| पिछली बार भी वे ईद से पहले आये और इसी तरह का ऑपरेशन किया था। इसकी पूरी – पक्की जांच होनी चाहिये और यह सिद्ध होना चाहिये कि पुलीस ने जिन्हें मारा वे सही में आतंकवादी थे।" – सलीम मुहम्मद, एक स्थानीय निवासी। ———- एस ए आर गीलानी, दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापक, जिन्हें २००१ के संसद के हमले में छोड़ दिया गया था, ने न्यायिक जांच की मांग करते हुये कहा – "इस इलाके के लोगों को बहुत समय से सताया गया है। यह नयी बात नहीं है। जब भी कुछ होता है, इस इलाके को मुस्लिम बहुल होने के कारण निशाना बनाती है पुलीस।" |
एनकाउण्टर के बारे में पुलीस के कथन पर शायद ही कोई यकीन कर रहा है। — सिफी न्यूज़
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ऐसे बुद्धि के दरिद्रों पर कोई टिप्पणी करना अपना समय नष्ट करना है!@आलोक पुराणिक:कबीर कौशिक की फिल्म सहर में फर्जी एनकाऊंटर में कुछ पुलिस वाले एक गैंगस्टर को मार गिराते हैं। एक वकील साहब उन्हे डिफेंड तो करते हैं, पर उनसे कहते हैं कि आईडियली यह सब नहीं होना चाहिए। इसके जवाब में पुलिस चीफ कहते हैं कि आईडियली यह नहीं होना चाहिए, पर हमें आइडियल कंडीशंड तो दीजिये।वाकई! वह एक बढ़िया और मर्मस्पर्शी फिल्म थी।
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ise encounter shabad dena theek nahi shaad muthbedh zayada achha shabd hai jab dono taraf se goli chali ho to encounter kaisa ho sakta haiaur agar police wale ki death hui to goli duari taraf se bhi chali haiaur jo log hathiyaar rakhe ho kya unke bare main bhi check karne ki zarurat haiajab baat hai
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इन्स्पेक्टर मोहन लाल शर्मा को नमन एवं मेरी श्रृद्धांजलि!!!बहुत धन्यवाद
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अब समय कौन साम्प्रदायिक है और कौन सेक्युलर,यह बहस चलानें का नहीं है। इस प्रकार की बहस चलानें वाले न तो समय की नज़ाकत समझ पा रहे हैं और नही स्थिति की गंभीरता का अंदाज। मामला वोट बैंक की राजनीति करनें वालों के हाथों से भी फिसलता जा रहा है यह आनें वाले कुछ महिनों में और गंभीरता से सामनें आयेगा। अपनीं बौद्धिक वाचालता को हमनें लगाम नहीं लगायी तो एक दिन ठगे से खड़े रह कर शायद हाथ भी न मसल पाएँ। मोहन चन्द्र शर्मा की माँ नें रोते-रोते आज तक से कहा कि जो लोग आज अमर रहे के नारे लगा रहे है वह जनता और यह हार चढ़ानें वाले नेता कल के बाद दिखाई भी न देंगे, पाँच अनब्याही बहनों,पत्नी ,और दो बच्चों के साथ बूढे माँ बाप का इकलॊता घर चलानें वाला बेटा था वह। क्या हम उस परिवार की कुछ भी मदद अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर उन के दुख को कम करनें और हारी बीमारी में सांत्वना देने के लिये कर पाँयेंगे? कल मेरे विमतीय मित्र नें कहा कि शर्मा की मृत्यु पर इतना विलाप क्यों? उन्हें सरकार तनखाह किस बात की देती थी? कल ही देर रात एन डी टी वी पर एक मानवाधिकार संस्था के गौतम नवलखा बता रहे थे कि शर्मा के कुछ एनकाउन्टर्स की उन्होंने जाँच की थी और उन्हें अधिकाँश संदिग्ध लगे थे और ज़ामियाँ नगर वाला आज का एनकाउन्टर भी सन्देहों से परे नहीं है? मॄत शरीर के पास खड़ी मोहन चद्र की आत्मा नवलखा की बात सुन कर तो रो ही पड़ी होगी, इस विचार से कि क्या ऎसे कॄतघ्न भी हो सकतें हैं अपनें देश में? क्या भविष्य में कोई माँ अपनें मोहन को हमारी आपकी या फिर देश की रक्षा के लिए जान न्योछावर करनें की प्रेरणा देगी?
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“इन्स्पेक्टर मोहन लाल चन्द शर्मा, एनकाउण्टर में घायल पुलीसकर्मी की अस्पताल में मृत्यु हो गयी”क्या इसके सच होने पर भी सवालिया निशान है? और अगर सामने वाला गोली चला कर ये काम कर रहा है… तो उसे तो निर्दोष ही कहेंगे शायद ! भारत देश है.
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शर्मा जी व उनके जैसे देश के सपूतों को सलाम व श्रद्धांजलि।रहा सवाल सच का तो साहेब सच क्या है और इसे कौन खोज पाया है?
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जो भी सत्ता में आता है, सबसे पहले कानून को रखैल बनाता है । हम सब, इस प्रक्रिया के चश्मदीद गवाह बनते हैं और कभी-कभी तो सहायक भी । कानून का शासन स्थापित किए बिना कोई बात बनने वाली नहीं । लेकिन वह ‘आकाश-कुसुम’ जैसी ही लगती है ।श्रीविजय वाते का एक शेर सब कुछ कह देता है -चाहते हैं सब कि बदले ये अंधेरों का नजामपर हमारे घर किसी बागी की पैदाइश न हो
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.यार, यह ब्लाग-ओनर के एप्रूवल वाला झमेला बड़ा इरिटेटिंग है !बिल्कुल आब्जेक्शन सस्टेन्ड… व आब्जेक्शन ओवररूल्ड सरीखा !
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