ढ़पोरशंखी कर्मकाण्ड और बौराये लोग


सामान्यत: हिन्दी का अखबार मेरे हाथ नहीं लगता। सवेरे मेरे पिताजी पढ़ते हैं। उसके बाद मैं काम में व्यस्त हो जाता हूं। निम्न मध्यवर्गीय आस-पड़ोस के चलते दिन में वह अखबार आस पड़ोस वाले मांग ले जाते हैं। शाम के समय घर लौटने पर वह दीखता नहीं और दीखता भी है तो भांति-भांति के लोगों द्वारा चीथे जाने के कारण उसकी दशा पढ़ने योग्य नहीं होती।

Ghurapur
अमर उजाला की एक कटिंग

छुट्टी के दिन हिन्दी अखबार हाथ लग गया। पहले पन्ने की एक स्थानीय खबर बहुत अजीब लगी। जसरा के पास घूरपुर में पुलीस चौकी पर हमला किया गया था।

“मौनीबाबा” की अगवाई में एक ग्लास फैक्टरी में बने मन्दिर में यज्ञ करने के पक्ष में थे लोग। मौनीबाबा घूरपुर से गुजरते समय वहां डेरा डाल गये थे। उन्होंने लोगों को कहा कि बहुत बड़ी विपत्ति आसन्न है और जरूरत है एक यज्ञ की। लगे हाथ ग्लास फैक्टरी के मन्दिर में कीर्तन प्रारम्भ हो गया। यज्ञ का इन्तजाम होने लगा। वेदिका के लिये जमीन खोदने लगे लोग। पर जब फैक्टरी के मालिक ने पुलीस को रिपोर्ट की तो पुलीस ने लोगों को रोका। मौनीबाबा को चित्रकूट रवाना कर दिया गया। कुछ लोगों को पकड़ लिया पुलीस ने।

उसके बाद लोगों ने किया थाने का घेराव और चक्काजाम। जिला प्रशासन ने अन्तत: मौनी बाबा को वापस आने के लिये मनाने की बात कही लोगों के प्रतिनिधियों से।

अजीब लोग हैं। किसी के प्राइवेट परिसर में जबरी यज्ञ करने लगते हैं। रोकने पर उग्र हो जाते हैं। और कोई काम नहीं। धार्मिक कर्मकाण्डों ने लोगों को एक आसान बहाना दे दिया है जीने का। आर्थिक चौपटपन है मानिकपुर, जसरा, शंकरगढ़ चित्रकूट के बुन्देलखण्डी परिदृष्य में। अत: लोग या तो बन्दूक-कट्टे की बात करते हैं; या देवी-भवानी सिद्ध करने में लग जाते हैं। अनिष्ट से बचने को कर्म नहीं, यज्ञ-कीर्तन रास आते हैं। रोकने पर आग लगाने, पथराव और चक्का जाम को पर्याप्त ऊर्जा है लोगों में।

जकड़े है जड़ प्रदेश को ढ़पोरशंखी धार्मिक कर्मकाण्ड और बौराये हैं लोग। बहुत जमाने से यह दशा है।  


ढ़पोरशंख शब्द का प्रयोग तो ठसक कर कर लिया। पर ढ़पोरशंख की कथा क्या है? यह शब्द तो मिला नहीं शब्दकोश में।
यज्ञ कर्म तो बिना राग द्वेष के किये जाने हैं। बिना कर्म-फल की आशा के। आप /९-११/गीता/ के तात्पर्य को देखें। फिर बलात किसी जमीन पर कीर्तन-यज्ञ और दंगा-फसाद; यह कौन सा धर्म है जी?! और कौन सा कर्म?!


कल टिप्पणी में अशोक पाण्डेय ने कहा कि देहात के भारत में तो पी-फैक्टर नहीं सी-फैक्टर चलेगा। यानी जाति का गुणक। बात तो सही लगती है उनकी। पर मैं तो अभी भी कहूंगा कि राजनीतिक दल पी-फैक्टर की तलाश करें; साथ में सी-फैक्टर की समीकरण भी जमा लें तो बहुत बढ़िया!smile_wink


और अन्तिम-मोस्ट पुच्छल्ला –
इन्द्र जी के ब्लॉग पर यह पोस्ट में है कि अमरीकी राष्ट्रपतीय चुनाव में अगर निर्णय गूगल के इन्दराज से होना हो तो ओबामा जीते। उनकी ६४० लाख एन्ट्रीज हैं जबकि मेक्केन की कुल ४७४ लाख; गूगल पर।


अपडेट पुच्छल्ला:
वाह! सत्यार्थमित्र ने ढ़पोरशंख की कथा (“अहम् ढपोर शंखनम्, वदामि च ददामि न”) लगा ही दी अपनी पोस्ट पर। इसे कहते हैं – ब्लॉगर-सिनर्जी! आप वह पोस्ट देखने का कष्ट करें।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

