देश में प्रजातंत्र है। हिन्दी ब्लॉगिंग में टिपेरतंत्र!
वोट की कीमत है। टिप्पणी की कीमत है। टिप्पणी भिक्षुक टिप्पणी नहीं पाता – दाता की जै करता है, पर उपेक्षित रहता है।
प्रजातंत्र में महत्वपूर्ण हैं चाटुकार और चारण। वन्दीजन। नेता के आजू और बाजू रहते हैं चारण और वन्दीजन। नेता स्वयं भी किसी नेता के आजू-बाजू चारणगिरी करता है। टिपेरतंत्र में चारण का काम करते हैं नित्य टिपेरे। डेढ़ गज की तारतम्य रहित पोस्ट हो या टुन्नी सी छटंकी कविता। एक लाइन में १० स्पैलिंग मिस्टेकयुक्त गद्य हो या आत्मविज्ञापनीय चित्र। टिपेरतंत्र के चारण सम भाव से वन्दन करते जाते हैं। प्रशस्तिगायन के शब्द सामवेद से कबाड़ने का उद्यम करने की जरूरत नहीं। हिन्दी-ब्लॉगवेद के अंतिम भाग(टिप्पणियों) में यत्र-तत्र-सर्वत्र छितरे पड़े हैं ये श्लोक। श्रुतियों की तरह रटन की भी आवश्यकता नहीं। कट-पेस्टीय तकनीक का यंत्र सुविधा के लिये उपलब्ध है।
| पोस्ट-लेखन में कबाड़योग पर आपत्तियां हैं (किसी की पोस्ट फुल या पार्ट में कबाड़ो तो वह जोर से नरियाता/चोंकरता/चिल्लाता है)। उसके हठयोगीय आसन कठिन भी हैं और हानिकारक भी। साख के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। पर टिपेरपन्थी कबाड़योग, तंत्र मार्ग की तरह चमत्कारी है। बहुधा आपको पोस्ट पढ़ने की जरूरत नहीं। बस टिप्पणी करने में धैर्य रखें। चार-पांच टिप्पणियां हो जाने दें। फिर ऊपर की टिप्पणियां स्वत: आपको उपयुक्त टिप्पणी सुझा देंगी। टिपेरतंत्रीय चारण को टिपेरपंथी कबाड़योग में भी हाथ अजमाना चाहिये! |
मित्र; हिन्दी ब्लॉगजगत के टिपेरतन्त्र ने हमें टिपेरतंत्रीय चारण बना कर रख दिया है। कब जायेगा यह टिपेरतंत्र?!। कब आयेगी राजशाही!

सई है जी, देखो मैं आया, टिपेरा धर्म निभाया और ये निकल लिया ;)
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अच्छा है आत्मालोचना होती रहनी चाहिए। इसी से पूरी हिंदी ब्लॉगिंग परिपक्व होगी और इसका चेहरा खिलेगा।वैसे लगता है कि आपकी बातों को कुछ भाई लोगों ने दिल पर ले लिया है। जबकि टिपेरतंत्र तो एक सच है जिसे सभी को स्वीकार करना ही चाहिए।लेकिन एक बात तो है कि टिप्पणी न मिले तो लिखने का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। इसलिए मैं तो जमकर टिप्पणियां करने वालों को साधुवाद देना चाहूंगा कि वो बुझती हुई लौ को जलाए रखने में मददगार बनते हैं।
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आलोक पुराणिक की इस बात से सहमत हूं कि जहां बात न जमे वहां टिप्पणी न करें लेकिन उनकी ये बात नहीं जमी कि ब्लॉगिंग को सीरियसली मत लीजिए
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महोदय लगता है आपने चारणों के बारे मैं अधिक जानकारी नहीं कि…चारण चमचे नहीं होते थे बल्कि जिनकी कविताएं सदियों तक सोये हुए समाज को जगाने का कार्य करती रही..जिनकी लिखी एक एक पंक्ति सैंकङों यौध्दाओं को मातृभूमि के लिए सर कटाने को प्रेरित करती रहीं
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इशारों ही इशारों में एक दुसरे की खिंचाई कर गए….हमने तो सबको पढ़ कर आनन्द लिया, बस. :)
