चार थे वे। आइसक्रीम ले कर काउण्टर से ज्यादा दूर चल कर सीट तलाशने का आत्मविश्वास नहीं था उनमें। सबसे नजदीक की खाली दो की सीट पर चारों बैठे सहमी दृष्टि से आस-पास देखते आइस्क्रीम खा रहे थे।
मैं आशा करता हूं कि अगली बार भी वे वहां जायेंगे, बेहतर आत्मविश्वास के साथ। मैकदोनाल्द का वातावरण उन्हें इन्टीमिडेट (आतंकित) नहीं करेगा।
माइक्रोपोस्ट? बिल्कुल! इससे ज्यादा माइक्रो मेरे बस की नहीं!
ज्यादा पढ़ने की श्रद्धा हो तो यह वाली पुरानी पोस्ट – "बॉस, जरा ऑथर और पब्लिशर का नाम बताना?" देखें!
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सुना है सिंगूर से साणद सादर ढो ले गये टाटा मोटर्स को गुजराती भाई।


अभी उस दिन का किस्सा बयां करता हूँ -बनारस के माल में मक्दोनाल्ड का बर्गर खा रहा था -अभिजातों वाली क्षद्म वाली मुखमुद्रा में ! एक सी अर्चिन न जाने कहाँ से नमूदार हुआ -नए कपडों में बन ठन कर -पर दांत और मिची मिची आँखें पोल खोल दे रही थी -उसने एक बर्गर की फरमाईश की -अब क्या किया जाय -लगा सारा रेस्तरां मेरी और ही देख रहा है -अभिजात्य होने की कीमत चुकाई उसके लिए भी २० रूपये का बर्गर मगा कर -बैरा शायद मुस्कराया भी था -पर बड़ी कोफ्त हुयी बाद में फिर उसे किसी और से वैसे ही पेश आते हुए -वह प्रोफेसनल था …..बच के रहना रे बाबा !
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भई, फोटू ने ही सारी बात कह दी। आप तो फोटोग्राफर बन लीजिये। एलजी का क्विटी नामक मोबाइल ले लीजिये, इसमें भौत अच्छी क्वालिटी का कैमरा बताते हैं। दिये जाइये दनादन। सिटी बैंक, या किसी अमेरिकन बैंक, या अब तो भारतीय निजी बैंकों में जाते हुए भी कभी कभार घबराहट होती है, विकट आतंककारी माहौल होता है, फूं फां टाइप। हालांकि अमेरिका के बैठने के बाद यह आतंक खत्म हो गया है जी।
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आईस्क्रीम खा रहे थे, और वह भी मैक्डॉनल्ड जैसी जगह पर?यह देखकर प्रसन्न होता हूँ।कम से कम बाल श्रमिक तो नहीं थे?यहाँ ऐसे लडकों को रास्ते के होटलों में मेज़ साफ़ करते देखे जा सकते हैं।=====================पुराना पोस्ट भी पढा।बॉस, जरा नौटियाल का असली नाम बताना!उसी पोस्ट पर प्रियंकरजी ने टिप्पणी में लिखा था:”भैंस के आगे बीन बजाना” बहुत दिनों से “Casting pearls before swine” का सही हिन्दी अनुवाद ढूँढ रहा था। आज मिल गया।=====================सानन्द से नैनो निकलेगी: आनन्द महसूस होता है।सही निर्णय लिया टाटाने।कर्नाटक सरकार ने भी उन्हें आमण्त्रित किया था।येदियूरप्पा तो भले आदमी हैं लेकिन विधान सभा में सीटों की कमीं है।बंगाल में ममताने जो किया, वही यहाँ देवेगौड़ा कर सकते थे और येदियूरप्पा का वही हाल हो सकता था जो बुद्धदेवजी का बंगाल में हुआ।अच्छा हुआ टाटा यहाँ नहीं आए।
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बहुत संवेदनशील और पैनी नजर है आपकी ! आपकी ये माइक्रो पोस्ट नही आज इसको कविता-पोस्ट कहना पडेगा ! शुभकामनाएं !
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मुझे याद आता जब हम लोगों का ग्रुप पहली बार भोपाल में खाना खाने होटल में गया था | खाना खाने के बाद होटल में कटोरी में गर्म पानी तथा एक साबुन पानी में भीगा नेपकिन दिया | मेरे मित्र ने उस पानी को पी लिया :) बाद में हमने उसे बताया अबे वो पानी हाथ धोने के लिए था | हमने अपने मित्र का काफी दिन तक मज़ा लिया | ग्रुप में कुछ कन्याएं भी थी अच्छा हुआ उन्होंने थोड़ा इंतजार किया | अन्यथा मुझे पता था की कुछ ऐसी यादें और जुड़ती |
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चार थे वेआइसक्रीम ले काउण्टर से ज्यादा दूरसीट तलाशने का आत्मविश्वास नहीं था उनमें।सबसे नजदीक की खाली दो की सीट परबैठे चारों सहमी दृष्टि से आस-पास देखते खा आइस्क्रीम रहे थे।अगली बार भी वे आयेंगे वहां बेहतर आत्मविश्वास के साथआतंकित नहीं करेगा मैकदोनाल्द का वातावरण उन्हें तब। माइक्रो पोस्ट? आप कविता करने लगे हैं।
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माईक्रोपोस्ट..वाह! क्या नजर है ?सहमत है भइया!अरे हमारी भी हिम्मत कभी कभी नहीं पड़ती है बड़ी शीशे वाली दुकानों में , …..
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भारत के भविष्य को मेरी शुभकामनाएं!
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घटनाओं पर माईक्रो नजर…..और उस पर एक माईक्रोपोस्ट..वाह।
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बहुत गजब लिखा है. मुझे याद आया वो दिन, जब बम्बई में पहली बार फाईव स्टार में गया था एक दोस्त के साथ बीयर पीने. ऐसा ही तो दिख रहा था मैं-शायद थोड़ा और मोटा. :)आप एक अति संवेदनशील हृदय के मालिक है…ईश्वर करे इस धड़कन की धुन यूँ ही बजती रहे…कभी सुर से अलग न हो!!साधुवाद!!!
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