“भईया, जब जंगल पार कर बस से उतरा तो मुझे चक्कर आ गया। सहारे से मैं डिवाइडर पर बैठा और हाथ से इशारा कर एक दुकान वाले को पानी लाने का अनुरोध किया। पानी पी कर अपने पर छींटे मारे और तब आप से बात की। आगे चला नहीं जा रहा था।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
“भईया, जब जंगल पार कर बस से उतरा तो मुझे चक्कर आ गया। सहारे से मैं डिवाइडर पर बैठा और हाथ से इशारा कर एक दुकान वाले को पानी लाने का अनुरोध किया। पानी पी कर अपने पर छींटे मारे और तब आप से बात की। आगे चला नहीं जा रहा था।