कलजुग केवल चुगद अधारा!


चुगद बहुत पवित्र शब्द है। महालक्ष्मी का वाहन। कलयुग में महालक्ष्मी अधिष्ठात्री देवी हैं। उनका वाहन माने प्रधानमंत्री जी छाप बड़मनई का ओएसडी (ऑफीसर ऑन स्पेशल ड्यूटी)। इस लिये फुरसतिया जब अपने को चुगद घोषित करते हैं तो मन करता है कि इंक ब्लॉगिंग की तकनीक के जरीये उनसे ‘चुगद’ का अप्वॉइण्टमेण्ट ऑर्डर जो महालक्ष्मीजी के दफ्तर से जारी हुआ होगा – देखने को मांगा जाये।

नालन्दा विशाल शब्द सागर –

चुग़द [संज्ञा पु.] (फा.) १- उल्लू पक्षी।

अभी-अभी करवा चौथ हो कर गया है। हर घर मे‍ चुगद की पूजा हो कर चुकी है। सुकुल इसलिये शायद करवा चौथ के मूड में थे जो स्वगान गा उठे – OWL फुरसतिया जी आप चुगद हैं। जब हम यह लिख रहे हैं, तब तक जलन के मारे 10 से ज्यादा (जो फुरसतिया का टिप्पणी लेवल का बेंचमार्क है) लोग उन्हे ललकार चुके हैं कि वे कैसे यह क्लेम कर सकते हैं कि वे चुगद हैं।

कुल मिला कर यह प्रथम दृष्ट्या प्रतीत होता है कि सुकुल जी का क्लेम जाली है – न तो वह स्वीकार होने जा रहा है, न ही उसके लिये कोई आर्बीट्रेटर बैठाया जायेगा। वे और कोई पक्षी अपने परिचय में चुन लें; चुगद तो प्राइज़-पोस्टिंग है – बड़ी जोड़ तोड़ से मिलती है। बहुत लॉबीइंग करनी होती है उसके लिये। अब देखिये रोनेन सेन कूटनेताओं को ‘हेडलेस चिकेन’ कहने के बाद भी प्रमाणित चुगद नहीं बन पाये और सुकुल अपनी ही घोषणा से बनना चाहते हैं।

नो-नो। नॉट अलाउड। कलयुग में चुगद ही मूल है, वही आधार है। उसपर फुरसतिया केवल लम्बी ब्लॉग पोस्ट लिख कर कब्जा कर लें; यह न नेचुरल जस्टिस है और न अननेचुरल जस्टिस।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

15 thoughts on “कलजुग केवल चुगद अधारा!

  1. अरे भाई ! समझ काहे नहीं रहे हैं . यह विचार की पश्चिमी दृष्टि है . फ़ुरसतिया महाराज टैक्नोलॉजी पढे हैं अउर कम्प्यूटरवा पर खिट-खिट करते हैं . अब अगर बीएचयू मा पढे हैं तो का जनम-जिंदगी पुरबिया दृष्टि ( मतबल ‘ओरिएण्टल’दृष्टि ,पूर्वी उत्तमप्रदेश का दिरश्टि नाहीं ) से सोचबे करेंगे . अरे ऊ जानते हैं कि पछांह में ( कठोर-मुलायम अउर हरित-अजित का इलाका नाहीं,यूरोपीय दृष्टि अउर मिथकवा मा) पारम्परिक रूप से उल्लू होत है ज्ञान अउर बुद्धिमत्ता का प्रतीक, आपन हंस की माफ़िक . एही लिये ऊ खुद को चुगद लिखे-बोले हैं . बहुतै शातिर दिमाग का आदमी है ई फ़ुरसतिया. एकदम ब्लॉग जगत का चार्ल्स शोभराज .खुद की खुल्लम-खुला डंके की चोट तारीफ़ कर गया अउर जनता को पतै नहीं चला . ई तौ ज्ञान जी गंगा तट पर चैतन्य अवस्था मा चिलम फूंकत रहे सो ताड़ गये . वरना लोक-जन सब विलापित अवस्था मा बुड़बक का माफ़िक टिपिया रहा था . केतना भोला पब्लिक है इण्डिया का .

