मच्छरों की पीढ़ियां – बेबी बूमर्स से जेन जी का इतिहास

Generation of Mosquitos

अरुणा (हमारी नौकरानी) शाम की पारी में बगीचे में सूखी पत्तियां बटोरने के लिये झाड़ू लगाया करती है। वह मच्छरों से बचाव के लिये मेरी एक पूरी बांह की पुरानी कमीज अपनी साड़ी के ऊपर पहन लेती है। उसके लिये एक ओडोमॉस की ट्यूब भी खरीदी है, वह भी खुले हाथ पैर पर लगाती है। पर बगीचे के मच्छर फिर भी उसे नहीं बक्शते।

बीस मिनट झाड़ू लगाने के बाद वह दस मिनट बैठ कर मच्छर पुराण कहती है। रोज लगभग एक सी बात होती है, पर शायद कहने से मच्छर काटे की चुनचुनाहट कुछ कम होती हो!

मच्छर पुराण में अपना योगदान मेरी पत्नीजी भी देती हैं। सवेरे वे पूजा के लिये फूलों को चुनने के लिये बगीचे में जाती हैं तो ये मच्छर यह लिहाज नहीं करते कि वे घर की मेम साहब हैं। उनको भी सम भाव से ‘चबाते’ हैं। इस तरह पत्नीजी के पास अरुणा से सहानुभूति जताने को समान अनुभव हैं।

उन दोनो का कहना है कि ये नये जमाने के मच्छर हैं। चुपचाप आ कर शरीर पर बैठ जाते हैं। उनके रिफ्लेक्सेज़ भी पुराने जमाने के मच्छरों से अलग हैं। खून पीते नये जमाने के मच्छर को मारना आसान है, पर वे इतने छोटे होते हैं और इतने चुपचाप आते हैं कि बहुधा उनके आने का पता उनके चले जाने के बाद हो रही चुनचुनाहट से ही लगता है।

नये जमाने के मच्छर! मैं कल्पना करता हूं मच्छरों की पीढ़ियों की। और मच्छरों की पीढ़ियां उसी तरह गढ़ डालता हूं, जैसे मानव समाज में होता है।

मच्छरों की पीढ़ियां –

बेबी बूमर मच्छर: (पुराने वाले): बड़े आकार के, आते ही भनभना कर घोषणा करते थे कि “लो, हम आ रहे हैं!” जैसे पुरानी पीढ़ी के लोग आ कर दरवाजे पर खंखारते थे जिससे घर की महिलायें सतर्क हो जाती थीं कि कोई अतिथि आया है।

जेन-एक्स / मिलेनियल मच्छर: थोड़े तेज, कभी भनभनाते, कभी चुप रहते, लेकिन घर में मौजूदगी दर्ज कराते थे। कुछ-कुछ पुराने और नए दोनों रंग में ढले हुए। चपल बेबी बूमर्स से ज्यादा थे। साइज में थोड़े कम। कुछ वैसे जैसे पुराने डेकोटा विमान की जगह नेट (Gnat) फाइटर जहाज।

जेन-ज़ी मच्छर (आजकल वाले): छोटे, फुर्तीले, “no announcement, only action” स्टाइल के। आजकल की सोशल मीडिया वाले अंदाज़ में — bite first, buzz later. बिलकुल गुपचुप, मोबाइल नोटिफिकेशन की तरह — चुपके से खून निकाल लेंगे। जब तक आप नोटीफिकेशन देखें, वे चूस कर जा चुके होते हैं।

जेन-अल्फा और बीटा (भविष्य के मच्छर): शायद AI-enabled हों! Silent Mode में रहेंगे ये। काटने के बाद self-destruct भी कर सकते होंगे अपने आप को। नये जमाने के ड्रोन की तरह। और कौन जाने, ये क्रिप्टो-मच्छर बनकर खून को टोकनाइज़ कर दें। तब हमें भनभनाहट भी नसीब न होगी, और खुजली भी क्रिप्टो-वॉलेट से निकलेगी। खैर इनके बारे में तो आने वाला समय ही बतायेगा! 😄

मच्छरों की पीढ़ियां

खैर, यह तो काल्पनिक पीढ़ीगत सेगमेंटेशन हुआ मच्छरों का। इसको जीव विज्ञानी नहीं मानते होंगे। उनके अनुसार तो ये तीन मुख्य प्रजातियां हैं मच्छरों की – एनाफ्लीज़ और क्युलेक्स मच्छरों को तो हम बेबी बूमर्स ने अपनी साइंस की किताबों में पढ़ रखा है। तीसरी और आजकल दीखने वाली प्रजाति एडेस एजिप्टी है।

एनाफ्लीज़ और क्यूलेक्स मच्छर तो बड़े तालाबों और पानी के बड़े स्रोतों में पनपते हैं। अब उनकी संख्या कम इसलिये हो रही है कि खेत कम हुये हैं, ताल तलैया गड़ही कम होते गये हैं, जलभराव काम हुआ है। उनका स्थान अब कूलर्स, फूलदान, गमले, पुराने टायरों में जमा पानी और प्लास्टिक के कचरे ने ले लिया है। इनमें एडेस एजिप्टी प्रजाति ज्यादा पनपती है।

मच्छरों की तीन प्रजातियां

एडेस एजेप्टी का प्रकोप ज्यादा हो गया है — ये छोटे, चपल और बेहद चालाक होते हैं। ये अक्सर दिन में काटते हैं और बैठते समय इनका शरीर त्वचा के समांतर रहता है। यह मच्छर काटने के बाद चुपचाप उड़ जाता है।

एडेस एजेप्टी वाले ये मच्छर डेंगू, चिकनगुनिया, जीका फैलाने वाले होते हैं। ये पुराने वालों से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं। इन मच्छरों का मूल इजिप्ट अर्थात मिस्र से है। उत्तरी अफ्रीका से ये पूरी दुनियां में फैले हुये हैं। विकीपीडिया के एक वैश्विक नक्शे से इनके फैलाव का अंदाज लग सकता है। नक्शे में जितना गाढ़ा लाल रंग होगा, उतना अधिक उस क्षेत्र में एडेस एजेप्टी का प्रसार है।

भला हो अरुणा और मेरी पत्नीजी के मच्छर पुराण का, जिसने मुझे इस नई प्रजाति – एडेस एजेप्टी के बारे में जानने को प्रेरित किया! आप भी उस जानकारी से अवगत हों और अगली बार जाने कि किस पीढ़ी के मच्छर ने आपको काटा। वह जेन जी वाला था या बेबी बूमर्स युग का! 😂


चित्र चैट जीपीटी से बनवाये हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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