मानसून के बाद, दिवाली से ठीक पहले जब खरपतवार की सफाई चल रही थी, तब ईंटों के खंडहर के पास मिट्टी में कुछ चमड़े जैसे अंडे दिखे। काम करते लोगों ने मेरी पत्नीजी को बताया — “धामिन (Rat Snake) के अंडे हैं!” थोड़ी देर बाद यह भी खबर आई कि पास ही वह धामिन थी जो सरकती हुई घर के पीछे वाले बेल के पेड़ पर चढ़ गई थी।
मैंने स्वयं धामिन को नहीं देखा, पर पत्नीजी ने आग्रह किया — “चलो, देख लो! और मोबाइल भी साथ ले लो, फोटो ले लेना।”
पड़ोसी मोनू सफाई करा रहा था। उसने अंडों के चारों ओर सावधानी से ईंटों का छोटा स्तूप बनाकर उन्हें सुरक्षित कर दिया था।
अंडों पर किसी ने हाथ नहीं लगाया — ताकि उनमें मानव गंध या स्पर्श न पहुँचे।

मोनू ने सावधानी से ईंटें हटा कर मुझे दिखाया। गिनती करने पर ग्यारह अंडे निकले — दो में छोटे छेद थे, जिनसे संपोले निकल चुके थे। बाकी नौ अंडे अभी शांत थे, जिनमें जीवन की धड़कनें बस फूटने को होंगी।
चित्र लेकर हमने उन्हें फिर ईंटों से ढंकवा दिया। आशा है कि वे सब सलामत निकलेंगे और आसपास के किसानों के खेतों में अपनी भूमिका निभाएँगे।
धामिन का जीवन चक्र
धामिन के अंडे देने का समय अप्रैल से जुलाई के बीच होता है। लगभग 60 से 80 दिन में बच्चे अंडों को फाड़ कर बाहर आते हैं। मादा साँप उनके साथ नहीं रहती, पर अंडे देने के स्थान के आसपास कुछ दिन तक मंडराती है — शायद उन्हें शिकारी जीवों से बचाने के लिये।
धामिन के नवजात बच्चों के ऊपरी जबड़े में एक अस्थायी दाँत होता है, जिससे वे अंडे का खोल फाड़कर बाहर आते हैं। यह “egg tooth” कुछ दिनों में गिर जाता है — जैसे किसी शिशु की नाल।
इन नवजातों में से बहुत कम जीवित रह पाते हैं। प्रकृति में इन संपोलों के शिकारी भी कम नहीं हैं। औसतन 10–20 प्रतिशत ही वयस्कता तक पहुँचते हैं।
इस हिसाब से ग्यारह अंडों में से शायद केवल दो ही पूर्ण वयस्क धामिन बनेंगे। अगर उनकी औसत उम्र दस वर्ष मानी जाए, तो एक साँप अपने जीवन में करीब चार सौ चूहे खा लेगा। इस प्रकार, इन ग्यारह अंडों का समूह लगभग आठ सौ चूहों से फसल बचा सकता है। यह छोटी संख्या नहीं है — धामिन सचमुच खेती-किसानी का मौन प्रहरी है।
धामिन और मनुष्य का संबंध
धामिन प्रायः 7 से 10 फुट लम्बा, कलाई जितना मोटा और बहुत तेज़ गति से सरकने वाला साँप होता है।
वह सामने पड़ने पर गर्दन फैला कर ऐसा आकार बना लेता है मानो कोबरा हो, और यही उसकी रक्षा का तरीका भी है।

पर डर या भ्रम में लोग उसे विषैला कोबरा समझ कर मार भी देते हैं।
मैंने कई बार लोगों को धामिन मारकर लाठी पर टाँगे ट्रॉफी की तरह घुमाते देखा है —
बेचारे! डर तो है ही — दस में से एक बार कोबरा भी तो निकल सकता है।
गाँव के दृश्य और यादें
मेरे घर-परिसर में भी पहले यह अक्सर दिख जाता था — कभी नाली में, कभी सागौन के पेड़ पर।
गिलहरी के बच्चे इसके शिकार बनते, और नौकरानी इसका नाम सुनकर ही घर में घुस जाती।
कुछ वर्षों से यह दृश्य गायब था। आज बहुत समय बाद, उसके अंडों का यह जखीरा देखकर लगा जैसे मिट्टी ने फिर से एक पुराना संबंध लौटा दिया हो।
संख्या और संरक्षण
धामिन की प्रजाति अभी विलुप्ति के खतरे में नहीं है,
पर गाँवों का तेज़ी से होता शहरीकरण निश्चित ही उनके रहने के स्थानों को सीमित कर रहा है।
संख्या कम हो रही है, यह मानना ही पड़ेगा।
अंतिम अवलोकन
हमने अंडों को फिर से सुरक्षित रख दिया है।
सप्ताह भर बाद देखेंगे कि क्या सभी संपोले निकल चुके हैं या नहीं।
मन यही है कि ये नन्हे जीवन सफाई अभियान की त्रासदी से उबर कर लंबी उम्र पाएं —
और खेतों की रखवाली में लग जाएँ।
क्या विचार है आपका?
नेवला और सांप दोनो सह अस्तित्व में रहते हैं हमारे यहां। इनके अलावा अनेक पक्षी, अनेक कीट और अनेक जंतु हैं। यह पर्यावरण संतुलन बने रहना चाहिये या साफ सफाई के नाम पर इनका सफाया हो जाना चाहिये?
सात लाइनें
रोटी के टुकड़े और बासी सब्जी
निपटाया करो
बात बे बात पर फन मत उठाओ
डीजे पर नाचो
वर्ना मारे जाओगे
बन जाओगे इतिहास।

