
अवसाद से ग्रस्त होना, न पहले बडी बात थी, न अब है। हर आदमी कभी न कभी इस दुनिया के पचडे में फंस कर अपनी नींद और चैन खोता है। फिर अपने अखबार उसकी मदद को आते हैं। रोज छपने वाली – ‘गला रेत कर/स्ल्फास की मदद से/फांसी लगा कर मौतों की खबरें’ उसे प्रेरणा देती हैं। वह जीवन को खतम कर आवसाद से बचने का शॉर्ट कट बुनने लगता है।
ऐसे में मंत्र काम कर सकते हैं। मन्त्र जाप का अलग विज्ञान है। मैं विज्ञान शब्द का प्रयोग एक देसी बात को वजन देने के लिये नहीं कर रहा हूं। मंत्र आटो-सजेशन का काम करते हैं. जाप किसी बात या आइडिया को अंतस्थ करने में सहायक है।
अर्जुन विषादयोग का समाधान ‘मामेकं शरणमं व्रज:’ में है। अर्जुन के सामने कृष्ण उपस्थित थे। कृष्ण उसके आटो-सजेशन/रिपीटीशन को प्रोपेल कर रहे थे। हमारे पास वह सुविधा नहीं है। हमारे पास मंत्र जाप की सुविधा है। और मंत्र कोई संस्कृत का टंग-ट्विस्टर हो, यह कतई जरूरी नहीं। तुलसी बाबा का निम्न पद बहुत अच्छा काम कर सकता है :
दीन दयाल बिरद संभारी. हरहु नाथ मम संकट भारी.
अपडेट (फरवरी 4’ 2019) – यह पोस्ट 12 साल बाद देख रहा हूं। तेईस फरवरी 2007 की पोस्ट। ब्लॉग की पहली पोस्ट अवसाद से प्रारम्भ हो रही है। … यह प्रवचन नहीं था। आत्मकथ्य था। मैं स्वयम् तलाश कर रहा था अवसाद से उबरने के तरीके। एक दिनेश जी मिले थे नारायण आश्रम में। रिटायरमेण्ट के बाद उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। वे आश्रम में रहने और उसका अस्पताल मैनेज करने लगे थे। उन्होने मुझसे तुलसी बाबा की इस चौपाई की बात की थी।
चौपाई का प्रयोग, बतौर ऑटो सजेशन, मैने कुछ समय तक किया था। करीब दो साल तक रहा वह अवसाद का समय। और उससे उबारने में ब्लॉग के नियमित लेखन ने बहुत सहायता की।
वाह .. यह बात आपने कितनी सरलता से समझा दी। जो मैं लोगों को नही समझा पाता।शत शत नमनरिपुदमन
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