यात्रा को जो ट्रेक्शन मिल रहा है; उससे लगता है; भाजपा को ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। और जैसा मेरा सोचना है – भाजपाई मोदी नामक तारणहार की ओर ताकते सुविधाभोगी बनते गये हैं। वे अब उतने ही दो कौड़ी के लगते जा रहे हैं, जितने थके थुलथुल कांग्रेसी।
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महाराष्ट्र का सत्ता पलट ड्रामा
मैं राजनीति में सामान्य से कम दिलचस्पी रखता हूं। कई बार मुझे खबरें पता ही नहीं होती – वे खबरें जो आम चर्चा में होती हैं। और जब कोई मुझे टोकता है – यह टोकना अब उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है – तब एक बारगी लगता है कि मुझे इतनी जल्दी और इतनी गहराई सेContinue reading “महाराष्ट्र का सत्ता पलट ड्रामा”
चार जनवरी की सुबह और कोहरा
कोहरा मेरा प्रिय विषय है। जब रेल का अफसर था तो बहुत भय लगता था कोहरे से। बहुत सारी दुर्घटनायें और ट्रेन परिचालन के बहुत से सिरदर्द कोहरे के नाम हैं। पर रेल सेवा से मुक्त होने पर कोहरे का रोमांच बहुत लुभाता है।
सुनील ओझा जी और गाय पर निर्भर गांव का जीवन
इस इलाके की देसी गौ आर्धारित अर्थव्यवस्था पर ओझा जी की दृढ़ सोच पर अपनी आशंकाओं के बावजूद मुझे लगा कि उनकी बात में एक कंविक्शन है, जो कोरा आदर्शवाद नहीं हो सकता। उनकी क्षमता भी ऐसी लगती है कि वे गायपालन के मॉडल पर प्रयोग कर सकें और उसके सफल होने के बाद उसे भारत के अन्य भागों में रिप्लीकेट करा सकें।
गौ-गंगा-गौरीशंकर के सतीश सिंह भारत देख चुके साइकिल से!
बताया गया कि सुनील ओझा जी हैं जो इस प्रॉजेक्ट के काम धाम नियन्ता हैं। वे गुजराती सज्जन हैं। गौ-गंगा-गौरीशंकर की इस विशाल प्रॉजेक्ट की परिकल्पना उनकी है या प्रधानमंत्री जी की; यह मुझे नहीं मालुम। पर वृहत स्तर पर वाराणसी और प्रयाग के बीच कुछ बनने जा रहा है।
आत्मनिर्भरता का सिकुड़ता दायरा
अब हताशा ऐसी है कि लगता है आत्मनिर्भरता भारत के स्तर पर नहीं, राज्य या समाज के स्तर पर भी नहीं; विशुद्ध व्यक्तिगत स्तर पर होनी चाहिये। “सम्मानजनक रूप से जीना (या मरना)” के लिये अब व्यक्तिगत स्तर पर ही प्रयास करने चाहियें।