अतिथि पोस्ट में एक दिन का आराम?(!)


आलोक ९२११ ने ’दांतो की देखभाल – हल्दी का प्रयोग’ पर टिप्पणी की थी – ’चलिए। ज्ञान जी का हफ़्ते में एक दिन तो आराम हो ही गया’। उनका आशय अतिथि पोस्ट में काम का बोझ अतिथि पर शिफ्ट होने से था। मैं उस आराम पर लिखना चाहता हूं। पंकज जी ने अगले सप्ताह की पोस्ट के लिये मसाला भेज दिया है। साथ में चित्र भी हैं। कायदे से तो मुझे वह यथावत टिका देना चाहिये। वह काम मैं १० मिनट में कर सकता हूं।

पर उसमें कैच है। जिस पौधे/औषधि को वे अपने लेख में बता रहे हैं, उसे मैं जानता नहीं। मैं अपने कर्मचारियों को बुला कर पूछता हूं। वे भी कुछ साफ़-साफ़ नहीं बता पाते। फिर मैं और काम में लग जाता हूं। कुछ देर बाद एक वरिष्ठ कर्मचारी फोन पर बताते हैं – यह फलाना पौधा (केवड़ा) है। उसकी पत्तियों में सुगन्ध होती है।

मैं पंकज जी को ई-मेल कर पुष्टि करना चाहता हूं। उनका जवाब आता है – "नहीं यह केवड़ा नही है। मुझसे एक (वाराणसी के) किसान काशी विश्वनाथ के प्रसाद के साथ कुछ वर्षो पहले घर पर आकर मिले थे। वे बडे इलाके में इसे (पौधे को) लगा रहे है। यदि उनका फोन नम्बर मिला तो आपको भेज दूंगा। घर मे बड़ों से पता करियेगा। वैसे आपकी इतनी रूचि देखकर अच्छा लगा।"

मेरे मित्र रायपुर के हैं। श्री दीपक दवे। इलाहाबाद रेल मण्डल के मण्डल रेल प्रबंधक। रायपुर में पंकज जी के पड़ोसी हैं। उनसे इण्टरकॉम पर पूछता हूं। वे बताते हैं कि यह औषध उनके बंगले में है। कुछ देर बाद समय निकाल कर मैं उनके चेम्बर में जा धमकता हूं। वे बताते हैं कि पंकज जी के ब्लॉग पर उनके रायपुर के घर के बगीचे के भी चित्र हैं। अब वे कल सवेरे यह पौधा मुझे ला कर देंगे। उस पौधे को मेरी पत्नी गमले में लगायेंगी। उसके फोटो के साथ अतिथि पोस्ट अगले बुधवार को आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा। साथ में होंगे पौधे के साथ हमारे अनुभव भी।Gyan(237)

« अपने चेम्बर में श्री दीपक दवे, डी.आर.एम., इलाहाबाद रेल मण्डल।

यह जुनून ही है, कि जो प्रस्तुत किया जाय मेरे ब्लॉग पर, उसके बारे में जितना हो सके मैं जानूं और जितना बेहतर बन सके, उस प्रकार से प्रस्तुत करूं। इसलिये अतिथि पोस्ट देने से एक दिन का आराम तो शायद नहीं हुआ। उल्टे इस प्रकार का उद्यम करना पड़ रहा है। पर लाभ यह हुआ कि मेरे ब्लॉग पर विविधता बढ़ी है, और वह उद्यम खलता नहीं है!

मैं नहीं जान पा रहा कि यह अतिथि पोस्ट का प्रयोग आप लोगों को कैसा लग रहा है। पर इसमें एक अलग प्रकार का आनन्द है। मेरी पत्नी पिछली अतिथि पोस्ट पढ़ कर रात में सोने से पहले दांतों में हल्दी लगा कर १०-१५ मिनट मौन धारण करने लगी हैं – बड़ा अच्छा लगता है। Happy         


Shoes मित्रों, कल यह समझा गया कि मैं रेलवे के चमकदार सैलून में चलता हूं; तो शाह-खर्च होऊंगा। तीन बार तल्ला बदलाया जूता तो कदापि नहीं पहनता होऊंगा – केवल अलंकारिक प्रयोग कर रहा होऊंगा। मैं यह अपने तीन बार तल्ला बदलाये जूते का फोटो ही ठेल दे रहा हूं। आप ही देख लें कि कितना फ्रूगल हूं और कितना शाहखर्च। मोजों में भी अधिकांश अंगूठे के पास छेद वाले हो जाते हैं और वही चलते हैं। फ्रूगेलिटी (frugality – मितव्ययता) गरीब की बपौती नहीं होती। वरन गरीब बहुधा गरीब इसलिये होता है कि वह मितव्ययी नहीं होता। सैलून सरकार देती है; जूता सरकार नहीं बांटती।Sad  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “अतिथि पोस्ट में एक दिन का आराम?(!)

  1. बजरिये अवधियाजी हमारा एक नए ज्ञानदा से साबका पड़ने लगा। जूते की तस्वीर तो आपने दिखा दी पर इसमें वह सिर्फ चमकदार दिख रहा है। तल्ले वाली बात साबित करने के लिए उलटी तस्वीर भी भेजी होती :) क्या सचमुच आप ऐसी बातों से घबराते हैं ?

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  2. वैसे आपका यह अतिथि पोस्ट भी अन्य पोस्ट की तरह मजेदार रहा ,मीनाक्षी जी ने ठीक हीं कहा है कि -आपका चिट्ठा तो अब रंगबिरंगे महकते फूलों की बगिया बन गई . बहुत सुंदर इसे जारी रखें !

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