रेल के डिब्बे में स्नॉबरी


woman मध्य वर्ग की स्नॉबरी रेल के द्वितीय श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे में देखने के अवसर बहुत आते हैं। यह वाकया मेरी पत्नी ने बताया। पिछली बार वे अकेले दिल्ली जा रही थीं। उनके पास नीचे की बर्थ का आरक्षण था। पास में रेलवे के किसी अधिकारी की पत्नी अपने दो बच्चों के साथ यात्रा कर रही थीं और साथ के लोगों से टीवी सीरियलों पर चर्चा के रूट से चलती हुयी अपना पौराणिक ज्ञान बघारने में आ गयीं – "अरे महाभारत में वह केरेक्टर है न जिसका सिर काटने पर सिर उग आता है, अरे वही…"

लोगों ने प्रतिवाद किया तो उन्होंने अपने दिमाग को और कुरेदा। पहले कहा कि वह चरित्र है, पर नाम याद नहीं आ रहा है। फिर बाद में याद कर उन्होने बताया – "हां याद आया, शिखण्डी। शिखण्डी को कृष्ण बार बार सिर काट कर मारते हैं और बार बार उसका सिर उग आता है…"

मेरी पत्नी ने बताया कि उन भद्र महिला के इस ज्ञान प्रदर्शन पर वह छटपटा गयी थीं और लेटे लेटे आंख मींच कर चद्दर मुंह पर तान ली थी कि मुंह के भाव लोग देख न लें। बेचारा अतिरथी शिखण्डी। वृहन्नला का ताना तो झेलता है, यह नये प्रकार के मायावी चरित्र का भी मालिक बन गया। कुछ देर बाद लोगों ने पौराणिक चर्चा बन्द कर दी। आधे अधूरे ज्ञान से पौराणिक चर्चा नहीं चल पाती।

अब वे महिला अपने खान-पान के स्तर की स्नाबरी पर उतरा आयीं। बच्चों से कहने लगीं – हैव सम रोस्टेड कैश्यूनट्स। बच्चे ज्यादा मूड में नहीं थे। पर उनको खिलाने के लिये महिला ने न्यूट्रीशन पर लेक्चराइजेशन करना प्रारम्भ कर दिया।

मैने पूछा – तो बच्चों ने कैश्यूनट्स खाये या नहीं? पत्नी ने कहा कि पक्का नहीं कह सकतीं। तब से कण्डक्टर आ गया और वे महिला उससे अंग्रेजी में अपनी बर्थ बदल कर लोअर बर्थ कर देने को रोब देने लगीं। रेलवे की अफसरा का रोब भी उसमें मिलाया। पर बात बनी नहीं। कण्डक्टर मेरी पत्नी की बर्थ बदल कर उन्हें देने की बजाय हिन्दी में उन्हे समझा गया कि कुछ हो नहीं सकता, गाड़ी पैक है।

मैने पूछा – फिर क्या हुआ? पत्नी जी ने बताया कि तब तक उनके विभाग के एक इन्स्पेक्टर साहब आ गये थे। टोन तो उनकी गाजीपुर-बलिया की थी, पर मेम साहब के बच्चों से अंग्रेजी में बात कर रहे थे। और अंग्रेजी का हाल यह था कि हिन्दीं में रपट-रपट जा रही थी। इन्स्पेक्टर साहब बॉक्सिंग के सींकिया प्लेयर थे और बच्चों को बॉक्सिंग के गुर सिखा रहे थे।…

स्नॉबरी पूरी सेकेण्ड एसी के बे में तैर रही थी। भदेस स्नॉबरी। मैने पूछा – "फिर क्या हुआ?" पत्नी जी ने बताया कि फिर उन्हें नींद आ गयी।

स्नॉबरी मध्य वर्ग की जान है! है न!    


