जल्दी निकल लिये अमरकंटक से

एक कठिन रात के बाद, नर्मदा माई की कृपा का अद्भुत अनुभव

1 जुलाई के दिन प्रारम्भ होती है नर्मदा की दक्षिणतट की यात्रा। मैं सोचता था कि यह बहुत सुखद शुरुआत होगी। उत्तरतट की यात्रा कमोबेश अच्छे से सम्पन्न की प्रेमसागर ने। ग्रामवासियों और रास्ते में मिलते लोगों का स्नेह सत्कार अभिभूत करने वाला था। हर कदम पर कल्पनातीत सहयोग रहा। पर उत्तरतट के अंतिम पड़ाव में अपेक्षाओं के पूरा न होने का झटका लगा।

उनतीस जून को पचास और तीस को चालीस किलोमीटर चले प्रेमसागर। इस बीच 1 किलोमीटर की ऊंचाई भी चढ़ी। मेहनत बहुत लगी होगी। ऐसे में अमरकंटक पंहुचने पर यह पता चलना कि रात गुजारने को कोई व्यवस्था ही नहीं बन रही, बहुत मायूस कर गई होगी। मैने जब रात में प्रेमसागर का संदेश पढ़ा तो मुझे भी ठेस लगी।

एक जुलाई की सुबह समय पर प्रेमसागर का फोन आया। उन्हें मैने सलाह दी कि वे दो घंटे में आवश्यक अनुष्ठान पूरे कर अमरकंटक से रवाना हो जायें। अमरकंटक पहले तो वे एक दो दिन रुक कर देख ही चुके हैं। आगे सत्रह किलोमीटर पर करंजिया पड़ता है। थोड़ा बड़ा गांव है जंगल के बीच। एक मंदिर भी दिखता है वहां नक्शे में। वहां पंहुच कर कोई रुकने की जगह तलाशें। अगर न मिले तो कोई वाहन पकड़ कर गोरखपुर या गाड़ासराय तक जायें और रुकने का स्थान मुकम्मल करें। वहां एक दिन आराम कर वाहन से वापस आ कर पदयात्रा जारी रखेंं।

अमरकंटक के नर्मदा मंदिर में प्रेमसागर।
अमरकंटक के नर्मदा मंदिर में प्रेमसागर।

प्रेमसागर को वह रुचा। उनको थकान से थोड़ी हरारत थी। पेरासेटामॉल का सेवन कर रहे थे। तीन दिन तक लेंगे, किसी डाक्टर की सलाह के अनुसार। नर्मदा मंदिर, माई की बगिया आदि स्थान जा कर प्रेमसागर लॉज में वापस लौटे और अपना सामान ले कर दस बजे तक अमरकंटक से निकल लिये।

हरारत के बावजूद तेज गति से चल रहे थे बाबाजी। मैं नक्शे में उनका तेजी से चलता आईकॉन देख रहा था। दोपहर तक वे करंजिया पंहुच गये थे।

“भईया यहां आश्रम तो है, पर उसमें ताला लगा है। मंदिर है पर बहुत छोटा है। वहां रुकने की कोई जगह नहीं।” प्रेमसागर ने आश्रम का और उसके तालाबंद दरवाजे का चित्र भेजा। चौमासे भर कोई आश्रम परिक्रम्मावासी को तीन चार महीने रुकने और बिठा कर भोजन नहीं कराना चाहता। इसलिये अधिकांश में ताला लग जाता है। यह तो प्रेमसागर जैसे ऑफ सीजन पदयात्री हैं जो सभी बाधाओं के बावजूद पैरों की गति थमने नहीं देते।

अपना पौरुख आंका और करंजिया से पैदल ही आगे चल पड़े। अब नर्मदा माई को हस्तक्षेप करना पड़ा। सन 2021 की ज्योतिर्लिंग पदयात्रा के दौरान प्रेमसागर आगे के एक स्थान गाड़ासराई में रुके थे। वहां के वनकर्मियों में से एक पुष्पेश अवधिया जी अभी भी उनके सम्पर्क में हैं। पुष्पेश जी नर्मदा जी के भेजे देवदूत प्रमाणित हुये।

पुष्पेश अवधिया जी का आतिथ्य

प्रेमसागर गोरखपुर गांव पंहुचे थे तभी दूसरी ओर से पुष्पेश जी उन्हें अपने घर ले आये। उनका गांव मोहतरा, गाडासरई और गोरखपुर के बीच है। उनके घर में उनके मातापिता, उनकी धर्मपत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा हैं। मकान नया है और चित्रों में सुव्यवस्थित लगता है। कोई बहुत धनी का घर नहीं लगता पर सुरुचि हर कोने पर नजर आती है। श्रीमती पुष्पेश जरूर कुशल गृहणी होंगी।

पुष्पेश अवधिया का परिवार
पुष्पेश अवधिया का परिवार

पुष्पेश वन विभाग के कर्मी हैं और पत्नी एक शिक्षिका हैं। अच्छे से चलाते प्रतीत होते हैं अपना घर।

पुष्पेश जी के पिता पचासी साल के हैं और माता करीब 80 की। पिताजी की दर्जी की दुकान हुआ करती थी। वे वाजिब कीमत ही लिया करते थे अपने काम की। जीवन धर्म और ईमानदारी से जिया। अब सपत्नीक पूरे परिवार में रह रहे हैं। भगवान उन दम्पति को सुखी और लम्बी आयु दें। नर्मदा जी से चार किलोमीटर की दूरी पर उनका घर है। यह अपने आप में एक नियामत है। उनके पास 10-12 एकड़ खेती की जमीन भी है।

