वहां से गुजरते हुये; और मैं बहुधा पैदल ही गुजरता था; छनती रतलामी सेव की गंध अभी भी यादों में है। उनकी भट्टियां, बनियान पहने एक हांथ से झारा साधे और दूसरे से बेसन की लोई दबा कर नमकीन झारते लोगों की छवियां मन में बनी हुई हैं।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
वहां से गुजरते हुये; और मैं बहुधा पैदल ही गुजरता था; छनती रतलामी सेव की गंध अभी भी यादों में है। उनकी भट्टियां, बनियान पहने एक हांथ से झारा साधे और दूसरे से बेसन की लोई दबा कर नमकीन झारते लोगों की छवियां मन में बनी हुई हैं।