टिप्पणियों में क्या नहीं जमता मुझे


Comments टिप्पणियां किसे प्रिय नहीं हैं? पर कुछ टिप्पणियां नहीं जमतीं। जैसे –

  1. अपने आप को घणा बुद्धिमान और पोस्ट लिखने वाले को चुगद समझने वाली टिप्पणी। आप असहमति व्यक्त कर सकते हैं। कई मामलों में होनी भी चाहिये। पर दूसरे को मूर्ख समझना या उसकी खिल्ली उड़ाना और अपने को महापण्डित लगाना आपको ट्रैफिक नहीं दिलाता। कुछ सीमा तक तो मैं स्वयम यह अपने साथ देख चुका हूं।
  2. पूरी टिप्पणी बोल्ड या इटैलिक्स में कर ध्यान खींचने का यत्न।
  3. टिप्पणी में अनावश्यक आत्मविषयक लिन्क देना। लोग अपने तीन-चार असम्पृक्त ब्लॉगों के लिंक ठेल देते हैं!
  4. पूरी टिप्पणी में तुकबन्दी। तुक बिठाने के चक्कर में विचार बंध जाते हैं और बहुधा अप्रिय/हास्यास्पद हो जाते हैं।
  5. हर जगह घिसी घिसाई टिप्पणी या टिप्पण्यांश। “सत्यवचन महराज” या “जमाये रहो जी”। आलोक पुराणिक के साथ चल जाता है जब वे इस अस्त्र का प्रयोग भूले-भटके करते हैं। जब ज्यादा करें तो टोकना पड़ता है!
  6. यदा कदा केवल जरा सी/एक शब्द वाली टिप्पणी चल जाती है – जैसे “:-)” या “रोचक” । पर यह ज्यादा चलाने की कोशिश।
  7. यह कहना कि वाइरस मुझे टिप्पणी करने से रोक रहा है। बेहतर है कि सफाई न दें या बेहतर वाइरस मैनेजमेण्ट करें।
  8. ब्लण्डर तब होता है जब यह साफ लगे कि टिप्पणी बिना पोस्ट पढ़े दी गयी है! पोस्ट समझने में गलती होना अलग बात है।
  9. ढेरों स्माइली ठेलती टिप्पणियां। यानी कण्टेण्ट कम स्माइली ज्यादा।

बस, ज्यादा लिखूंगा तो लोग कहेंगे कि फुरसतिया से टक्कर लेने का यत्न कर रहा हूं।

मैं यह स्पष्ट कर दूं कि किसी से द्वेष वश नहीं लिख रहा हूं। यह मेरे ब्लॉग पर आयी टिप्पणियों की प्रतिक्रिया स्वरूप भी नहीं है। यह सामान्यत: ब्लॉगों पर टिप्पणियों में देखा, सो लिखा है। प्वाइण्ट नम्बर १ की गलती मैं स्वयम कर चुका हूं यदा कदा!
टिप्पणियों का मुख्य ध्येय अन्य लोगों को अपने ब्लॉग पर आकर्षित करना होता है। उक्त बिन्दु शायद उल्टा काम करते हैं। Striaght Face

मस्ट-रीड रिकमण्डेशन एक टीचर की डायरी। इसमें कुछ भी अगड़म-बगड़म नहीं है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “टिप्पणियों में क्या नहीं जमता मुझे

  1. सत्यं ब्रुयात् प्रियम् ब्रुयान्नब्रुयात् सत्यमप्रियम् |प्रियम् च नानॄतम् ब्रुयादेष: धर्म: सनातन: ||इतना सत्य की आगे से टिपण्णी करने में ही डर लगे :-) वैसे कई बातें कहना आप भूल गए… कई बार अपनी presence दिखाने के लिए भी तो टिपण्णी करनी पड़ जाती है… और कई बार टिपण्णी न करो तो कुछ मित्र लोगो की शिकायत भी आ जाती है की मेरी पोस्ट ही नहीं पढ़ते हो.

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  2. आपके मस्ट रीड रिकमेंडेशन से आलोक जी की एक जानदार पोस्ट पढ़ने का अवसर मिला.शुक्रिया !

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  3. टिप्पणियों पर आपकी इस टिप्पणी परटिप्पणी करना भी मुनासिब न हो शायद,यही सोचकर कहता हूँ ….नो कमेंट्स !==================================बहरहाल एक नये विषय पर विमर्श का मौका मिला.धन्यवाद.

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  4. सतही टिप्पणियाँ मुझे भी परेशान करती है। पर टिप्पणी कैसी भी हो हौसला भी बढाती है। आपकी पोस्ट मे इतनी विविधता होती है कि सभी बातो पर टिप्पणी नही कर पाते है। मसलन, कुछ दिनो पहले आपने लिखा था कि हिन्दी प्रभाग मे आपको आमंत्रित किया गया है। मैने पढा पर बधाई देने से चूक गया।

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  5. राम-राम!मन्ने तो लागे है कि जे सब म्हारे लिए ही लिक्खो गयो है।अक्सर हल्के-फुल्के मूड में टिपियाने के चक्कर में शायद मुझसे यह गलतियां हो ही जाती होंगी।मुआफी!अब कोशिश की जाएगी अपने को सुधारने की

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  6. लगता है लिखते वक़्त नरम पड़ गये है…..वैसे कई बातें आपने छोड़ दी है…….ब्लोग्गेर्स ख़ुद समझ लेंगे….

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  7. सत्य वचन… :)मुझे तो एक नम्बर वाली बात जमी. टिप्पनीकार को कम से कम इस बात का तो ध्यान रखना ही चाहिए. बाकि करने के लिए की गई टिप्पणी झूठी मुस्कान की तरह पकड़ में आ ही जाती है.

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  8. सत्य वचन महाराज। टिप्पणी सच्ची में ऐसी होनी चाहिए कि लगे पढ़कर की गयी है। वरना ना की जाये, तो बेहतर। समीरलालजी की पास एक आदमी फोटू कापी यंत्र है, उसमें से वे अपनी पचास फोटूकापियां निकालते हैं और इक्यावन समीरलालजी जुट जाते हैं सारे ब्लाग पढ़कर टिप्पणियां करने में। समीरजी अगली बार इंडिया आयें और तो उनका अपहरण करके उस मशीन का जुगाड़मेंट किया जाये, तब बंदा टिप्पणी कुशल हो सकता है। अपना हाल तो यह है कि दो चार टिप्पणियों के बाद हांफने लगता हूं।

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  9. भई हम तो जब आपकी ज्ञान बिड़ी पीकर मस्‍त हो जाते हैं तो अपनी मस्‍ती में टिपिया देते हैं । क्रोनिक मजाकिया हैं । क्‍या करें । मानकर चलते हैं कि हमारी चुहल आपको गुदगुदाएगी ही । ‘परसान’नहीं करेगी । बाकी तो पहलवान बब्‍बा की जै । :D

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