<<< बडदिया सुरता से बरास्ते जंगल बडेल >>> दिनांक 04 जून प्रेमसागर के कमर में दर्द था। गांव के प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर की डाक्टर रेखा पण्डित जी ने उन्हें दवायें भी थी थीं और इंजेक्शन भी लगाया था। रेखा पण्डित शायद प्रेम बाबाजी से प्रभावित थीं। उन्होने कम्पाउंडर को इंजेक्शन नहीं लगाने दिया, खुदContinue reading “बडदिया सुरता से बरास्ते जंगल बडेल”
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#नर्मदायात्रा: हर रात नर्मदा की गोद में 60,000 परिक्रमावासी!
*** #नर्मदायात्रा: हर रात नर्मदा की गोद में 60,000 परिक्रमावासी! ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के दौरान यह जानने की उत्सुकता हुई कि एक समय में नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर कितने यात्री होते होंगे?
धारगांव के होटल व्यवसायी राहुल मंडलोई बताते हैं — ऑफ-सीजन में भी रोज़ाना 150–200 यात्री उनके सामने से गुजरते हैं। औसतन मानें तो प्रतिदिन 300 नये लोग यात्रा पर निकलते हैं और परिक्रमा पूरी करने में छह महीने लगते हैं।
इस अनुमान से यह बात निकलती है कि किसी भी एक समय पर लगभग 60,000 परिक्रमावासी मार्ग में होते हैं — जो हर रात किसी छांव, किसी आश्रम, किसी दुआर पर विश्राम करते हैं।
इस विशाल संख्या के लिये भोजन और रात्रि-विश्राम की जो व्यवस्था होती है, वह किसी सरकारी या संस्थागत योजना की नहीं, बल्कि श्रद्धा आधारित पारंपरिक तंत्र की देन है। आश्रम, स्थानीय परिवार, और निजी लोग — सब मिलकर इस सेवा को निभाते हैं।
इस पोस्ट में ऐसे अनेक रंग हैं — सेवा करने वाले, आजीविका खोजते परिक्रमावासी, प्रायोजित यात्री और उनका डाक्यूमेंटेशन!
धर्म और अर्थ की यह जुगलबंदी गहरी है — कहीं प्रेरणास्पद, कहीं चौंकाने वाली।
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नर्मदे हर! जै माई की!
(चित्र – राहुल सिंह मंडलोई, परिक्रमा में रास्ता, एक विश्रामस्थल का बोर्ड और रात का भोजन)
