर ही इसे पार कर सकता है।

मैंने लाइनें लिखीं –
पुल क्या था, लकड़ी जर्जर,
हर डग पर होता चरर मरर।
“चल बेटा, मैं हूं साथ तेरे”,
मानो बोली नर्मदा लहर।

और उसे जोड़ते हुये एक कैप्शन पोस्टर बनाया।

वे आज बुधनी तक चलना चाहते थे, पर शाम हो जाने पर पैर पहले थामने पड़े। उन्हें पीलीकरार नामक जगह पर एक करुणानिधान अन्नक्षेत्र दिखा। वहीं रह गये रात में। कुल बीस किलोमीटर से ज्यादा चले होंगे।

रास्ते में लोग सहूलियत देते गये। या परकम्मा की भाषा में कहूं तो माई प्रेमसागर की खोजखबर के लिये रास्ते के लोगों को सजेहती रहीं।

दिन अच्छा ही गुजरा बाबा जी का। मुझे उनको मिले इक्यावन रुपये खटक रहे हैं। कम से कम आधा तो मुझसे बांटना चाहिये उन्हे। छ सौ किलोमीटर दूर उनको मिली भोजन-परसादी तो मैं नहीं ले सकता; नगदी तो शेयर कर ही सकता हूं। :lol:

प्रेमसागर जी की सहायता करने के लिये उनका यूपीआई एड्रेस है – prem199@ptyes

#नर्मदाप्रेम #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #प्रेमसागर_पथिक

नर्मदे हर!!
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये मानसिक हलचल ब्लॉग पर जायें –


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “गंजीत से पीलीकरार

  1. जय हो प्रेमशंकर जी की और आप की जो नर्मदा मैया की परकम्मा करवा रहे हैं. दयानिधि.

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