रतनपुर से एक ऊर्ध्व देशांतर रेखा नक्शे पर खींचें तो नर्मदा के दूसरी ओर वह पुनासा से गुजरेगी। पुनासा गांव के पास ही बना है नर्मदानगर, जो इंदिरासागर बांध परियोजना का मुख्यालय है। कुल मिला कर प्रेमसागर रतनिया के आगे जो यात्रा कर रहे हैं वह बांध बनने के पहले का परिक्रमा मार्ग नहीं रहाContinue reading “रतनिया से धर्मेश्वर महादेव”
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बडेल से रतनपुरा (रतनिया)
<<< 5 जून: मालवा के पठार की नदियों के इर्दगिर्द >>> बडेल से जंगल में आगे चले प्रेम बाबाजी। उनकी लाइव लोकेशन नहीं मिल रही थी, पर जब उन्होने चित्र भेजे और बात की तब उनके बारे में पता चला। इस इलाके के जंगल तो हैं ही, नदियां भी हैं। प्रेमसागर ने ज्यादा ध्यान देContinue reading “बडेल से रतनपुरा (रतनिया)”
#नर्मदायात्रा: हर रात नर्मदा की गोद में 60,000 परिक्रमावासी!
*** #नर्मदायात्रा: हर रात नर्मदा की गोद में 60,000 परिक्रमावासी! ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के दौरान यह जानने की उत्सुकता हुई कि एक समय में नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर कितने यात्री होते होंगे?
धारगांव के होटल व्यवसायी राहुल मंडलोई बताते हैं — ऑफ-सीजन में भी रोज़ाना 150–200 यात्री उनके सामने से गुजरते हैं। औसतन मानें तो प्रतिदिन 300 नये लोग यात्रा पर निकलते हैं और परिक्रमा पूरी करने में छह महीने लगते हैं।
इस अनुमान से यह बात निकलती है कि किसी भी एक समय पर लगभग 60,000 परिक्रमावासी मार्ग में होते हैं — जो हर रात किसी छांव, किसी आश्रम, किसी दुआर पर विश्राम करते हैं।
इस विशाल संख्या के लिये भोजन और रात्रि-विश्राम की जो व्यवस्था होती है, वह किसी सरकारी या संस्थागत योजना की नहीं, बल्कि श्रद्धा आधारित पारंपरिक तंत्र की देन है। आश्रम, स्थानीय परिवार, और निजी लोग — सब मिलकर इस सेवा को निभाते हैं।
इस पोस्ट में ऐसे अनेक रंग हैं — सेवा करने वाले, आजीविका खोजते परिक्रमावासी, प्रायोजित यात्री और उनका डाक्यूमेंटेशन!
धर्म और अर्थ की यह जुगलबंदी गहरी है — कहीं प्रेरणास्पद, कहीं चौंकाने वाली।
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नर्मदे हर! जै माई की!
(चित्र – राहुल सिंह मंडलोई, परिक्रमा में रास्ता, एक विश्रामस्थल का बोर्ड और रात का भोजन)
