कमेण्ट मॉडरेशन बड़ी वाहियात चीज है। अगर आप अपने पाठकों से जुड़ाव महसूस करते हैं तो यह आपको इण्टरनेट और कम्प्यूटर से दूर नहीं जाने देती। तो फिर मेरे जैसा आदमी, जो टिप्पणी मॉडरेशन के खिलाफ लिख चुका था, मॉडरेशन को क्यों बाध्य हुआ?
इस बारे में चर्चा होनी चाहिये कि सुस्पष्ट व्यक्तिगत टिप्पणी नीति पाठक/ब्लॉगर आवश्यक मानते हैं या नहीं।
चित्र में टच-स्टोन
पहले जब मुझे पढ़ने वाले और टिप्पणी करने वाले कम थे, तो हम पर्सन-नॉन-ग्राटा थे।
हमारे लेखन या टिप्पणियों से किसी के पेट में दर्द नहीं होता था। मेरी टिप्पणियों में और लेखों में कभी-कभी तल्खी अवश्य झलकती है। वह व्यक्तित्व का अंग है। शायद दुर्वासा के गोत्र में होऊं। लिहाजा जब कुछ ब्लॉग-यातायात बढ़ा ब्लॉग पर तो लैम्पूनर्स (निन्दक) भी आये।
स्वस्थ निन्दा खराब नहीं लगती, वरन सोचने को ऊर्जा प्रदान करती है। पर गाली गलौज और अश्लीलता को जायज मानने वाले और व्यर्थ ईश निन्दा में रुचि लेने वाले भी इस ब्लॉग जगत में हैं। पहले मुझे लगा कि उनके लिये एक टिप्पणी नीति की आवश्यकता है। मैने आनन-फानन में बनायी भी। वह यहां पर है। वह नीति मुझे ब्लॉग पोस्ट के रूप में दिखाने की जरूरत नहीं पड़ी। मैने साथ में टिप्पणी मॉडरेशन का निर्णय लिया। और मुझे याद नहीं आता कि एक आध बेनामी टिप्पणी के अलावा कभी मुझे कोई टिप्पणी हटानी पड़ी हो। ब्लॉग जगत में लोग जिम्मेदार ही हैं और अगर उन्हे पता रहे कि खुराफात का स्कोप नहीं है तो और भी जिम्मेदारी से काम लेते हैं।
इस टिप्पणी नीति के इतर मैने कुछ दिनों पहले यही निर्णय लिया है कि अंग्रेजी में भी टिप्पणियों का स्वागत करूंगा।
अपने ब्लॉग पर तो नहीं पर आलोक 9211 के ब्लॉग पर एक मामला मुझे मिला। इसमें आलोक ने आगे ‘बिल्लू पीछे सेब’ के नाम से पोस्ट लिखी है। इस पर आयी दो विवादास्पद टिप्पणियों को आलोक ने ब्लॉग पर रखने का निर्णय लिया। आलोक की पोस्ट और टिप्पणियों का आप अवलोकन करें। यह पोस्ट माइक्रोसॉफ्ट के लिये अप्रिय है। एक बेनाम सज्जन ने आलोक को माइक्रोसॉफ्ट के प्रति अनग्रेटफुल पिग (अकृतज्ञ सूअर) कहते हुये अंग्रेजी में टिप्पणी की है। उसपर अरविन्द जी ने मां की गाली देते हुये उस अंग्रेजी में टिप्पणी करने वाले को ललकारा है। आलोक ने अपनी टिप्पणी नीति का हवाला दे कर दोनो टिप्पणियों को रिटेन करना जस्टीफाई किया है।1
मैं आलोक के पक्ष-विपक्ष में नहीं जा रहा। मैं केवल यह प्रसन्नता व्यक्त कर रहा हूं कि आलोक के पास टिप्पणी पॉलिसी का टच-स्टोन है जिसपर वे तोल कर टिप्पणी रखने/हटाने का निर्णय करते हैं। शायद और ब्लॉगरों के पास भी अपनी नीति हो। कृपया आप आलोक के तर्क भी उस पोस्ट पर देखें।
इस बारे में चर्चा होनी चाहिये कि सुस्पष्ट व्यक्तिगत टिप्पणी नीति पाठक/ब्लॉगर आवश्यक मानते हैं या नहीं।
1. वैसे; आलोक 9211 वाला उक्त मामला मेरे साथ होता तो मैं दोनो टिप्पणियों पर रबर फेर देता! आलोक मनमौजी हैं, जापानी से निकल थाई भाषा में टहल रहे हैं। पर मेरे लिये हिन्दी माँ है तो अंग्रेजी मामी! कोई दिक्कत नहीं अंग्रेजी से। और ब्लॉगर.कॉम को भी मैं दान की बछिया मानता हूं – उसके दांत नहीं देखे जाते। गूगल जी को हिन्दी में नफा नजर आयेगा तो हिन्दी ब्लॉगर.कॉम अपने से चमकदार बनेगा। ब्लॉगर की पोल से क्या फर्क पड़ेगा; यह मैं किनारे बैठ कर देखता रहूंगा।
