वाणी का पर्स


Vani Purseवाणी मेरी बिटिया है। उसका विवाह दो साल पहले हुआ था। पर वह अभी भी बिल्कुल बच्ची लगती है। उसका ससुराल बोकारो के पास एक कोयले की खदान वाले कस्बे में है। उसके विवाह से पहले हमारा झारखण्ड से परिचय न के बराबर था। पर अब वाणी के झारखण्ड मे रहने के कारण झारखण्ड से काफी परिचय हो गया है। वाणीका पति विवेक बोकारो में एक ७५ बिस्तर के अस्पताल का प्रबन्धन देखता है। बिजनेस मैनेजमेण्ट की स्नातकोत्तर डिग्री लिये है पर व्रत-उपवास-कर्मकाण्ड में पी.एच.डी. कर रखी है विवेक ने। मैने तो सबसे लम्बा उपवास ब्रंच से लेट डिनर तक का कर रखा है; पर विवेक ने तो उपवासों का पूरा नवरात्र सम्पन्न किया है कई बार। और वाणी के स्वसुर श्री रवीन्द्र कुमार पाण्डेय पूर्णकालिक राजनेता हैं। विवेक और श्री रवीन्द्र जिस प्रकार से सहजता से हमारे सम्बंधी बने – उसे सोच कर मुझे लगता है कि ईश्वर चुन कर लोगों को जोड़ते हैं।

वाणी ऐसी लड़की है जो प्रसन्नता विकीरित करती रहती है।

मुझे कोलकाता में तीन दिन रहना था अन्तर रेलवेसमयसारिणी बैठक के चलते। अत: कोलकाता जाते हुये हम वाणी को भी आसनसोल से साथ कोलकाता लेते आये। वह अपनी मां और भाई के साथ शिवकुमार मिश्र के घर पर रही। सत्रह तारीख को सवेरे मिलते ही उसने प्रसन्नता का पहला उपहार मुझे अपने पर्स के माध्यम से दिया। उसके पर्स के मुंह पर दो पिल्ले बने थे। वे चमकीली आंखों वाले प्यारे जीवों की अनुकृति थे जो अपने चुलबुले स्वरूप से बहुत बात करते प्रतीत होते थे। पहला काम मैने यह किया कि उनका चित्र अपने मोबाइल कैमरे के हवाले किया। इस पोस्ट पर सबसे ऊपर बायें वही चित्र है। मैं देर तक इन (निर्जीव ही सही) पिल्लों को गींजता, उमेठता, दुलराता रहा।

वाणी का पर्स प्रसन्नता की भाषा बोलता लग रहा है! नहीं? उसके मुकाबले उसकी मां का लोंदा जैसा मेरे ब्रीफकेस पर पसरा चितकबरे कुत्ते वाला पर्स (जो वाणी ने ही खरीदा था और जिसका चित्र ऊपर दायें है) कितना दुखी-दुखी सा लग रहा है! वापसी में वाणी यह लोंदा-कुत्ता वाला पर्स भी अपनी मां से झटक ले गयी है। अपने चाचा शिवकुमार मिश्र से गिफ्ट झटकने का कस कर चूना लगाया है – सो अलग!

काश भगवान हमें भी (कुछ दिन के लिये ही सही) वाणी बना देता!


