29 जून के दिन प्रेमसागर खूब चले। खाल्हेदूधी गांव से राजेंद्रग्राम कस्बे तक। नक्शे में वह दूरी 50किलोमीटर की है। दिन भर चलने पर उन्होने डेढ़ सौ मीटर की ऊंचाई भी चढ़ी। मेहनत का दिन रहा। पर प्रेमसागर ने उसे ‘अंडरप्ले’ करने की भरसक कोशिश की।
यह व्यक्ति ज्यादा चलने को अपनी यूएसपी मानता है। पर मुझे ज्यादा चलने की बजाय कम पर आसपास निहारते चलना ही उचित लगता है। इसके लिये वह मुझे यह अण्डरप्ले कर बताने की कोशिश होती है।

बेनीबारी में मिले ग्रामीण व्यवसायी अमित चौकसी
बीच बीच में बारिश होती रही। रुकना भी पड़ा। बेनीबारी में अमित चौकसी जी ने भोजन कराया। चौकसी जी का मेडीकल स्टोर, बिल्डिंग मटीरियल की दुकान और एक मोबाइल की दूकान है बेनीबारी में। उन्होने सड़क पर आ कर प्रेमसागर को प्रेम से अपने यहां बुलाया वर्ना प्रेमसागर तो सामने से निकलते चले जाते।
चौकसी जी के चित्र भी भेजे बाबा जी ने। चित्र में दो बच्चे भी हैं। बच्चों को केंद्र में रखने की कला प्रेमसागर ने सीखी है अपनी यात्राओं से। लोगों को साधने का सरल तरीका बच्चों से होता हुआ जाता है।
चौकसी जी जैसे लोग मिलते रहने से अगर मैं आश्वस्त हो सकूं तो मैं भी परकम्मा पर निकल लूं। पर प्रेमसागर जैसी यात्रा के प्रति दृढ़ता मेरे चरित्र में शायद नहीं है। :sad:

धार्मिक यात्राओं में धर्मांतरण के प्रयास
एक जगह एक सज्जन मिले – राजेश मसीह। एक चाय की दुकान पर लपेट लिया राजेश जी ने। बारिश हो रही थी तो प्रेमसागर उनके चाय पिलाने पर उनकी सुनने लगे। उन्होने अपनी कथा बताई। पुराण उपनिषद सब पढ़े थे राजेश जी ने। पर जब मुसीबत आई तो कुछ काम नहीं आया। फिर वे ईसा मसीह की शरण में गये। तब उनकी सारी मुसीबतें दूर हो गईं।
राजेश जी ने आधा घंटा प्रेमसागर को अपनी बात में लपेटने की कोशिश की। “करीब पचहत्तर परसेंट यही कहा कि मैं अपना धर्म बदल लूं।”
राजेश जी ने प्रलोभन भी दिया। वे धर्म बदलने के बाद भी परिक्रमा कर सकेंगें। उनके लिये एक चारचक्का गाड़ी का इंतजाम हो जायेगा। बाल बच्चों की पढ़ाई फ्री हो जायेगी। रुपये पैसे से भी मदद होगी। प्रेमसागर अपने को “जल्दी में हूं” बता सटकने लगे तो राजेश जी ने एक पतली किताब भी दी – प्रभु की अनमोल सहायता। काफी साहसी जीव थे राजेश मसीह। परिकम्मावासी के धर्म परिवर्तन भी प्रयास कर रहे थे।
राजेश जी का फोटो लेने लगे प्रेमसागर तो उन्होने मना किया। आठ साल पहले किसी ने फोटो ले कर उनकी रिपोर्ट कर दी थी तो पांच साल तक परेशान रहे।
पांच साल परेशान रहने के बावजूद राजेश धार्मिक ‘पोचिंग’ में जुटे रहे हैं। या तो वे ईसाइयत से आकंठ प्रभावित हैं, या फिर यह पोचिंग बहुत लाभदायक व्यवसाय है।
राजेश जी पहले धार्मिक शिकारी नहीं हैं प्रेमसागर के जीवन में। रामेश्वरम में भी एक जने मिले थे। वे तो जनेऊ भी पहने थे। अपने को ब्राह्मण बताते थे। पर घुमा फिरा कर प्रेमसागर को प्रलोभन दे रहे थे कि ईसाई बन जायें।

परिक्रमा में अब कदम ही नहीं, चरित्र भी जांचे जाते हैं — बारिश से कौन भीगता है, और धर्म से कौन बहकता है?! प्रेमसागर तो जरा बारिश में भीग क्या गये, राजेश मसीह को मौका मिल गया – “धर्म बदल लीजिए, गाड़ी मिलेगी, बच्चों की पढ़ाई फ्री हो जाएगी, और परिक्रमा भी आराम से होगी। पैदल काहे को घूमते हो जब प्रभु के पास एसयूवी है आपको देने के लिये?”
आपका ईमान डगमगाने को एक कप चाय ही काफी है!
बारिश, हाथियों के झुंड की आशंका, डाकघर और जला ट्रांसफार्मर
रास्ते में बारिश आती रही। हर बारिश की लहर पर कोई छत देख रुकना होता गया। प्रेमसागर ने कहा कि बारिश न होती तो शाम छ बजे वे राजेंद्रग्राम पंहुच गये होते। वे आखिर में रात साढ़े नौ बजे पंहुचे।
रास्ते में रात गुजारने का कोई इंतजाम नहीं बन पाया। दो जगह गांव वालों ने कहा कि उनका ट्रांसफार्मर जल गया है। बिजली न आने से अतिथि को रुकवाने में असमर्थता है। इस मौसम में सांप या और जीवों का भय है। हाथी भी झुंड के झुंड अपना स्थान बदलने को निकले हैं। उन्हीं लोगो नें “शार्टकट बताया जिससे रास्ता चार पांच किलोमीटर कम हो गया।”
एक जगह दुर्गा चालिसा का पाठ हो रहा था मंदिर में। “मैं भी वहां रुक गया। मेन बात है बारिश भी हो रही थी भईया। वहां कुछ देर बैठना बहुत अच्छा लगा।” एक और जगह खपरैल के पुराने घर में एक डाकघर था। बारिश में वहां कुछ देर बिताया प्रेमसागर ने। डाकखाने का पुराना लाल चिठ्ठी का डिब्बा दो दशक पहले के समय में ले गया! पदयात्रा में कई कालखण्ड एक के बाद एक दिखाई देते रहते हैं।
रात साढ़े नौ बजे राजेंद्रगाम पंहुचना हुआ। वहां वे आश्रम तलाश रहे थे तो एक अग्रवाल जी मिल गये। उन्होने अपने लॉज में रुकवा लिया प्रेमसागर को। रात में मेरी बातचीत नहीं हुई बाबा जी से। आगे का विवरण अगली पोस्ट में होगा।

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