स्नॉबरी (Snobbery):
एक ही पीढ़ी में या बहुत जल्दी आये सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के कारण स्नॉबरी बहुत व्यापक दीखती है। अचानक आया पैसा लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है। पद का घमण्ड भाषा और व्यवहार में बड़ी तेजी से परिवर्तन लाता है। कई मामलों में तथाकथित रिवर्स स्नॉबरी – अपने आप को गरीबी का परिणाम बताना या व्यवहार में जबरन विनम्रता/पर दुखकातरता ठेलना – जो व्यक्तित्व का असहज अंग हो – भी बहुत देखने को मिलती है। मेरे भी मन में आता है कि मैं बार-बार कहूं कि मैं म्यूनिसिपालिटी और सरकारी स्कूलों का प्रॉडक्ट हूं! Laughing 8
आज का युग परिवर्तन और स्नॉबरी का कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी। और इसके उदाहरण इस हिन्दी ब्लॉग जगत में भी तलाशे जा सकते हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

25 thoughts on “रेल के डिब्बे में स्नॉबरी

  1. एक दम सही तस्वीर पेश कर दी है, सर. ऐसी मौके हमें भी गाड़ी में बहुत मिलते रहते हैं.।

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  2. हम तो जी समीर जी से एकदम सहमत हैं और नाम जानने को उत्सुक हैं, देखिए निराश मत किजिएगा, ये ज्ञान भी प्राप्त कर ही लें हम

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  3. ज्ञान जी, मैं आपकी बताई गई स्नॉबरी की परिभाषा से सहमत नहीं हूँ क्योंकि ऐसा व्यवहार तो मैंने उन लोगों में भी देखा है जो इस परिभाषा पर खरे नहीं उतरते, यानि कि सामाजिक/आर्थिक परिवर्तन से नहीं गुज़रे हैं इस व्यवहार को अपनाने के लिए, उनमें तो बस ऐवंई खामखा यह शगल के तौर पर होती है। तो क्या वे स्नॉब नहीं कहलाएँगे? यदि नहीं तो उनको क्या कहेंगे? :)@समीर जीआप तो गलत कहते ही नहीं है, कुछ-२ समझ आ रहा है कि किस ओर आपका इशारा है। ;)@महेन:मेरा थोड़ा बहुत जो अभी तक अनुभव रहा है उससे यह दिखता है कि सिर्फ़ उत्तर भारतीयों में ही नहीं, वरन्‌ अन्य इलाकों के लोगों में भी बहुत होती है यह चीज़, इसलिए एक क्षेत्र को या शहर को पिन-प्वायंट नहीं कर सकते। अब खास किसी इलाके का नाम नहीं लेते कहीं लोग बिदक न जाए और क्षेत्रीयवाद का आरोप लगा पीछे न पड़ जाएँ। ;) दिल्ली वालों की एक खास बात मैंने यह देखी है कि कोई भी दिल्ली वालों का नाम ले गलियाता रहे उनको कभी भड़क कर दूसरे की जान के पीछे नहीं पड़ते देखा, चिकना घड़ा कह लो उनको या कुछ और, हम लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई दूसरा हमे क्या भला बुरा कह रहा है! ;)दूसरी बात यह कि स्नॉब लोग (ज्ञान जी की बताई आर्थिक/सामाजिक परिवर्तन वाली परिभाषा के मद्देनज़र) संपन्न इलाकों में ही बसेंगे, गाँव देहात में ऐसे लोग रहना नहीं चाहेंगे चाहे पिछली 10 पुश्तें उनकी वहीं रह रही हों, तो ऐसे संपन्न इलाके बहुत नहीं है, महानगर ही हैं। :)

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  4. स्नाबरी दरअसल स्ट्राबेरी की ही तरह है जो देसी बेर को स्ट्राबेरी कह कर खाते हैं तथा इसका प्रदर्शन भोंडे तरीके से करते हैं इन नव धनिकों के दोगले चोंचलों का उसी समय दर्पण दिखा कर मुंह बंद कर देना चाहिए पर मूर्खों से उलझाने का माद्दा भी होना चाहिए almond और केसुनत खा कर

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