मैं अस्पताल से घर लौटा हूं। कुल चार रातें काटीं मेरी माताजी ने वहां पर। एक रात में मैं उनके साथ रहा। बाकी तीनों दिन मेरे पिताजी उनके साथ रात में रहे। उनके पास हम एक मोबाइल फोन रख कर आते थे – किसी आपातकालीन संप्रेषण के लिये। मोबाइल फोन उन्हें प्रयोग करना नहीं आता। मैने स्पीड डायल से अपना फोन नम्बर सेट कर दिया और उन्हें बता दिया कि कैसे एक अंक को देर तक दबाये रखने से मेरा फोन डायल हो जायेगा और कैसे वे इनकमिंग कॉल को अटेण्ड और उसे समाप्त कर सकते हैं। तीन दिन में यह कोचिंग कई बार दोहरायी मैने। पर अन्तत: भी वे यह उपकरण ठीक से प्रयोग करने में सफल नहीं रहे।
अपने कार्यकाल में वे एक सिविल इंजीनियर रहे। गैरीजन इंजीनियर के पद से रिटायर हुये। कैसे हो सकता है कि साधारण सा उपकरण प्रयोग करना न आये? यह जानने को मैने उनसे मैने घुमा फिरा कर बात की। वे बोले कि बहुत सी चीजें हैं, जिनमें उन्हे रस ही नहीं आ रहा है।
जीवन के कृत्यों में रस न आना – यह बुढ़ापे की निशानी है – शर्तिया। मैं आस पास जीवन में रत लोगों की तलाश करता हूं। ऊर्जा से लबालब लोग। मुझे दो नर्सें और डाक्टर इस प्रकार के मिलते हैं। वे अपने कार्य में पर्याप्त दक्ष हों; ऐसा नहीं है। पर वे ऊर्जा से भरे हैं – काम कर रहे हैं और उस प्रक्रिया में सीख रहे हैं। अगर मैं अपनी छिद्रान्वेंषण की प्रवृत्ति से छीलने लगूं – तो शायद कई गलतियां गिना सकता हूं उनमें। पर वे इतना जबरदस्त कंसंट्रेटेड पैकेट ऑफ इनर्जी हैं, कि उनपर मैं मुग्ध हुये बिना नहीं रहता। क्या हैं उनकी ऊर्जा के सूत्र?
रीडर्स डाइजेस्ट के स्पेशल कलेक्शन में पढ़े एक लेख में मुझे इस अगाध ऊर्जा के कुछ सूत्र मिलते हैं।1 वे इस प्रकार हैं –
- कभी कभी जीवन में अच्छा कार्य (पढ़ें – नैतिक और परोपकार युक्त कार्य) करते रहें। इसका अर्थ प्रचण्ड शहीदाना कार्य करना नहीं है। किसी की सहायता, कोई गलत को ठीक करना, किसी को क्षमा कर देना जैसे कार्य। ये कार्य ऐसे न हों जो सीधे आपको फायदा पंहुचाते हों। इससे आप ऊर्जा के बड़े स्रोत से स्वत: जुड़ जायेंगे।
- अपने आपको उत्साह से एक्स्पोज करते रहें। इमर्सन ने कहा था – "वह आदमी जो अपने कार्यों में उत्साह से परिपूर्ण है, उसे किसी से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। दुनियां में सभी अवसर उनकी पंहुच में आने को आतुर हैं जो अपने काम से प्यार करते हैं। बिना उत्साह के कोई महान उपलब्धि नहीं हो सकती।"
- अपनी छाया से बाहर निकलें। अर्थात अपने आपको बहुत निर्दयता से न मापें। अपनी कमियों और कमजोरियों का सतत छिद्रान्वेषण न करते रहें। अपनी विशेषताओं के लिये अपने आप को यदा-कदा क्रेडिट देते रहें। अपने आप के प्रति उदारता अपने अन्दर के हीन भाव और अपराधबोध को हटाने में सहायक होते हैं। ये हीन भाव और अपराध बोध आपके अन्दर छिपी ऊर्जा के अवरोधक होते हैं और अवरोध हटाने पर अबाध ऊर्जा प्राप्त होती है।
- कोई ऐसा काम ढ़ूंढ़ें, जो किया जाना हो और उसे करने लगें।
- ये सभी सूत्र अलग अलग लगते हैं। और भी सूत्र होंगे अगाध ऊर्जा के। पर उन सब के बीच एक उभयनिष्ठ सूत्र है – आप जिन्दगी से प्रेम करें और यह उसी प्रकार आपसे प्रेम करेगी।
अस्पताल के मननशील माहौल से निकल कर शीघ्र मैं अपने काम में लग जाऊंगा। और तब यदा कदा अवलोकन पर यह पोस्ट ही याद दिलायेगी कि ऊर्जा के अगाध स्रोत को सतत पाया और अपने में कायम रखा जा सकता है!
