इंटरनेट की जाली पर कई अलग अलग समूहों मे अनेक प्रजातियों के चमगादड़ लटक रहे हैं. ये चमगादड़ तेजी से फल फूल रहे हैं. इनमें से एक प्रजाति हिंन्दी के चिट्ठाकारों की है. उनकी कालोनी का दर्शन मै पिछले दो दिनों से कर रहा हूं. ये चमगादड़ बुद्धिमान टाइप के हैं. आपस में ‘अहो रूपमContinue reading “‘अहो रूपम – अहो ध्वनि’, चमगादड और हिन्दी के चिट्ठे”
Monthly Archives: Feb 2007
दीनदयाल बिरद संभारी
अर्जुन विषादयोग का समाधान ‘मामेकं शरणमं व्रज:’ में है.