एक बच्चे को पढ़ाने से अच्छा कोई मानसिक व्यायाम नहीं हो सकता। उसमें आपके ज्ञान, धैर्य, बच्चे के कहे, अनकहे को समझना और उसके लिये एक रोल मॉडल के पैमाने पर खरा उतरना – यह सब करना होता है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
एक बच्चे को पढ़ाने से अच्छा कोई मानसिक व्यायाम नहीं हो सकता। उसमें आपके ज्ञान, धैर्य, बच्चे के कहे, अनकहे को समझना और उसके लिये एक रोल मॉडल के पैमाने पर खरा उतरना – यह सब करना होता है।