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ब्लागिंग में सामाजिकता का भी महत्व है। भीषण भीषण से चिरकुट को भी मुंह पर चिरकुट नहीं कहा जाता। ब्लागिंग को सीरियसली नहीं लीजिये, मजे लीजिये। सच बात तो यह है कि सच किसी को सुनना पसंद नहीं है, उन्हे भी नहीं जो कहते हैं कि वह सच के पुरोधा पुजारी टाइप हैं। सब मनभाती सुनना चाहते हैंबेहतर रणनीति यही है कि जहां आपको बात नहीं जमती हो, वहां टिप्पणी ना करें। फिर टिप्पणी से चलने वाले राइटर बहुत दिनों तक नहीं चलते। असली लेखक मजबूत कलेजे वाला बेशर्म होता है। किसी की सकारात्मक टिप्पणी को सौजन्य समझना चाहिए, नकारात्मक टिप्पणी को दिल पर नहीं लेना चाहिए। लेखक किसी की तारीफ के सहारे लेखक नहीं बनता, वह अपनी बेशऱ्मी और मजबूत इरादे के बूते ही लेखक बनता है। वरना टिप्पणीभंगुर लेखक तो बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं।
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टिप्पणियां ज़रूरी हैं. टिपेरतंत्र शायद ज़रूरी नहीं. ये अलग बात है कि शैशवकाल में ढेर सारे तंत्र आस-पास विकसित हो ही जाते हैं. लेकिन शैशवकाल समाप्ति के दौर में जैसे ही प्रवेश करेगा, कुछ तंत्र-मंत्र अपने आप ही लुप्त हो जायेंगे. टिप्पणियों का मिलना अंधे के लिए आँखें मिलना समान है. शुरुआत में हम भगवान से रुपया-पैसा, वैभव, ऐश्वर्य, शान्ति और न जाने क्या-क्या मांगते हैं. लेकिन जैसे-जैसे बात आगे बढ़ती है और हमें लगने लगता है कि इनमें से कुछ मिल गया है या फिर कुछ नहीं मिलने वाला तो हम अपनी मांग कम करते जाते हैं. स्थिति यहाँ तक पहुँच जाती है कि बाद में शायद केवल शान्ति मांगते पाये जाएँ. यही बात आगे चलकर ब्लागिंग में भी दिखनी चाहिए. स्थिति शायद आए कि हमें बिना मांगे ही कुछ मिले. और जो बिना मांगे मिलेगा, शायद वही हम डिजर्व करते हैं.
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आपने काफी संवेदनशील विषय को छू लिया है . जो लोग आपकी तरह नहीं सोचने या आपकी तरह नहीं करते उनको चारण या वन्दीजन कह देना और जो लोग आपकी तरह लम्बे लम्बे उबाऊ लेख न लिख कर छोटी चार लाइना कविताएं ही लिखना जानते हैं उनके ब्लॉगिंग के अधिकार को ही छीन लेना यह तो आपकी जैसी राजशाही मानसिकता वाले लोग ही कर सकते हैं . हमने मान लिया आप ब्लॉगिंग के राजा हैं . आप ग्रेट हैं . पर हम भी कहे देते हैं, हम भी अपनी चार लाइना और दो लाइना कविता या फिर आपके शब्दों में कहे तो छटंकी कविता तब तक लिखते रहेंगे जब तक हमें रोक नहीं दिया जाता . और जो हमें अच्छा लगेगा उसको जमकर टिपियाएंगे भी . हाँ आज आपका यह लेख अच्छा नहीं लगने के बावजूद टिपिया रहा हूँ , इसके लिए माफी चाहता हूँ . जय टिप्पणी, जय हिन्दी, जय भारत .
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ब्लॉग जगत भारतीय समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है. हम भारतीयों से ज्यादा ढोंगी और ढकोसलेबाज पूरी दुनिया में कहीं हैं क्या? कथनी और करनी का अन्तर हमारी पहली विशेषता है. यही सब चीजें ब्लॉग में भी देखने को मिलती हैं. आप कैसे आशा कर सकते हैं कि समाज की बुराइयाँ यहाँ ध्वनित नहीं होंगी?हजार साल की गुलामी ने हमारी रीढ़ की हड्डियों को कई पीढियों के लिए तोड़ दिया है. बची हुई कसर अंग्रेजों की शिक्षा नीति ने निकाल दी है. स्वतंत्र सोच विकसित करने और उसे साहस के साथ प्रकट करने की उम्मीद धिम्मियों से नहीं की जा सकती. यहाँ सिर्फ़ चाटुकारिता का ही बोलबाला रहेगा, क्योंकि उसमें सुविधा है. ब्लॉग जगत की अधिकांश टिप्पणियां भी इसी मानसिकता को ही प्रदर्शित करती हैं. टिपेरतंत्र तो पनपना ही है.
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सर जी .. राम राम ! लगता है आज ताऊ का दिमाग सोकरउठा नही है ! पोस्ट मौजूद है और १० टिपणी मौजूद है परअपना मन मयूर कुछ बोल नही रहा है ! आप ही सुझाइए कुछ !
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