बुर्कीना फासो से आने को आतुर धन


रोज ४०-५० धन बांटने को आतुर स्पैम आते हैं! रोज संदेश भेजता है वह मेरा अनजान मित्र। (एक ही नहीं अनेक मित्र हैं।) बैंक ऑफ अफ्रीका मेरे पास धन भेजने को आतुर है। मैं हूं, कि अपरिग्रह के सिद्धान्त से बंधा, वह संदेश पट्ट से डिलीट कर देता हूं। यह मित्र रूप बदलता है –Continue reading “बुर्कीना फासो से आने को आतुर धन”

क्या खाक मौज लेंगे? हम तो टेन्स हो गये!


कल की पोस्ट पर फुरसतिया ने देर रात टिप्पणी ठेली है। वह भी ई-मेल से। लिखा है – बाकी ज्ञानजी आप बहुत गुरू चीज हैं। लोग समझ रहे हैं कि आप हमारी तारीफ़ कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि आप हमको ब्लागर बना रहे हैं। आपने लिखा- “इस सज्जन की ब्रिलियेन्स (आप उसेContinue reading “क्या खाक मौज लेंगे? हम तो टेन्स हो गये!”

अनूप सुकुल से एक काल्पविक बातचीत


मैने पाया कि धीरे धीरे मेरे पास ब्लॉग जगत के लोगों के कुछ सज्जनों के फोन नम्बर संग्रहित हो गये हैं। कुछ से यदा-कदा बातचीत हो जाती है। जिनसे नहीं मिले हैं, उनके व्यक्तित्व का अनुमान उनकी आवाज से लगाने का यत्न करते हैं। उस दिन एक सज्जन का फोन था, जिनकी मैं चाह करContinue reading “अनूप सुकुल से एक काल्पविक बातचीत”

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