कुछ यादें


यह पोस्ट श्रीमती रीता पाण्डेय (मेरी पत्नी जी) की है| वर्तमान भारत की कमजोरियों के और आतंकवाद के मूल इस पोस्ट में चार दशक पहले की यादों में दीखते हैं –
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बात सन १९६२-६३ की है। चीन के साथ युद्ध हुआ था। मेरे नानाजी (पं. देवनाथ धर दुबे) को देवरिया भेजा गया था कि वे वहां अपने पुलीस कर्मियों के साथ खुफिया तंत्र स्थापित और विकसित करें। देवरिया पूर्वांचल का पिछड़ा इलाका था। न बिजली और न पानी। अस्पताल और स्कूल सब का अभाव था। इसलिये वहां कोई पुलीस कर्मी जल्दी पोस्टिंग पर जाना नहीं चाहता था। खुफिया तंत्र के अभाव में देवरिया में चीनी घुसपैठ नेपाल के रास्ते आसानी से हो रही थी। पास में कुशीनगर होने के कारण बौद्ध लामाओं के वेश में चीनी जासूस आ रहे थे और देवरिया में कुछ स्थानीय लोग प्रश्रय और सुरक्षा प्रदान कर रहे थे।

उस समय मैं तीन चार साल की थी। मेरी समझ बस इतनी थी कि हमें सिनेमा हॉल में खूब फिल्में देखने को मिलती थीं; हालांकि किसी फिल्म की कहानी या नाम मुझे याद नहीं है। जो सिपाही हमें ले कर जाते थे, वे बड़े चौकन्ने रहते थे। फिल्म देखना उनकी ड्यूटी का अंग था। उनके अनुसार फिल्म के अन्त में जब “जन गण मन” के साथ तिरंगा फहरता था तो सब लोग खड़े हो जाते थे, पर कुछ लोग बैठे रहते थे और कुछ लोग अपमानजनक तरीके से पैर आगे की सीट पर फैला देते थे। सिपाही जी की नजर उन चीनी मूल के लोगों पर भी थी, जो झण्डे की तरफ थूकने का प्रयास करते थे।

उस समय आतंकवाद तो नहीं था, पर साम्प्रदायिक भावना जरूर रही होगी। वोट बैंक की राजनीति इतने वीभत्स रूप में नहीं थी। तब की एक घटना मुझे और याद आती है। आजमगढ़ में हल्की-फुल्की मारपीट हुई थी। नानाजी वहां पदस्थ थे। पुलीस के लाठी चार्ज में कुछ लोग घायल हुये थे। पर स्थिति को काबू में कर लिया गया था। इस घटना की सूचना स्थानीय प्रशासन ने लखनऊ भेजना उपयुक्त नहीं समझा होगा। और दिल्ली को सूचित करना तो दूर की बात थी। पर दूसरे दिन तड़के ४-५ बजे पाकिस्तान रेडियो से समाचार प्रसारित हुआ – “भारत में, आजमगढ़ में दंगा हो गया है और मुसलमानों का कत्ले-आम हो रहा है। पुलीस हिन्दुओं के साथ है।”

साठ के दशक में पुलीस के पास बढ़िया वायरलेस सेट नहीं थे। संचार के साधन आदमयुग के थे। ऐसे में इतनी त्वरित गति से पाकिस्तान तक सूचना का जाना आश्चर्यजनक था। दिल्ली-लखनऊ वालों के कान शायद इस लिये खड़े हुये। कई अधिकारी निलम्बित हुये। छानबीन हुई। कुछ आपत्तिजनक सामान मिले। आगे की बातें मुझे ज्यादा याद नहीं हैं।

अब जब टीवी पर पैनल डिस्कशन सुनती हूं तो कई बातें याद आ जाती हैं जो नानाजी अपने रिटायरमेण्ट के बाद सुना दिया करते थे (वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे)।     


(नानाजी को दिवंगत हुये डेढ़ दशक हो गया। ऊपर का चित्र लगभग २२ वर्ष पहले का है।)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

25 thoughts on “कुछ यादें

  1. आ भाभीजी ने बिल्कुल सही कहा भारत मे क्या हो रह है,ये भारत मे रहने वालो से पहले दुश्मनो को पता चल जाता है,और वे उन खबरो को तोड-मरोड कर इस देश मे ज़हर फ़ैलाने के लिये इस्तेमाल करते है।बहुत सही लिखते रहियेगा

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  2. रीता जी, पढ़कर बहुत अच्छा लगा मानो समय में पीछे चले गए हों. कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि आजमगढ़ में तब भी साम्प्रदायिक वैमनस्य की जड़ें इतनी गहरी थीं.

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  3. मेरा घर तबके देवरिया और अबके कुशीनगर जिले में ही है। वहाँ ऐसी बातें यदा-कदा सुनने में आती रहती थीं। आजमगढ़ में तो सुना है कि बहुत पहले रेडियो ट्रान्समिशन की छतरी और उससे सम्बन्धित मशीनरी पकड़ी गयी थी, एक संप्रदाय विशेष के धार्मिक स्थल के अहाते से। धुँधली यादें आपने ताजा कर दीं। ऐसे संस्मरण इस पते पर आते रहने चाहिए। गुरुदेव को बड़ी राहत मिलती होगी। आभार।

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  4. आलोकजी की बात से सहमत हूँ….वैसे तब देश के प्रति सेवाभाव भी लोगों में था…अब कम होते जा रहा है।अच्छा संस्मरण रहा।

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  5. चीनी कभी भी विश्वसनीय नहीं रहे हैं। ना तो उनके बल्ब, टेपरिकार्डर ना नेता। अऊर संस्मरण लाइये।

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  6. देवरिया, बस्ती, कुंडवा, गोरखपुर की जब भी बात होती है…ननिहाल, ददिहाल यद आ जाता है. आभार रीता भाभी का!!

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  7. बड़ा पुराना चित्र, लगता है आज का ही है जैसे की यह कथा. कितना सामंजस्य है!! ऐसा लगता है जैसे कभी कुछ बदला ही नही.

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  8. सौ. रीताजी , नमस्ते ! आपके पूज्य नानाजी (पं. देवनाथ धर दुबेजी के विषय मेँ लिखी आपकी यादेँ पढना बहुत अच्छा लगा !उन जैसे बहादुर देशभक्तोँ से ही भारत , भारत है !- लावण्या

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