अमित माइक्रो ब्लॉगिंग की बात करते हैं।
यह रही मेरी माइक्रो ( Style Definitions */ p.MsoNormal, li.MsoNormal, div.MsoNormal {mso-style-parent:””; margin:0cm; margin-bottom:.0001pt; mso-pagination:widow-orphan; font-size:12.0pt; font-family:”Times New Roman”; mso-fareast-font-family:”Times New Roman”; mso-bidi-font-family:”Times New Roman”; mso-bidi-language:AR-SA;}@page Section1 {size:612.0pt 792.0pt; margin:72.0pt 90.0pt 72.0pt 90.0pt; mso-header-margin:36.0pt; mso-footer-margin:36.0pt; mso-paper-source:0;}div.Section1 {page:Section1;}–> μ) पोस्ट :
दिनकर जी की रश्मिरथी में कर्ण कृष्ण से पाला बदलने का अनुरोध नहीं मानता, पर अन्त में यह अनुरोध भी करता है कि उसके “जन्म का रहस्य युधिष्ठिर को न बता दिया जाये। अन्यथा युधिष्ठिर पाण्डवों का जीता राज्य मेरे कदमों में रख देंगे और मैं उसे दुर्योधन को दिये बिना न मानूंगा।”
कर्ण जटिल है, पर उसकी भावनायें किसकी तरफ हैं?

जटिल कर्ण की भावनाएं किसकी तरफ़ हैं?जटिल प्रश्न है. जटिल कर्ण निहायत ही जटिल प्रोफेशनल था. अपनी भावनाओं की रक्षा करना ही उसका प्रोफेशन था. उसकी भावनाएं शायद केवल उसकी तरफ़ थी. ऐसा न होता तो युधिष्ठिर से संभावित राज्य पाकर वो दुर्योधन को देने की बात न करता. दुर्योधन को राज्य देने की उसकी बात से यह न माना जाय कि उसकी भावनाएं दुर्योधन की तरफ़ थीं. वैसे जहाँ तक मुझे याद है, दुर्योधन जी ने अपनी डायरी के पेज ३८९० पर कर्ण की इन भावनाओं की विस्तृत चर्चा की है. जल्दी ही वो पेज टाइप करके सबके सामने रखता हूँ. ब्लॉगरगण कर्ण की भावनाओं की दिशा तय नहीं कर सके तो क्या हुआ? पढने के लिए दुर्योधन के विचार ज़रूर मिलेंगे.एक माईक्रो पोस्ट पर मैक्रो टिपण्णी.
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कर्ण धर्म के साथ था। उसका जो मानव धर्म था, उसने निभाया।
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@ संजय बेंगानी – आप “यह रही मेरी माइक्रो ( μ) पोस्ट :” के नीचे की पोस्ट देखें; क्या वह भी माइक्रो पोस्ट नहीं है? असल में पहले की पंक्तियां तो माइक्रो-पोस्ट की प्रस्तावना में हैं! :-) एकलव्य/सूत पुत्र और रामायण कालीन शम्भर का अपमान तो मुझे भी उचित नहीं लगता। पर वह पर्याप्त नहीं है कि पूरी प्राचीन विरासत ही नकारी जाये।लगता है टिप्पणी पोस्ट से लम्बी हो गयी मेरी! :-)
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मुझे लगता है यह पोस्ट माइक्रो के हिसाब से बड़ी है :) सूतपुत्र को जिसने सम्मान दिया उसके प्रति अनुराग गलत कहाँ है, धर्मराज के गुणी भाई तो अछूत का अपमान करते थे…वास्तविकता से अनजान रहे हो भले.
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माइक्रो ब्लॉगिंग में सफलता के लिए पहले मेगा ब्लॉगर बनना होता है, वरना कोई तवज्जो नहीं देगा. आप वो मुकाम हासिल कर चुके हैं, पर ये हर किसी के बस का नहीं.
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कर्ण एक तरफ़ मन से पांडवों को सही मानता है, उनका साथ भी चाहता था और दूसरी तरफ़ उसका कर्तव्य उसे दुर्योधन का साथ देने के लिए कहता है. मन को हटा कर कर्तव्यों का साथ देने के कारण ही तो महाभारत हुआ……
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cong. लो माइक्रो बधाई
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समीर जी की टिप्पणी, मेरी भी टिप्पणी मानी जाय।
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diye gaye links per audio files sunii. prabhaavi hain .aabhaar
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माइक्रो पोस्ट की आइडिया अच्छी है। कभी हम भी आजमाएंगे।मेरा डेढ़ साल का बेटा सत्यार्थ जब भी मेरी गोद में कम्प्यूटर के सामने होता है, आपके पेज पर अनवरत चलते हुए इन्सान को देखकर खुश हो जाता है। “देदी दा लिआ है… तला गिआ…टा टा… बाय बाय।” कभी कभी तो दिखाने के लिए जिद भी करता है।
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