1. यह लेख रीडर्स डाइजेस्ट के "बेस्ट ऑफ इन्स्पीरेशन" नामक स्पेशल कलेक्शन में "Aurthur Gordon’s Secret of Self-Renewal" शीर्षक से है।

दिनेश जी ने सही कहा. हम भी माताजी के स्वास्थ्य के बारे में जानने को उत्सुक हैं. जहाँ तक उर्जा की बात है… आपकी हर पोस्ट से हम तो सकारात्मक उर्जा लेते रहते हैं.
LikeLike
मेरे पिताजी भी कई चीजों कि तरह कंप्यूटर में रस ना होने की वजह से कुछ भी नहीं जानते हैं.. मगर उन्हें अपने बच्चों में कुछ ज्यादा ही रस आता है, तभी तो उन्हें मेरी कंप्यूटर की भाषा ना समझ में आते हुये भी मेरे सारे प्रोजेक्ट्स के बारे में पूछते हैं..आपकी माता जी का हाल जानने के लिये मैं भी आतुर हूं..
LikeLike
हम आपकी ऊर्जा से प्रभावित है। आपको सक्रिय देखना ही हमे ऊर्जावान बना देता है। आशा है अब माताजी घर आ गयी होंगी।
LikeLike
दिनेशराय जी का सवाल सही है।ज़िंदगी में बने रहने के लिए ऊर्जा तो जरुरी ही है नही तो ऊब या मन नही लगने वाला भाव आएगा ही ।मोबाईल प्रयोग वाली बात पर एक बात याद आई।हमारी माताजी को मैं मोबाईल प्रयोग कई बार सीखा चुका था कि कैसे कोई इनकमिंग कॉल रिसीव करना है और कैसे काटना है लेकिन उन्हे समझ में ही नही आ रहा था। अभी हाल ही मे कुछ दिन पहले एक सुबह मैने देखा माताजी भतीजे का मोबाईल लिए घर मे घूम रही हैं क्योंकि भतीजा अपनी परीक्षा दिलाने कॉलेज गया था। अचानक फोन की घंटी बजी,माताजी ने मजे से रिसीव किया और उधर भतीजे के किसी दोस्त से बात की फ़िर फोन काट दिया! मै हैरान पूछा तो पता चला कि भतीजे ने उन्हे सीखा ही दिया है आखिरकार।”मूलधन” से “ब्याज” ज्यादा प्यारा होता है और वही “ब्याज” बुजुर्गों को ज्यादा ऊर्जा या जीने का उत्साह देता रहता है शायद।
LikeLike
बहुत बढिया है जी। जीवन में रस के लिए एक बात और जरुरी है कि कुछ नया करें। कुछ भी नया। पुराना खुद ब खुद बोरिंग हो जाता है। नयेपन की तलाश हर जगह संभव है। इस सूत्र का अपवाद सिर्फ पत्नी है, यह याद रखा जाये।
LikeLike
अच्छा है, अस्पताल से वापिस आना हो गया – आपके विचार सौ फीसदी सही हैं – उत्साह के ढूंढें ही खुशी मिलती है – वरना मुंह फुला के बैठने के बहुत कारण मिल जाते हैं – सादर मनीष [ पुनश्च: लेकिन छाया से निकलना आसान नहीं होता/ है ]
LikeLike
बहुत सुन्दर लाईनें है। अर्थ भी बहुत सुन्दर है।आशा करते है कि अब माताजी पूरी तरह से स्वस्थ होंगी।
LikeLike
बहुत समझदारी की बात पर प्रकाश डाला है आपने — I agree with the insightful suggestions compeletely.
LikeLike
“बहुत सी चीजें हैं, जिनमें उन्हे रस ही नहीं आ रहा है।”…सच्ची……कितनी ही आवाज़े,घटनाये देखते व सुनते रहने के बावज़ूद्…सीखते और समझते तो हम सिर्फ़ अपनी रूची की बाते ही हैं……
LikeLike
आप ने ऊर्जा के नए स्रोत तलाशे, आप अस्पताल से घर भी लौट आए। माताजी अब कैसी हैं? जानने को सभी पाठक मेरी तरह ही उत्सुक होंगे? कृपया बताएं।
LikeLike