वनस्पतियों के सामरिक महत्व की सम्भवनायें


यह है पंकज अवधिया जी की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट। और यह पढ़कर मुझे लगा कि वनस्पति जगत तिलस्म से कमतर नहीं है! जरा आप पढ़ कर तो देखें।

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क्या ऐसा सम्भव है कि आप सात दिनों तक कडी मेहनत करते रहें बिना खाये-पीये और फिर भी आपकी सेहत पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़े? हाँ, यह सम्भव है। चौकिये मत।

हमारे प्राचीन चिकित्सकीय ग्रंथ अपामार्ग नामक वनस्पति का वर्णन करते हैं। ग्रंथो मे यह लिखा है कि इसके दाने की खीर यदि थोडी सी मात्रा मे खा ली जाये तो सप्ताह भर तक भूख नहीं लगती और शरीर कमजोर नही पड़ता। इसे पीढ़ियों से आजमाया और अपनाया जा रहा है। आधुनिक विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है। हम लोग इसे बोलचाल की भाषा मे चिरचिटा कहते हैं। यह खरपतवार की तरह आस-पास उगता रहता है।

अब आप पूछेंगे कि अपामार्ग के इस गुण की महत्ता क्या हो सकती है आज के युग में? भले ही यह पारम्परिक ज्ञान है पर मैं इसे आज के युग मे भी उपयोगी मानता हूँ। भारतीय सैन्य अभियानों के लिये यह वनस्पति वरदान बन सकती है। हमारे सैनिक कुछ दानों को अपने पास रख सकते हैं और आवश्यकत्तानुसार इससे अपनी जीवन रक्षा कर सकते हैं। चूँकि यह ग्रंथो मे वर्णित है तो यह हो सकता है कि सैन्य अभियानो में इसका प्रयोग हो रहा हो।

जब मैने इस विषय मे अध्ययन करने के बाद हजारों पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की तो अपामार्ग में नाना प्रकार की वनस्पतियों को मिलाकर उन्होने ऐसे सैकड़ों नुस्खे सुझाये जिनका वर्णन प्राचीन ग्रंथो मे नही मिलता है। ये ज्ञान दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया मे है। यह अधिक कारगर नुस्खे भारतीय सैन्य अभियानो के लिये बहुत मददगार साबित हो सकते हैं।

पहले जमाने मे युद्ध बडे भयंकर हुआ करते थे। युद्ध मे वनस्पतियों और इससे सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान की बडी महत्ता थी। आज इस विषय मे ज्ञान खतरे में है। आज भी बहुत से ऐसे लोग हमारे बीच मे हैं जिन्होने अपने पूर्वजों से इस ज्ञान को जाना है। नयी पीढ़ी इसमे रुचि नही ले रही। मैने जब इस पर काम किया तो मुझे लगा कि कुछ परिवर्तन करके इस ज्ञान का आधुनिक सैन्य अभियानों मे प्रयोग किया जा सकता है।

आज किसी भी देश के सैनिक को बहुत सा खाने का सामान लाद कर चलना पडता है। उस दिन की परिकल्पना करिये जब सैनिक खाने की चिंता नही करेगा और जब भी जरुरी होगा आस-पास की वनस्पतियों से अपनी इस आवश्यकत्ता की पूर्ति कर लेगा। उसके पास एक छोटा सा यंत्र होगा जिसे वह पौधे के सामने रखेगा। मानीटर पर उस वनस्पति से व्यंजन बनाने की तरह-तरह की विधियाँ दिखायी देने लगेगीं। वह मनपसन्द विधि से वनस्पति का उपयोग कर लेगा और आगे बढ़ जायेगा।

जंगलों मे जब पारम्परिक चिकित्सक चलते हैं तो खाने का कोई सामान लेकर नही चलते हैं। उन्हे एक-एक वनस्पति के उपयोग का पता है। एक तरीका यह हो सकता है कि सैनिकों को पारम्परिक चिकित्सको की निगरानी मे सभी वनस्पतियों के सरल उपयोग समझाये जायें। यह कठिन काम है। दूसरा तरीका यह है कि उस यंत्र का निर्माण किया जाये।

मैं 1996 से इसके विकास मे लगा हूँ पर तकनीक का अधिक जानकार नही होने के कारण राह आसान नही लग रही है। एक विशेषज्ञ ने मुझसे कहा है कि आप एक वनस्पति के जितने अधिक चित्र हो सकते हैं अलग-अलग कोणो से, लीजीये ताकि यंत्र मे उन्हे डालकर पहचान को एकदम सही किया जा सके। वनस्पतियो की पहचान मे थोडी सी गलती जान भी ले सकती है। मै चित्र लेने के अभियान मे जुटा हूँ। उदाहरण के लिये मैने साल नामक पेड़ की दस हजार से अधिक तस्वीरे ली हैं। हर तस्वीर अलग है।

आज विश्व मे बारुदी सुरंगो का कहर मचा हुआ है। प्रतिदिन लोग मर रहे है या घायल हो रहे है। पारम्परिक चिकित्सक यह कहते हैं कि बहुत तरह के जंगली बीजों के प्रयोग से छुपी हुयी सुरंगो का न केवल पता लगाया जा सकता है बल्कि उन्हे नष्ट भी किया जा सकता है। मैने एक लम्बी रपट तैयार की है जो सौ से अधिक भागों मे है। इसमे हजारों वनस्पतियो के सम्भावित प्रयोगों पर प्रकाश डाला गया है। इसका शीर्षक है “Traditional medicinal knowledge about herbs in Indian state Chhattisgarh and its possible uses in modern war”। अन्य रपटों की तरह इसे मैने इकोपोर्ट मे प्रकाशित करना चाहा तो उन्होने साफ कह दिया कि यदि यह गलत हाथों मे पड गयी तो विनाश हो जायेगा। इसलिये यह अप्रकाशित है अभी तक।