चलते-चलते : कल संजय तिवारी का यह लेख पढ़ा। टिप्पणी करने के पहले रुक गया। लिखा था - ‘बिना पूरा पढ़े, टिप्पणी न करें’। पूरा पढ़ना क्या होता है? आत्मसात करना? आत्मसात करने पर टिप्पणी क्या निकलेगी? उहापोह में मैं रुक गया। अच्छा हुआ, नहीं तो शायद अण्ट-शण्ट लिखता। बिना पोस्ट पढ़े टिप्पणी करने को दिखाने/न दिखाने के विषय को संजय अपनी टिप्पणी नीति से जोड़ सकते हैं।

आसमान की ओर थूकने वाले का हश्र कौन नही जानता ? जो कुत्सित विचारों वाला प्राणी होता है उसका मानसिक हालचाल भी कुत्सित होता है , किस किस पर ध्यान दिया जाए , किस-किस को रोया जाए, किस- किस को गाया जाए ? मेरा विनम्र सुझाव है आदरणीय ज्ञान जी आपको कि ऐसी भद्दी टिप्पणियों को निकाल देना हीं उचित होगा .क्योंकि व्यक्ति रातों-रात न अपने भाई-बहन -पत्नी -सखा और रिश्तेदारों को बदल सकता है और न समाज के कुत्सित लोगों को मगर रातों- रात व्यक्ति स्वयं को जरूर बदल सकता है , बेहतर यही होगा कि ऐसी टिप्पणियों को अविलंब लेखक द्वारा हटा दिया जाय !लेकिन अगर आप वास्तव में चाहते हैं की ब्लोग जगत से गालिबाजों की छुट्टी हो तो कृपया इतना करें कि उनकी किसी भी तरह से चर्चा न करें.आपका कहना सही है,मार्गदर्शन किया है उसके लिये आभार.
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सहमत हूँ जी टोटली सहमत.
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ज्ञान भैया एक बार किसी समझदार आदमी को किसी सज्जन ने एक चिट्ठी भेजी. चिट्ठी में गलियां लिखीं थीं. पत्र का जो पावक था उसने चिट्ठी पढी और उसे बैरंग वापस लौटा दी. उस वक्त वहाँ एक ऐसे सज्जन भी मौजूद थे जिन्हें पता था की चिट्ठी में लिखा क्या है. उनसे रहा नहीं गया, पूछ बैठे की भाई चिट्ठी का जवाब लिखने के बजाय चिट्ठी ही क्यों लौटा दी. जानते हैं उसने क्या जवाब दिया. उसने कहा की साहब इसमें जो चीज है वो मुझे पसंद नहीं आई और हमारे यहाँ रिवाज है कि जो चीज पसंद न आए, वह भेजने वाले को ही लौटा दी जाती है. गाली लिखने वालों के लिए टिप्पणी माडरेशन की जरूरत नहीं है. यहाँ तक की उनकी चर्चा भी करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यही उनका उद्देश्य है. जब हम उन्हें बदले में गालियाँ देते हैं यानी उनकी चर्चा करते हैं तो अपने इरादे में सफल हो जाते हैं. चाहिए यह की हम उनकी चर्चा ही न करें. बस जो वे भेजते हैं उन्हें चुपचाप बैरंग लौटा दें. अगर इनमें उनमें हिम्मत होगी तो वे सामने आएँगे फिर हाथ-पैर से निपट लेंगे. लेकिन अगर आप वास्तव में चाहते हैं की ब्लोग जगत से गालिबाजों की छुट्टी हो तो कृपया इतना करें कि उनकी किसी भी तरह से चर्चा न करें.
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नीति तो बढ़िया है आपकी पर मुझे लगता है मॉडरेशन ज़रुरी है!!
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हरेक चिट्ठे की अपनी टिप्पणी-स्वीकार की नीति होनी चाहिये. इस मामले में पहल करके आपने जो मार्गदर्शन किया है उसके लिये आभार.सारथी पर अभी तक मॉडरेशन की जरूरत नहीं आई है. ईश्वर का शुक्र है. शायद कल जरूरत पड जाये. तब आपके समान एक लिखित नीति प्रदर्शित कर देंगे — शास्त्री
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