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  2. अगर शिलालेखों और ताम्रपत्रों पर आप विश्वास करें तो पढ़ें उनपर साफ लिखा है की सबसे पुराने चुगद हम है. सं १९५५ से ही हमारे मास्टरों ने जो हमें चुगद कहना शुरू किया तो ये सिलसिला १९७२ तक जब तक हम पढ़ते रहे चलता रहा. नौकरी के दौरान समझ गए की मास्टर ठीक ही कहते थे हम लक्ष्मी के वाहन ही हैं खट ते रहते रहते हैं लक्ष्मी को अपने अलावा किसी दूसरे के घर पहुँचने को. नीरज

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  3. हा हा हा …भई मजा आ गया इस प्यारी सी नौक झौक से…।यानि कि हर कोई चुगद कहलाने को तैयार……इसमें महिलाएं कहां आती है जी…।लक्ष्मी?गधा भी किसी का वाहन है न, याद नही आ रहा किसका

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  4. भाई मुझे भी चुगद बनने का एक मौका दें….मैं उचित उम्मीदवार हो सकता हूँ….मेरे पिता जी अक्सर मुझे प्यार से उल्लू भी कहते थे….पर पट्ठा नहीं कहते थे….

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  5. असली चुगदोम् ना जो चुगदम् अस्तचुगदोम् च जो चुगदोम् ना डिक्लेयर अस्तअसली चुगद वह नहीं है, जो चुगद होता है, असली चुगद वह है,जो चुगद होने से इनकार करता है। चुगद की भौत वैल्यू है, भुग्गू बनकर वह मलाई खा सकता है। चुगद लक्ष्मी का ओएसडी है,इससे पता चलता है कि कि चुगद असरदार पार्टियों की पहली चाइस है। अनूपजी राग दरबारी के विकट पाठक हैं, उसमें उन्होने पढ़ा होगा कि शांति दूत के कारोबार में दोनों फरीकों से पिटाई खाने की तैयारी होनी चाहिए। अनूपजी शांति मचा रहे हैं। मचाने दीजिये।

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  6. शिवकुमार मिश्र> शुकुल जी का क्लेम क्या केवल लम्बी पोस्ट पर आधारित है?बिल्कुल नहीं। सुकुल लिखते बहुत मस्त हैं। पर मुंशी प्रेमचन्द अगर कहें कि धनपतराय चुगद हैं – तो मान लेंगे? सर्टीफिकेट नहीं मांगेंगे? :-)

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  7. भूतपूर्व महामहिम कलाम साहब ने कहा था- हमें अपने लक्षय ऊंचे रखने चाहिये। सो रखे गये। आप टिपिकल इलाहाबादी की तरह हमारी क्षमता पर संदेह कर रहें हैं।लेकिन हम कहते हैं- जेहि पर जाकर सत्य सनेहू। मिलहिं सो तेहि नहिं कछु सन्देहू॥

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  8. शुकुल जी का क्लेम क्या केवल लम्बी पोस्ट पर आधारित है?…..अगर ऐसा है तो हम आज से ही अपनी पोस्ट की लम्बाई बढ़ा देते हैं…..दौड़ में हम भी हैं, भइया………:-)

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  9. मुझे शुतरमुर्ग का स्वभाव देखते हुये,जो अपनी खोपड़ी मिट्टी में घुसेड़ लेता है कि कोई उसे देख नहीं पा रहा..और निश्चिंत हो लेता है…चुगद की जगह भाई फुरसतिया अगर शुतरमुर्ग कहें तो कैसा रहेगा. जबकि उन पर सबकी नजर है.

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  10. नो-नो। नॉट अलाउड। आप फुरसतिया पोस्ट की मांग करके इतनी मुन्नी पोस्ट क्यो सरका रहे हैं जी.मजा नहीं आया आज. :-)

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