राजेंद्रग्राम से अमरकंटक

भुंदकोना ताल

30 जून की नर्मदा परिक्रमा यात्रा रही राजेंद्रग्राम से अमरकंटक तक।

राजेंद्रग्राम मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले का कस्बा है। यह पुष्पराजगढ़ तहसील का मुख्यालय है। कभी शायद बाबू राजेंद्रप्रसाद यहां आये थे तो उन्हीं के नाम पर जगह का नाम राजेंद्रग्राम पड़ गया। शहडोल से अमरकंटक जाने के लिये सीधी सड़क स्टेट हाईवे नम्बर 9A है। यह राजेंद्रग्राम से गुजरती है। यात्रा इस हाईवे पर हुई।

सीधी कहना तो शायद सही न हो। सड़क आगे चल कर मैकल पर्वत की चढ़ाई चढ़ती है। बहुत सारे हेयरपिन बैंड हैं इसपर। राजेंद्रग्राम की ऊंचाई 846मीटर है और अमरकंटक घाट पर 1132 मीटर हो जाती है। अमरकंटक मैकल पर्वत के पठार पर है जिससे सोन, जोहिला और नर्मदा नदियां निकलती हैं।

राजेंद्रग्राम के आगे हरियाली
राजेंद्रग्राम के आगे हरियाली

प्रेमसागर राजेंद्रग्राम में मनोज जायसवाल जी के लॉज में रहे। सवेरे मनोज जी के परिवार के लोग नहीं उठे थे तो वे ही आलू-पोहा और चाय बना कर लाये। एक दिन पहले अपरिचित मनोज जी, एक दिन बाद सवेरे चार बजे उठ कर बाबाजी के लिये नाश्ता बना रहे हैं – नर्मदा परिक्रमा का प्रताप है! इस तरह के असामान्य प्रतापों से बनी है नर्मदा परिक्रमा परम्परा।

राजेंद्रग्राम का चलते हुये चित्र लिया प्रेमसागर ने। सामान्य सा कस्बा। तहसील का मुख्यालय है पर लगता है नगरपंचायत ढीली ढाली है। सड़क किनारे कचरा दिखता है। ऊंचाई वाले स्थान पर जहां हवा चलती हो, गंदगी कुछ हद तक अपने आप दूर होती रहती है। पर यहां का कूड़ा बताता है कि कस्बे को गंदा रखने के लिये नगरपंचायत काफी प्रयास करती है।

प्रेमसागर बांये और मनोज जायसवाल
प्रेमसागर बांये और मनोज जायसवाल

चार साल पहले प्रेमसागर ज्योतिर्लिंग यात्रा के फेर में राजेंद्रग्राम से अमरकंटक गये थे। उस समय का अनुभव और आज का अनुभव कुछ अलग सा है। तब उन्हें प्रवीण दुबे जी की सहायता से वन विभाग के लोग योगदान देते रहे थे। आज उन्हें एकाकी चलना था। उस समय प्रेमसागर के पास इस तरह की यात्रा का अनुभव नहीं था, अब वे देश भर की यात्राओं से तप चुके हैं।

सन 2021 की वह यात्रा सितम्बर महीने में थी। तब वर्षा झेलने के बाद भूस्खलन से खराब हुई सड़क की मरम्मत का काम चल रहा था। घुमावदार घाट खंड की ऊंचाई-नीचाई वाली सड़क पहली बार देखी थी प्रेमसागर ने। तब कहा था कि अगर उन्होने संकल्प न किया होता तो यह यात्रा कभी न करता। और तब से आजतक में प्रेमसागर के आत्मविश्वास में गज़ब परिवर्तन आया है। अब प्रेमसागार सहायता कम, आत्मविश्वास ज्यादा के बल पर यात्रा कर रहे हैं।

सितम्बर 2021 की उस यात्रा की पोस्ट में मार्ग का, प्रकृति का और प्रेमसागर की उस समय की सोच का बहुत गहन विवरण है। उसका अवलोकन रोचक होगा – https://gyandutt.com/2021/09/20/without-resolution-this-journey-was-impossible/

भुंदकोना ताल
भुंदकोना ताल

बीच में एक बड़ा ताल पड़ा सड़क के बांई ओर। भुंदकोना। पिछ्ली यात्रा में प्रेमसागर इसे नजरांदाज कर निकल गये थे। आज भी निकल रहे थे, पर मैने ध्यान से देखने और चित्र लेने को कहा। यह ताल 1350 मीटर लम्बा और 1 किमी चौड़ा है। इसपर बांध बना है। नक्शे में दो नहरें भी दिखती हैं। अनूपपुर जिले में यह खेती के लिये पानी देता होगा।

प्रेमसागर से यह भुंदकोना क्या कह रहा होगा?

