मैने पिछले महीने मिलीपीड्स या भुआलिन पर लिखा था। ये नम वातावरण के जीव हैं। बरसात में निकलते और ब्रीडिंग करते हैं। बरसात खत्म होते समय ये वापस नमी तलाशते मिट्टी में घुस जाते हैं। पिछले सप्ताह बरसात खत्म हो गई थी। आईएमडी ने भी मानसून वापसी की घोषणा कर दी थी। ये मिलीपीड्स हमारे गमलों और खुली मिट्टी में घुसने लगे थे। इधर उधर घूमते ये जीव दिखने कम होते जा रहे थे।

पर पिछले दो तीन दिनों में तो खूब बारिश हुई। बारिश ने मिलीपीड्स को भ्रमित कर दिया है। अब उनकी इधर उधर घूमने की संख्या बढ़ गई है। स्नानागार की दीवारों और फर्श पर वे फिर दिखाई देने लगी हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा होगा कि क्या हो रहा है उन्हें क्या मालुम कि ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेटिक चेंज क्या बला है।
बेचारी बे मौसम की बारिश से बेवकूफ बन रही हैं। अगर पांच सात दिन बारिश और चली तो क्या पता वे पुन: प्रजनन करने लगें और नवजात मिलीपीड्स के झुंड खरामा खरामा बढ़ते हुये दीखने लगें।
मैं बाहर निकल कर अपराजिता की बेल पर रात की बरसात की बूंदें निहारता हूं। मोती जैसी बूंदें कितनी सुंदर लग रही हैं। बरसात का समय बढ़ जाना मुझे अच्छा लग रहा है। पर बेचारी मिलीपीड्स परेशान और भ्रमित हैं। मेरी पत्नीजी को भी अच्छा नहीं लग रहा है – उन्हें आटा पिसवाने के लिये गेंहू सुखाना है, वह नहीं हो पा रहा। चिड़ियां भी अपने गीले पंख लिये दयनीय लग रही हैं। उन्होने भी शायद इस मौसम में बारिश की उम्मीद नहीं की थी।

वर्षा ऋतु के ठिठक कर खड़े हो जाने से सब चकपका गये हैं।
कब जायेगी बारिश?
