जून 28 की यात्रा में प्रेमसागर आनाखेड़ा से खाल्हेदूधी तक चले। जबलपुर के भेड़ाघाट से नर्मदा का तट छूटा था। आज नर्मदा के करीब तक पंहुचे प्रेमसागर, पर फिर भी तट पर जाना नहीं हुआ।
नर्मदा के दक्षिण तट डिंडौरी है और उत्तर तट पर देवरा। देवरा से गुजरे प्रेमसागर। नर्मदा वहां से एक किलोमीटर दूर हैं। पर यात्रा जारी रखने के लिये वे सीधे चलते चले गये।
आनाखेड़ा से लगभग हल्की चढ़ाई रही सिवाय धमनगांव से जोगी टिकरिया के बीच। हरा भरा परिदृश्य देख प्रेमसागर का उत्साह बढ़ गया है। “भईया, लगता है अमरकंटक के नजदीक पंहुच रहा हूं। अब पहाड़ियों का ऊपरी हिस्सा केवल पत्थर नहीं हैं, पेड़ भी दिखते हैं। इलाका जाना पहचाना लग रहा है।” पचास साल का हो रहा होगा यह व्यक्ति, पर चलने में उत्साह बच्चे जैसा है।
कदम कदम पर नदियां मिलीं। कई नाम मुझे लिख कर भेजे बाबाजी ने – अवतार, मणि, मनाई, कन्हाई, टाक, कसार… इनमें से कई के हिज्जे गलत होंगे। मैं नक्शे में नदियां तलाशता हूं तो मिलती नहीं। ये नदियां क्या, उद्गम की ओर नर्मदा भी पतली डोरी जैसी नजर आने लगती हैं। इन नदियों के पाट चौड़े नहीं होंगे। पहाड़ों के बीच उमड़ घुमड़ कर अपना रास्ता बनाती हैं ये नदियां।
एक जगह सुदामा सिंह ठाकुर मिले। उन्होने ही प्रेमसागर को ‘महराजजी’ की हाँक लगाते हुये बुलाया। पर वे तो यह सम्बोधन किसी भी परकम्मावासी के लिये करते रहे होंगे। प्रेमसागर ने देखा तो उन्हें पहचान लिया। वे उनकी पिछली ज्योतिर्लिंग यात्रा में सहायक रहे थे। उन्हें कहा – आप ठाकुर साहब हैं न?
और दोनों में कई साल बाद मुलाकात हुई। यह तय हुआ कि नर्मदा के दक्षिण तट की यात्रा में उनके यहां समय गुजारेंगे प्रेमसागर।
सुदामा सिंह जी वन विभाग के डिप्टी रेंजर हैं। उनके अलावा आज और कोई नहीं मिला जो बुलाता और चाय पान कराता। गांव भी छोटे थे और दुकानें भी। “गरीबी ज्यादा है भईया इलाके में। फिर भी ‘आचरज’ है कि लोगों का दिल इतना बड़ा कैसे है।”

