“कल एक बारात देखी भईया। उसके कुछ नहीं तो चार डीजे थे। हर एक के गाने का शोर इतना था कि क्या बज रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। इन समारोहों में पैसे का प्रदर्शन ही सम्पन्नता है। शादी में बीस-पचीस लाख प्रदर्शन में ही खर्च होते हैं।”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
“कल एक बारात देखी भईया। उसके कुछ नहीं तो चार डीजे थे। हर एक के गाने का शोर इतना था कि क्या बज रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। इन समारोहों में पैसे का प्रदर्शन ही सम्पन्नता है। शादी में बीस-पचीस लाख प्रदर्शन में ही खर्च होते हैं।”