आइये अपने मुखौटे भंजित करें हम!


evil_mask मुखौटा माने फसाड (facade – एक नकली या बनावटी पक्ष या प्रभाव)। लोगों के समक्ष हम सज्जन लगना चाहते हैं। मन में कायरता के भाव होने पर भी हम अपने को शेर दिखाते हैं। अज्ञ या अल्पज्ञ होने के बावजूद भी अपने को सर्वज्ञाता प्रदर्शित करने का स्वांग रचते हैं। यह जो भी हम अपने विषय में चाहते हैं, उसे सयास दिखाने में अपनी ऊर्जा लगाते/क्षरित करते हैं।

मुखौटे हमें आगे सीखने में भी बहुत बड़े बाधक हैं। हम अपने से छोटे के समक्ष अपना अज्ञान जाहिर कर उससे सिखाने का अनुरोध नहीं कर सकते। अपने फसाड को बतैर छतरी प्रयोग करते हैं – जो धूप से तो बचाती है पर जरूरी विटामिन डी की खुराक भी हमसे रोकती है।

जब मैं अपने व्यवहार पर मनन करता हूं, तो कई मुखौटे दीखते हैं। इन सब को चिन्हित कर एक एक को भंजित करना शायद आत्मविकास का तरीका हो। पर यह भी लगता है कि सारे मुखौटे एक साथ नहीं तोड़े जा सकते। एक साथ कई फ्रण्ट खोलने पर ऊर्जा का क्षरण अनिवार्य है। अपने मिथकों को एक एक कर तोड़ना है।

फिर लगता है कि मुखौटे आइसोलेशन में नहीं हैं। एक मुखौटे को भंजित करने की प्रक्रिया दूसरे मुखौटों को भुरभुरा करती जाती है। आप एक फ्रण्ट पर विजय की ओर अग्रसर होते हैं तो अन्य क्षेत्रों में भी स्वत: प्रगति करते हैं।

जब मैं कहता हूं कि ब्लॉगरी मेरा पर्सोना बदल रही है; तो उसका अर्थ यह होता है कि वह मेरा कोई न कोई पक्ष उभार रही है, कोई न कोई मुखौटा तोड़ रही है। आप इतना इन्टेण्सली अपने को वैसे अभिव्यक्त नहीं करते। ब्लॉगिंग वह प्लेटफार्म उपलब्ध कराता है। और अभिव्यक्ति के नाम पर झूठ का सोचा समझा प्रपंच नहीं फैलाया जा सकता। अत: मुखौटा-भंजन के लिये सतत मनन और सतत लेखन बहुत काम की चीज लगते है।

आइये अपने मुखौटे भंजित करें हम!  


Shiv मैं मुखौटा भंजन की बात कर रहा हूं। पर उससे कहीं बेहतर; कल पण्डित शिवकुमार मिश्र ने मुझमें प्रचण्ड ईर्ष्या भरने वाला उत्तमकोटीय सटायर लिखा – "कबीर का ई-मेज?"

भैया, अइसन इमेज गई चोर कै; जौन आप को आपका नेचुरल सेल्फ न रहने दे इस ब्लॉग जगत में!

और कोई महान बिना मुखौटे के रहा, जिया और अभी भी प्रेरणा दे रहा है; तो वह कबीर से बेहतर कौन हो सकता है!?!

मैंने कहा; "लेकिन कबीर की बातें तो बड़ी सरल होती थीं. वे जो कुछ भी लिखते थे, उसे लोग आसानी से समझ सकते हैं. वहीँ आप लिखने के नाम पर जलेबी काढ़ते हैं."
मेरा सवाल सुनकर वे खिस्स से हंस दिए. बोले; "अरे तो मैंने कब कहा कि मैं कबीर हूँ? मैं तो केवल इतना बता रहा था कि मैं कबीर का ईमेज हूँ."

— शिवकुमार मिश्र की पोस्ट से।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

30 thoughts on “आइये अपने मुखौटे भंजित करें हम!

  1. हाँ जी मुखौटा एक आनन्द देता है, एक झूठा पर मजेदार आनन्द।चिन्हित –> चिह्नितचिह्न = च+ि+ह+्+न

    Like

  2. बिना मुखोटे वाला आदमी अपने विश्वास के सहारे जी लेता हे, बस अन्तर इतना ही हे की मुखोटे वाले उसे डरते धमकाते हे, उसे बुरा भला कहते हे, लेकिन वह अपने विश्वास के साहरे असली चेहरे के साथ निर्भीक चलता रहता हे बिना डरे, बिना डगमागये, अपने रास्ते पर ओर उसे से जलने वाले बहुत पीछे रह जाते हे एक दिन

    Like

  3. यहाँ कौन है जिसका चेहेरा असली है । दिल तो नकली है ही,हँसी भी नकली है ।

    Like

  4. मुखौटा-भंजन के लिये सतत मनन और सतत लेखन बहुत काम की चीज लगते है। true

    Like

  5. अच्छा याद दिलाया आपने …..दशहरा करीब है मुखोटों की पूँछ बढ़ने वाली है !

    Like

  6. मुखौटे ना हों, तो सरजी, बंदों को झेलना मुश्किल हो जाये। मुखौटे हैं, तो बंदे झेलेबल हैं। और हम भी खुद भी औरों के लिए झेलेबल हैं। अगर सबके मन की सच्ची सच्ची दिखने लग जाये, तो फिर एक दूसरे को फाड़ कर खाने के अलावा कुछौ ना बचेगा। जिसकी पोस्ट पर आप वाह वाह करते दिख रहे हैं, आपके दिमाग में उसकी पिक्चर यूं चल रही होगी, अबे चिरकुट। टाइम वेस्टक,अपना भी और हमरा भी।

    Like

Leave a reply to राज भाटिय़ा Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started