आप कह सकते हैं – यह भी कोई पोस्ट हुयी? पर पोस्ट क्या सूपर इण्टेलेक्चुअल मानस के लिये ही होती है?!
सुभ चिन्तक जी को पसन्द न आये तो क्या कहा जाये? असल में ब्लॉगिंग है ही पर्सनल केमिस्ट्री को स्वर देने के लिये। अब यह आत्मवंचना हो तो हो।
आजकल ब्लॉगर डॉट कॉम मनमानी ज्यादा कर रहा है। विण्डोज लाइवराइटर को अंगूठा दिखा रहा है और कई टिप्पणियां गायब कर जा रहा है! रंजना, शिव कुमार और अनीता जी की टिप्पणियां गायब कर ही चुका है – जितना मुझे मालूम है।
ब्लॉगर डॉट कॉम का तो विकल्प मेरे पास फिलहाल नहीं है पर पोस्ट एडीटर के रूप में कल मैने जोहो राइटर को खोज निकाला है। पावरफुल एडीटर लगता है। यह ऑफलाइन मोड में गूगल गीयर से पावर होता है। गूगल गीयर के इन्वाल्वमेण्ट से लगता है कि गूगल इस जोहो राइटर को ठीक से काम करने देगा। पर अन्तत: गूगल को अपना ऑफलाइन पोस्ट एडीटर लाना ही होगा – ऐसा मेरा सोचना है।
यह पोस्ट जोहो राइटर के माध्यम से पोस्ट कर रहा हूं। बताइयेगा कि देखने में कोई नुक्स है क्या?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “वाणी का पर्स

  1. “यही तो है ब्लॉगिंग में लहराते परसनल केमेस्ट्री के स्वर। यह कहीं से भी आत्मवंचना नहीं है।””ब्लॉग तो है ही पर्सनल कैमिस्ट्री को स्वर देने के लिए.”…. पर कितनों के पोस्ट में वो बात दिखती है? यहाँ तो सब ठेलने, पेलने, … करने, और न जाने क्या क्या करने पर लगे हैं.पोस्ट के लिए धन्यवाद.

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  2. ब्लॉगस्पॉट टिप्पणियां नहीं ले रहा है। अत मेल से निम्न दो टिप्पणियां मिली हैं: १. नीरज गोस्वामीजी -भईयाआप की ये लाजवाब पोस्ट मेरी नज़रों से नहीं गुजरी इसका अफ़सोस हुआ. चलिए देर आए दुरुस्त आए…जिस वाणी बिटिया का पर्स इतना सुंदर है वो ख़ुद कैसी होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. बेटियाँ वैसे भी इश्वर का सबसे सुंदर उपहार होती हैं. इश्वर उसे सदा खुश रखे. मुझे यकीन है शिव चाचा को अपना पर्स खाली करने में बहुत आनंद आया होगा. मुझे पता नहीं आप कब ये अवसर उपलब्ध कराएँगे?विवेक के बारे में आप की टिपण्णी पढ़ के की ” बिजनेस मैनेजमेण्ट की स्नातकोत्तर डिग्री लिये है पर व्रत-उपवास-कर्मकाण्ड में पी.एच.डी. कर रखी है ” अभी तक हंस रहा हूँ. ऐसे युवक बहुत किस्मत से मिलते हैं. आप उन दोनों का एक चित्र भी दे देते तो सोने में सुहागे वाली बात हो जाती…चलिए अगली बार सही. इंतज़ार रहेगा.नीरज—-२. अनीता कुमार जी – हम कुत्तेबाजी करें या न करें वो ऊपर वाला पर्स हमें इनाम में मिल जाना चाहिए, आज कल ऐसे पर्स का फ़ैशन चल रहा है क्या? ज्यादा भारी भरकम पोस्ट तो जी अपने पल्ले भी नहीं पढ़ती, सर के ऊपर से निकल जाती है, हमें तो पोस्ट बहुत पसंद आयी, वो नया क्या बताया आप ने राइटर अपुन भी ट्राई करेंगे। नीरज जी के मोबाइल वाली पोस्ट का इंतजार रहेगा, फ़िर मन ललचाया तो मोबाइल बदल डालेंगें।

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  3. क्षमा करे आज जंगल चला गया था इसलिये देर से आ पाया। आप अपने परिवार को ब्लाग परिवार के साथ जोडकर एक बडे परिवार की रचना कर रहे है जो मन को छूने वाला प्रयास तो है ही साथ ही हमे गर्वांवित भी करता है कि आप हमे इस लायक समझते है।

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