भुंदकोना का संवाद

“अरे ओ पाँवों में छाले लिये
पीठ पर थैला लटकाये यात्री!
क्या तुझे दिखता नहीं
तेरे बाँए मैं जलराशि भरे बैठा हूँ—
आकाश को थामे हुए,
हरियाली की चादर ओढ़े हुए?”

पथिक नहीं रुका,
बस नज़र फिराई,
जैसे दूरी माप रहा हो
मोबाइल के नक़्शे में।

“मैं ताल नहीं, ठहराव हूँ!”
तालाब ने आवाज़ दी।
“ठहराव नहीं हो,
मैं तो चलने ही आया हूँ,”
पथिक बुदबुदाया,
और आगे बढ़ गया।

भुंदकोना बस देखता रह गया,
जैसे कोई बुज़ुर्ग गाँव के छोर पर
राह ताकता हो…
जिसे कोई जल्दी में एक नजर देख
निकल गया हो।

प्रेमसागर कदम गिनते किलोमीटर नापते यात्रा करते हैं। उनकी प्रवृत्ति में नदी या ताल पर रुकना नहीं है। यह समस्या आज की नहीं, पिछ्ली सन 2021 की यात्रा के दौरान भी ऐसा ही था। फिर भी अपने मनमाफिक सभी कुछ हो, वैसी कल्पना करनी भी नहीं चाहिये।

पिछली बार उन्होने ऊंचाई पर पंहुच कर उनके कहे पर यह पैराग्राफ है –

सबसे ऊंचे स्थान पर पंहुच कर प्रेमसागर को जो अनुभूति हुई, करीब 1000 मीटर के मैकल पर्वत पर चढ़ कर, उसके बारे में वे कहते हैं कि “लगा कि पहाड़ मेरे से छोटा पड़ गया”!

इस बार भी वैसा ही कुछ हुआ होगा। पर वैसी भावना पर अमरकंटक में रहने की समस्यायें हावी हो गईं। उनके पुराने सम्पर्कों ने फोन ही नहीं उठाये। वहां आश्रम तलाशे, पर वे भरे हुये थे चौमासा व्यतीत करने वाले परिक्रमावासियों से। अंत में थक हार कर एक लॉज में कमरा लिया। कमरे और भोजन पर होने वाले खर्च ने उनका बजट बिगाड़ दिया।

बजट नहीं, ज्यादा कष्ट शायद चालीस किलोमीटर की पैदल यात्रा, ऊंचाई में एक किलोमीटर चढ़ने और रास्ते में हुई असुविधा के बाद पुराने परिचयों का नदारद मिलना रहा होगा। रात साढ़े आठ बजे उन्होने मुझसे बात नहीं की। केवल एक मैसेज भेजा – यात्रा का विश्राम गुप्ता होटल में। फलाने जी फोन रिसीव नहीं कर रहे। पता चला कि कल ही रींवा चले गये हैं। ढिमाके जी को तलाशा, पर वे सरकारी काम से शहडोल में थे। धर्मशाला में जगह नहीं मिला। वहां चतुर्माशा वाले लोग भरे हैं। मजबूरी में लॉज में रहना पड़ा। मेरा कुछ तबियत ठीक नहीं लग रहा है। कल बात करूंगा। नर्मदे हर!

जहां जहां टूरिस्ट होते हैं, जहां जहां शहर हैं, वहां यह उपेक्षा के दर्शन बारम्बार हो रहे हैं। जितनी छोटी जगहें हैं, जितने गांव देहात हैं, वहां लोगों के पास साधन कम पर दिल बड़े मिल रहे हैं। यह प्रेमसागर को गहरे में समझ लेना चाहिये। इसके अलावा उन्हें अपनी अपेक्षायें भी कम करनी चाहियें। लोगों के ड्राइंग रूम की बजाय मंदिर के ओसारे या पीपल की छाया में भी संतुष्ट होना चाहिये। भोजन न मिलते पर सत्तू और गुड़-चने का अवलम्ब सहज लगना चाहिये। प्रेमसागर कहते हैं कि वे इसी तरह के पदयात्री हैं। पर असल में अब वे इस तरह के बचे नहीं।

राजेंद्रग्राम कस्बा
राजेंद्रग्राम कस्बा

खैर, पदयात्री प्रेमसागर हैं, मैं नहीं!

नर्मदे हर! #नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #नर्मदाप्रेम


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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