शाम को कोई जगह मिली। प्रेमसागर ने कहा दूधी। पर नक्शे को देख लगा कि प्रेमसागर खाल्हेदूधी की बात कर रहे थे। यह जगह सड़क पर भी थी जिससे प्रेमसागर चल रहे थे। वहीं आसपास एक तिकुरादूधी भी है। दूधी तो साठ किलोमीटर दूर शहडोल के समीप है।
खाल्हेदूधी में एक अन्नक्षेत्र चलाती हैं श्रीमती सुमित्रा बाई, जहां रात के ठिकाने की तलाश में प्रेमसागर पंहुचे थे।
इस दिन की यात्रा में मिलीं एक असाधारण चरित्र — श्रीमती सुमित्रा बाई।
सुमित्रा बाई का जो चरित्र प्रेमसागर ने बताया वह श्रद्धा में नत मस्तक कर देने वाला था। उनके पति की मृत्यु हो गई है। उनके तीन लड़के हैं। एक डाक्टर है, दूसरा अध्यापक और तीसरा कृषक। पति सरकारी नौकरी में थे और ठीक ठाक नौकरी थी उनकी। उनकी मृत्यु के बाद जो पैसा मिला वह सुमित्रा बाई ने पोस्ट ऑफिस में जमा करा दिया है जिससे नियमित आमदनी होती है। उनके पास बीस पचीस एकड़ जमीन भी है। इस सब से मिलने वाली आय वे परिकम्मा वासियों पर खर्च करती हैं। वैधव्य के शून्य को नर्मदा माई ने एक सशक्त ध्येय से भर दिया है। ऐसा अर्थपूर्ण जीवन कितने लोगों को नसीब होता है?
थोड़ी दूर उन्होने एक मंदिर भी बनवाया है राधाकृष्ण का। मंदिर में भगवान की आराधना और इस अन्नक्षेत्र में नर्मदा माई की पूजा – सेवा उनका स्वभाव बन गया है और तप उनका आभूषण। कौन न उनके जैसा बनना चाहेगा जो आपदा में भी ध्येय निकाल ले रही हैं!
सुमित्रा बाई का परिवार – बेटा, पतोहू भी धार्मिक और सेवाभावी हैं। वे भी अन्नक्षेत्र की सुविधाओं – भोजन बनाने – पर अपना योगदान देते हैं। प्रेमसागर यह बताते हुये जोड़ते हैं – भईया यहां के लोग बिल्कुल अलग ही हैं। अतिथि को देवता जैसा दर्जा देते हैं।”
कभी अपने पति की स्मृति में डूबती भी होंगी सुमित्रा बाई। मंदिर की आरती के बाद, जब सब लौट जाएँ और वह अकेली बैठी हों, तो मन ही मन सोचती होंगी: “इतने लोगों के बीच भी, अब बात करने वाला वो एक नहीं रहा।”
पर उन्हें सहारा है – पति की स्मृति के साथ ईश्वर और सेवा का। और वह सहारा उनका यह जीवन अच्छे से गुजार देगा। शायद अगले जन्म के लिये एक बड़ा मोटा फिक्स डिपॉजिट भी बना दे वह! या क्या पता, इतना पुण्य हो जाये कि “पुनर्जन्म: न विध्यते! (गीता 8/16)”
सुमित्रा बाई
वह बोलती नहीं, पर हर परिक्रमावासी उन्हें सुन लेता है।
वे थाली में अन्न नहीं, श्रद्धा परोसती हैं।
पति की स्मृति उन्होंने बाँध दी है एक फिक्स डिपॉज़िट की तरह –
जो हर दिन ब्याज में पुण्य जोड़ती जाती है।
वे मंदिर से रसोई, रसोई से सेवाश्रम, सेवाश्रम से खेत तक
एक धागे की तरह चलती हैं –
न टूटती हैं, न उलझती हैं।
नर्मदा परिक्रमा की पोस्टों की सूची नर्मदा परिक्रमा पेज पर उपलब्ध है। कृपया उसका अवलोकन करें। इस पेज का लिंक ब्लॉग के हेडर में पदयात्रा खंड के ड्रॉप डाउन मेन्यू में भी है।
काश प्रेमसागर आगे यात्रा में सुमित्रा बाई की तरह के चरित्र तलाश सकें। उनकी तलाश ही नर्मदा परिक्रमा का एक ध्येय बन सकती है। अभी आधी से ज्यादा यात्रा शेष है। यह काम प्रेमसागर बखूबी कर सकते हैं। और उस तलाश पर कलम चलाने के लिये तो मैं हूं ही!
जहाँ पदयात्रा थकने लगे, वहाँ कोई सुमित्रा बाई मिल जाती हैं – जो याद दिला देती हैं कि इस यात्रा में केवल नदियाँ नहीं, इंसान भी बहते हैं। बस उन्हें देखने के लिये आंखें और हृदय खुले होने चाहियें!

नर्मदे हर! #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #नर्मदाप्रेम

पुनर्जन्म: न विध्यते! (गीता 8/16)”
या
न अहम कामये राज्यं
न स्वर्गम् न पुनर्जन्म
कामये दुःख्तप्तानाम
प्राणीनाम आर्त नाशनम
साध्य एक ही है ।
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जय हो 😊 🙏
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