शाम को प्रेमसागर जी को पुष्पेश नर्मदा तट पर ले कर गये। अगर अमरकंटक को न गिना जाये तो भेड़ाघाट के बाद पहली बार, आठ दिन बाद, प्रेमसागर नर्मदा तट पर पंहुचे। नर्मदा परिक्रमा कर रहे व्यक्ति के लिये यह उचित है? पर शायद वर्षा के मौसम में तटीय गांवों में कच्चे रास्तों का कीचड़ से भर जाना एक मुख्य कारण है प्रेमसागर का हाईवे या पक्की सड़कों से यात्रा करना।

गांव के नर्मदा तट पर पुष्पेश
गांव के नर्मदा तट पर पुष्पेश

तीरे तीरे न चलने से नर्मदा माई के सौंदर्य की अनुभूति तो वे नहीं ही कर पा रहे। नर्मदा जी का अल्हड़ खिलंदडा रूप तो इसी इलाके – अमरकंटक से जबलपुर के बीच ही है। उसमें से बहुत सा हिस्सा बरगी बांध ने और बचा हुआ बारिश के मौसम की कीचड़ ने लोप कर दिया।

प्रेमसागर को मैने कहा है कि वे दिन भर की यात्रा में एक स्थान पर रुक कर किसी ऑटो का अन्य वाहन से नर्मदा तट पर जा कर दस मिनट वहां व्यतीत करें और वापस आ कर सड़क से ही यात्रा जारी रखें। मैं तो ऑफर भी दे सकता हूं कि ऑटो के खर्च के लिये प्रति ट्रिप 100-150रुपये उनके खाते में ट्रांसफर कर दिया करूंगा। नर्मदा दर्शन की ये खिड़कियां मेरे नाम पर ही सही, खुलें!

प्रेमसागर को एक खंड यात्रा – अमरकंटक से होशंगाबाद/नर्मदापुरम तक की – शीत-वसंत काल में करनी चाहिये। पर क्या प्रेमसागर में नर्मदा के सौंदर्य की अनुभूति की चाह है? मैं तो उन्हें अपने चश्मे से देख रहा हूं।

मोहतरा के नर्मदा तट के चित्र मेरी अपेक्षा से बिल्कुल अलग निकले। यहां अपने उद्गम से पचास किलोमीटर दूर होंगी नर्मदा। उनमें जल ज्यादा नहीं है। पाट भी बहुत चौड़ा नहीं है। जितना है, उसमें भी बीच बीच में तले के पत्थर नजर आते हैं। कहीं कहीं तो लगता है कि आदमी अपनी धोती अगर कमर तक ऊंची कर ले तो चलता हुआ नदी पार कर सकता है। नदी की धारा जरूर तेज होगी। तेज धारा पत्थरों को काटती तराशती खूब होगी। पर पत्थर भी जिद्दी लगते हैं। काटने तराशने को झेलते हुये अब भी, करोड़ों सालों बाद भी, बने हुये हैं।

नदी में जल कुछ कम हुआ है पिछले दशकों में? हुआ होगा शायद। जंगल तो छीजने लगे ही हैं। टूरिस्ट और परकम्मावासी भी तो बोझ ही डालते होंगे नर्मदा पर्यावरण पर!

गीता मेहता का नर्मदा विषयक उपन्यास है – अ रिवर सूत्रा (A River Sutra)। उसमें कथा का नायक एक नौकरशाह है जो ज्वाइंट सेकरेट्री जैसा मारधाड़ का पद छोड़ कर नर्मदा किनारे एक रेस्ट हाउस का प्रबंधक बन आया है। जब से मैने यह उपन्यास पढ़ा है, मैं कल्पना कर रहा हूं कि एक घर मुझे मिल जाये जिसका दरवाजा खिड़की नर्मदा तट पर खुलते हों। वहीं रहते और नित नये परिक्रमावासियों की कथायें सुनता देखता जिंदगी गुजारूं मैं। लगता नहीं इस जन्म में हो पायेगा। पर प्रेमसागर के साथ जैसा हो रहा है, उससे लगता है कुछ भी हो सकता है। मेरे साथ भी।

रात में पुष्पेश जी के घर में शाम की आरती हो रही है। प्रेमसागर ने वीडियो बना कर मुझे भेजा है। बहुत सुखद लगता है वह देखना। लोग जमीन पर दरी पर बैठे हैं पूजा घर में। पुष्पेश एक ढोलक बजा रहे हैं। झल्लक की भी आवाज आ रही है। पुष्पेश के पिताजी शायद पालथी मार कर बैठ नहीं सकते। वे कुरसी पर बैठे हैं। लगता है मैं कभी पुष्पेश जी के घर जाऊंगा तो नर्मदा तट पर तो हो आऊंगा, पर आरती में मेरे लिये भी एक कुर्सी लगानी पड़ेंगी। उनके पिताजी तो पचासी के हो कर कुर्सी की जरूरत वाले बने हैं। मैं तो सत्तर की उम्र में भी पालथी मार कर नहीं बैठ पाता।

अमरकंटक के कांटे चुभने के बाद आज प्रेमसागर को अच्छी नीद आई होगी।

आपने पुष्पेश जैसा व्यक्ति देखा होगा? क्या आपको भी कभी किसी अनजान व्यक्ति से मिला ऐसा अपनापन याद है?

नर्मदे हर! #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #नर्मदाप्रेम


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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