55 छत्तीसगढ मे एक विशेष प्रकार की चींटी होती है जिसकी सहायता से मधुमेह के रोगियों की पहचान की जाती है। इनसे ज्वर पीड़ितो की चिकित्सा की जाती है। ज्वर पीड़ितो पर इन्हे छोड दिया जाता है। जल्दी ही ज्वर उतर जाता है। फिर इसीके काढे से रोगी को नहला दिया जाता है। मैने इसके विभिन्न पहलुओं पर उपलब्ध ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है। कई वर्ष पूर्व मेरे शोध आलेखों मे अमेरिका के सैन्य विशेषज्ञों ने रुचि दिखायी और मुझे सन्देश भेजे। मैने उनसे नियमानुसार सम्पर्क करने का अनुरोध किया। उसके बाद फिर उनकी ओर से कोई सन्देश नही आया।

ज्ञान जी के ब्लाग को सारा देश पढता है। इसलिये उनके माध्यम से भारतीय सैन्य विशेषज्ञों तक ये विचार पहुँचाने का प्रयास है यह।

पंकज अवधिया

© इस पोस्ट पर सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।


इस लेख की सामग्री सामान्य धरातल से अलग लगती है। विषम परिस्थितियों में जीने के लिये अगर वनस्पतियां इस प्रकार सहायक हो सकती हैं – तो अनेक सम्भावनायें खुलती हैं – सामरिक ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी। पर जैसा अवधिया जी के कथन से स्पष्ट है, अभी बहुत कुछ शोध किया जाना आवश्यक होगा।

Apamargअपामार्ग या चिरचिटा नामक औषधीय खरपतवार का व्यवसायिक दोहन करने को कल केलॉग या नेस्ले उद्धत हो जायें तो आश्चर्य न होगा।Thinking

और मजेदार चीज – इस साइट पर रेटोलिव (RETOLIV) नामक सीरप बिक रहा है जो भूख न लगने में कारगर है और उसमें ५ मिलीलीटर में ५० मिलीग्राम अपामार्ग है। एक अन्य साइट पर इसकी दातुन करने की सलाह दी गयी है। डाबरऑनलाइन पर इसे वात और कफ नाशक बताया गया है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “वनस्पतियों के सामरिक महत्व की सम्भवनायें

  1. आप सभी की टिप्पणियो के लिये आभार। समीर जी, अनिता जी और दिनेश जी के प्रश्न का उत्तर पिछली पोस्ट मे है। मै लिंक दे रहा हूँ।http://hgdp.blogspot.com/2008/01/blog-post_02.htmlअपामार्ग पर इकोपोर्ट मे मेरे 75 से अधिक आलेख है। इन लेखो से आपको दुनिया भर की भाषाओ मे इस वनस्पति का नाम मिल जायेगा। इसकी ढेरो तस्वीरे भी मिल जायेंगी। इसका लिंक हैhttp://ecoport.org/ep?Plant=2767

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  2. ये तो बहुत अच्छी जानकारी है, पर हम पहचानेंगे कैसे? अगर चिरचिटा का चित्र भी होता तो अच्छा रहता.

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  3. और मजेदार चीज – इस साइट पर रेटोलिव (RETOLIV) नामक सीरप बिक रहा है जो भूख न लगने में कारगर है और उसमें ५ मिलीलीटर में ५० मिलीग्राम अपामार्ग है। एक अन्य साइट पर इसकी दातुन करने की सलाह दी गयी है। डाबरऑनलाइन पर इसे वात और कफ नाशक बताया गया है।-ज्ञानजी की साइट भौत तरह के आइटम बिकते हैं। कुछ दिनों पहले हिट लव लैटर कैसे लिखें-कुछ इस टाइप के विज्ञापन भी यहीं देखे गये थे। सही है, ज्ञान की टार्च से कुछौ भी अछूता नहीं ना रहना चाहिए, अर्थ धर्म काम मोक्ष सारे आइटम मिलकर तो बनता है ज्ञान चैनल। जमाये रहिये।

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  4. MR PANKAJ AWADHIA WILL YOYU LIKE TO JOIN CHATTISGARHI RAJBHASA E JOURNAL PUBLICATION WITH YOUR STATE COMMITMENT AND SERVICE TO PEOPLEPROF TIWARY FORMER VC

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  5. बहुत ही रोचक एवं सटीक जानकारी,अनुसंधान की आवश्यकता है,बैंगलोर में सामरिक खाद्य अनुसंधान केन्द्र द्वारानित नये प्रयोग किये जारहें हैं । कुछेक तो व्यवहारमें भी लाया जाने लगा है, उनसे सम्पर्क किया जा सकता है ।कृपया ऎसे उपयोगी पौधों के वर्णन में, आंचलिक शब्दावली का भीसमावेश हो, तो आपका वनस्पति जागरुकता का ध्येय सफल होगा ।

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  6. हमारे मन में भी वही विचार आया जो समीर जी के मन में आया। पंकज जी बहुत ही सराहनीय जानकारी। बताइए क्या इस वनस्पति का प्र्योग पतले होने के लिए किया जा सकता है, कोई साइड इफ़ेक्ट्स तो न होगें? फ़ोटोस कुछ और लगाइए, महाराष्ट्रा में ये क्या कहलाता है?

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  7. फिर तो चिरचिटा खाकर रह जायें तो दुबले भी हो सकते होंगे??जानकारी रोचक है, आभार.

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