मैने दलाई लामा को उतना पढ़ा है, जितना एक अनिक्षुक पढ़ सकता है। इस लिये कल मेरी पोस्ट पर जवान व्यक्ति अभिषेक ओझा जी मेरे बुद्धिज्म और तिब्बत के सांस्कृतिक आइसोलेशन के प्रति उदासीनता को लेकर आश्चर्य व्यक्त करते हैं तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगता।
मैं अपने लड़के के इलाज के लिये धर्मशाला जाने की सोच रहा था एक बार। पर नहीं गया। शायद उसमें बौद्ध दर्शन के प्रति अज्ञानता/अरुचि रही हो। फिर भी दलाई लामा और उनके कल्ट (?) के प्रति एक कौतूहल अवश्य है।
शायद अभी भी मन में है, कि जैसे बर्लिन की दीवार अचानक भहरा गयी, उसी तरह चीन की दादागिरी भी एक दिन धसक जायेगी। भौतिक प्रगति अंतत: सस्टेन नहीं कर पाती समय के प्रहार को।
तितली के पंख की फड़फड़ाहट सुनामी ला सकती है।
मैं दलाई लामा को ही उद्धृत करूं – अंत समय तक “कुछ भी सम्भव” है।
प्रचण्ड आशावाद; यही तो हमारे जीवन को ऊर्जा देता है – देना चहिये।


आशा करते हैं कि तिब्बत के दिन एक बार फ़िर फ़िरेगें।
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दलाई लामा के बारे में मैं भी ज्यादा नहीं जानता लेकिन आशावादी हूं कि एक दिन तिब्बत के दिन फ़िर बहुरेंगे।
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शुकुल जी से सहमति जताना चाहूंगा!!आशा है तो जीवन है!!
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अब मै क्या कहूँ। तिब्बत आजाद हुआ तो तिब्बती दवाए फिर से पूरी दुनिया मे छा जायेंगी। असंख्य लोगो को रोगो से राहत मिलेगी। हर्बल दृष्टिकोण से यह अच्छा ही होगा।
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आशा ही जीवन है.
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कृपया ध्यान दे तिब्बत पर कुछ कहने से पहले अपने सरकार से पूछ ले क्या कह सकते है क्या नही वरना आपको चीन या फिर पश्चिम बंगाल भेज दिया जायेगा..:)
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तिब्बती संस्कृति जीवित रहे यही कामना है.आज आपके ब्लाग का लेआउट कुछ बदला सा है. तीन कॉलम का टेम्पलेट रखें तो बेहतर है कि उसकी चौड़ाई कुछ बढ़ा दें वर्ना सब कुछ बेहद कंजस्टेड सा लगता है.
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दलाई लामा के बारे में मैं भी ज्यादा नहीं जानता लेकिन आशावादी हूं कि एक दिन तिब्बत के दिन फ़िर बहुरेंगे।
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दलाई लामा का आशावाद जीवित रहे, अगर चीनी व्यवस्था में अन्तर्विरोध तीव्र हों, तिब्बती जनता उस में घुटन महसूस करती हो और आजादी की छटपटाहट होगी तो यह आशावाद अवश्य फलीभूत होगा। लेकिन तिब्बती जनता चीनी व्यवस्था में अपने विकास (भौतिक व आध्यात्मिक दोनों)आश्वस्त महसूस करे तो यह आशावाद निष्फल ही जाएगा। बौद्धिज्म नए जमाने की आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है।
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दलाई लामा एक जीवित जनश्रुति बन गए हैं .उनके विचार आधुनिक हैं ,वे पोंगापंथी नही हैं .पिछले वर्ष जब अमेरिका मे एक समारोह के दौरान उनसे यह पूछा गया कि किसी मुद्दे पर यदि बौद्ध दर्शन और आधुनिक वैज्ञानिक मत मे अंतर्विरोध है तो वे किसे तवज्जो देंगे -उनका जवाब था कि वे वैज्ञानिक मत को शिरोधार्य करेंगे क्योंकि वह अद्यतन है .
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