आत्मवेदना: मि. ज्ञानदत्त आपकी हिन्दी बोलचाल में पैबन्द हैं।


ब्लॉग पर हिन्दी में लिखने के कारण शायद मुझसे ठीक से हिन्दी में धाराप्रवाह बोलने की भी अपेक्षा होती है। लोगों के नजरिये को मैं भांप लेता हूं। अत: जब वेब-दुनिया की मनीषाजी ने मुझसे 10-15 मिनट फोन पर बात की तो फोन रख सामान्य होने के बाद जो पहला विचार मन में आया वहContinue reading “आत्मवेदना: मि. ज्ञानदत्त आपकी हिन्दी बोलचाल में पैबन्द हैं।”

हिन्दी की वर्जनायें और भरतलाल छाप हिन्दी!


उत्तर-मध्य रेलवे के हिन्दी पखवाड़ा समारोह से आ रहा हूं. पखवाड़ा समारोह माने एक राजभाषा प्रदर्शनी, गायन का कार्यक्रम, भाषण, एक प्लेट (पर्याप्त) अल्पाहार, पनीली कॉफी और पुरस्कार वितरण का समग्र रूप. हर साल की तरह इस साल का कार्यक्रम. मुख्य अतिथि के लिये अशोक वाजपेयी जी को बुलाया गया था. वे लपेट-लपेट कर हिन्दीContinue reading “हिन्दी की वर्जनायें और भरतलाल छाप हिन्दी!”

हर मुश्किल का हल होता है – बनाम बेलगाम कविता


कई बार बड़ी अच्छी बात बड़े सामान्य से मौके पर देखने को मिल जाती है. एक बार (बहुत सालों पहले) बड़ी फटीचर सी फिल्म देखी थी – कुंवारा बाप. उसमें बड़ा अच्छा गीत था- आंसुओं को थाम ले सब्र से जो काम ले आफतों से न डरे मुश्किलों को हल करे अपने मन की जिसकेContinue reading “हर मुश्किल का हल होता है – बनाम बेलगाम कविता”

Design a site like this with WordPress.com
Get started