27 thoughts on “ढ़पोरशंखी कर्मकाण्ड और बौराये लोग

  1. आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।*********************************** सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)***********************************

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  2. यहाँ बेंगळूरु में फ़ुटपाथ पर कुछ “मन्दिर” मिल जाएंगे।इन्हें “मन्दिर” कहना कहाँ तक उचित है यह विवादास्पद हैं। कोई छत नहीं, केवल मूर्ति या एक शिवलिंग। कहीं कहीं तो रास्ते के ठीक बीच में ऐसे “मन्दिर” मिल जाएंगे। मध्यवर्गीय और शिक्षित परिवार यहाँ कभी नहीं पधारते हैं। केवल कुछ गरीब लोग यहाँ पूजा करते हैं। यहाँ के “पूजारी” को शास्त्रों का कितना ज्ञान है, तथा कहाँ तक इस काम के लिए योग्य है यह भी विवादस्पद है। इन्हें हटाने की किसी की हिम्मत नहीं है। कौन मुसीबत मोल लेगा! गरीब के पास चाहे पैसा न हो, पर वोट तो है। चलने दो ! आखिर इनको भी अधिकार है कहीं जाकर भगवान से प्रार्थना करने का। संपन्न लोगों और सवर्ण हिन्दुओं के मन्दिरों में भले ही इन लोगों का प्रवेश वर्जित नहीं, यह लोग हमारे मन्दिरों में प्रवेश करना नहीं चाहेंगे। हीन भावना से आज भी उन्हें मुक्ति नहीं मिली है।

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  3. आपने सही कहा-लोग या तो बन्दूक-कट्टे की बात करते हैं; या देवी-भवानी सिद्ध करने में लग जाते हैं। अनिष्ट से बचने को कर्म नहीं, यज्ञ-कीर्तन रास आते हैं। रोकने पर आग लगाने, पथराव और चक्का जाम को पर्याप्त ऊर्जा है लोगों में।

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  4. .अपुन ने पूरी पोस्ट तो पढ़ी नहीं, पर टिपिया दूँ .. क्या जाता है ?तो, सरजी.. छुट्टी के दिन आप हिन्दी अख़बार पढ़ते हैं, वह भी हाथ लगने पर,यानि ख़रीद कर नहीं ? इट इज़ नाट वर्थ स्पेन्डिंग मनी !लेकिन यदि आज फास्ट न रखा हो तो, लंच में पोटैटो ब्रिंज़ल वेजिटेबल विथ फ़्यू चपातीज़ तो लेंगे ही ! आज एवनिंग में थोड़ा टाइम स्पेयर करें.. मेरे रेज़िडेन्स पर ढपोरशंख की कथा होगी, उससे परिचय भी हो जायेगा..और मुझे भी मलाल न रहेगा कि मेरे गुरु ने ढपोरशंख न जाना !

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  5. आप से पुरी तरह सहमत हुं। वैसे आलोक जी भी गलत नही कह रहे हैं।एक बार इलाहाबाद जीप खरीदने के लिये रेल से गया था,रेल मे ही एक पन्डे ने मुझ पर कब्जा कर लिया।उसे लाख समझाया मगर वो होटल के दरवाजे तक साथ गया।उसके बाद बडी मुश्किल से उसके कब्जे से मुक्त हुआ।दुसरे दिन संगम गया तो वहां भी नाव पर बैठे महराज ने सन्कल्प के नाम पर घेरने कि कोशिश की।जब आदमी पर कब्जा करने से नही चूकते तो ज़मीन कहां छोदने वाले हैं।बडी बेबाकी से लिखा आपने।वर्ना लठ लेकर पिछे लगने वालों की कमी नही है।

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  6. आडम्बर और रूढ़ियों ने तो हिन्दू धर्म का बेड़ा पहले से गर्क कर रखा है। अब इसमें एक और बुराई जुड़ गयी है। भक्तिभाव के प्रदर्शन की होड़। इस बुराई का शिकार बहुत पढ़े-लिखे लोग भी हो रहे हैं।ढपोर शंख की कथा मुझे बचपन में बतायी गयी थी। याद करके आज ही सत्यार्थमित्र पर ठेलता हूँ।*******************************सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥शारदीय नवरात्रारम्भ पर हार्दिक शुभकामनाएं!(सत्यार्थमित्र)

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  7. आलोक पुराणिक जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी:धर्म सब जगह विकट धंधा है, पर उत्तर भारत में निहायत फूहड़ धंधा है। कभी कभी लगता है कि साऊथ के देवी देवता कित्ते सौंदर्यबोध वाले हैं कि क्लासिकल सुनकर, गंगूबाई हंगल को सुनकर, सुब्बूलक्ष्मी को सुनकर प्रसन्न होते हैं। नार्थ के देवी देवता तो जागरण में लेटेस्ट फिल्मी ट्यून सुनते हैं। कैसा फर्क है, साऊथ और नार्थ में। पर इस संबंध में कुछ बोलने का मतलब है पिटाई।

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