चार थे वे। आइसक्रीम ले कर काउण्टर से ज्यादा दूर चल कर सीट तलाशने का आत्मविश्वास नहीं था उनमें। सबसे नजदीक की खाली दो की सीट पर चारों बैठे सहमी दृष्टि से आस-पास देखते आइस्क्रीम खा रहे थे।
मैं आशा करता हूं कि अगली बार भी वे वहां जायेंगे, बेहतर आत्मविश्वास के साथ। मैकदोनाल्द का वातावरण उन्हें इन्टीमिडेट (आतंकित) नहीं करेगा।
माइक्रोपोस्ट? बिल्कुल! इससे ज्यादा माइक्रो मेरे बस की नहीं!
ज्यादा पढ़ने की श्रद्धा हो तो यह वाली पुरानी पोस्ट – "बॉस, जरा ऑथर और पब्लिशर का नाम बताना?" देखें!
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सुना है सिंगूर से साणद सादर ढो ले गये टाटा मोटर्स को गुजराती भाई।


माइक्रो पोस्ट पर मैक्रो टिप्पणियां :)
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असल में इन बच्चों को आप समझ नहीं सके, ताज्जुब है कि कोई टिप्पणी देने वालों ने भी नोटिस न किया । असल में ये बच्चे घर से ट्यूशन पढने के पहले या बाद में थोडी मौज मस्ती करने के प्लान से मैक डी आये होंगे । लगता है बच्चों के ऐन पीछे कोई जानकार अंकल/भईया/आंटी खडे होंगे । जिनसे बचने के लिये सारे बच्चे एक ही सीट पर बैठ गये, सामने वाली सीट पर बैठते तो साफ़ दिख जाते । अब जल्दी से आईसक्रीम खत्म करके घर पे तेजी से साईकल चलाकर बिना शक हुये पहुंचने की प्लानिंग हो रही होगी ।हमने अपने टाईम में ऐसे काम बहुत किये हैं । पता नहीं पिताजी के दोस्त कहाँ कहाँ मिल जाते थे और हमारी खबर पिताजी को मिल जाती थी । हम जब ठेले पर खडे होकर मौज लेते हुये समोसे खाते थे तो लगता था बस कोई आस पडौसी न देख ले और हमारी पढाकू छवि न खराब हो जाये :-)फ़िर स्कूल बंक करके क्रिकेट खेलते समय भी बडी समस्या रहती थी कि खबर लीक न हो जाये :-)सौ बातों की एक बात, बच्चों का आत्मविश्वास आजकल देखते ही बनता है । वो नहीं डरने वाले मैक डी से, हम और आप ही भले असहज रहें ।
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कुछ दिन पहले मैं रेलवे स्टेशन पर फ्रूटी खरीद रहा था ,दो बच्चे बड़ी हसरत से फ्रूटी की और देख रहे थे . उन्हें देने का मन किया लेकिन झिझक ने रोक दिया . नई आर्थिक परिस्थितियां इन मासूमों तक इन चीजों की पहुँच बना रही हैं ,ये एक अच्छी बात है .
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मैकदोनाल्द में देसी बच्चे- ज्ञानजी के कैमरे चढ़े!
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bahut acha pakda hai sir… sach mujhe to koi bhi naya kaam karte waqt yu hi lagta hai ki are kahi sabse galat mujhse hi na ho jaye..
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बहुत ही सुन्दर रचना.अब जो मैक्डॉनल्ड मै जाये गे वो तो नौटियाल साहब जेसै ही होगे, साहब लोग :)धन्यवाद
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सस्ता है ज्यादा महंगा नही ,ऐ सी में बैठना ओर नाम भी बड़ा ….इसलिए आलू की टिक्की वहां खाइये .. पर उन्हें कितनी खुशी मिली होगी ओर कई दिनों तक ये हम ओर आप सोच नही सकते
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bahut accha lekhagar wqat ho to humare dustbin me thuk ke janyeregards
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कमेट पढने में भी मजा आया और पोस्ट पढने में भी..दिनेश सर ने तो आपकी पोस्ट को कविता का ही रूप दे डाला.. बढ़िया रहा..विश्वनाथ सर ने भी सही कहा की कम से कम बाल-श्रमिक तो नहीं थे..आलोक जी ने भी सही पह्रामाया.. आप फोटोग्राफर बन ही जाइए.. एस एक आर कैमरा खरीद लीजिये.. बस 500$ से शुरू होती है.. १२ मेगा पिक्सेल की.. :)कई लोग अपने-अपने अनुभव साथ लेते आये..अब मैं भी बताता चलता हूँ.. मैं किसी बड़े मॉल में जाता हूँ तो सबसे ज्यादा इसी तरह की चीजों पर ध्यान देता हूँ.. कुल मिला कर बहुत अच्छा माईक्रो पोस्ट थी..
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मेरी ओर से माइक्रो बधाई,झन्नाटेदार पोस्ट्।
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