किसी महत और दुरुह कार्य को सम्पन्न करने के लिये दो शक्तियां कार्य करती हैं। एक है दृढ़ और अटूट अभीप्सा और दूसरी है भाग्वतप्रसादरूपा मातृशक्ति। पहली मानव के प्रयत्न के रूप में नीचे से कार्य करती है और दूसरी ईश्वर की कृपा से सत्य और प्रकाश की दशा में ऊपर से सहायता करती मातृ शक्ति है। इस दूसरी शक्ति को ईश्वर ने समय समय पर विभिन्न कार्यों के प्रतिपादन के लिये प्रकट किया है।
| जहां प्रेम नहीं, सौन्दर्य नहीं, वहां मां महालक्ष्मी के होने की गुंजाइश नहीं। सन्यासियों की सी रिक्तता और रुक्षता उन्हें पसन्द नहीं। — प्रेम और सौन्दर्य के द्वारा ही वे मनुष्यों को भग्वत्पाश में बांधती हैं। |
श्री अरविन्द लिखते हैं – “माता की चार महान शक्तियां, उनके चार प्रधान व्यक्त रूप हैं। उनके दिव्य स्वरूप के अंश और विग्रह। वे इनके द्वारा अपने सृष्ट जीव जगत पर कर्म किये चलती हैं। — माता हैं तो एक ही पर वे हमारे सामने नाना रूप से अविर्भूत होती हैं। — उनके अनेकों स्फुलिंग और विभूतियां हैं; जिनके द्वारा उन्हीं का कर्म ब्रह्माण्ड में साधित हुआ करता है।”
माता के इन चार रूपों को श्री अरविन्द ने नाम दिये हैं – माहेश्वरी, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती। वे लिखते हैं कि, भगवती शक्ति का कोई और रूप देहधारियों के हृदय के लिये इनसे (महालक्ष्मी से) अधिक आकर्षक नहीं है। — माहेश्वरी इतनी स्थिर, गम्भीर महीयसी और दूरवर्ती हैं; — महाकाली इतनी द्रुतगामिनी और अट्टालवासिनी हो सकती हैं — पर महालक्षी की ओर सभी हर्ष और उल्लास से दौड़ पड़ते हैं। कारण, वे हमारे ऊपर भगवान के उन्मादन माधुर्य का जादू डालती हैं।
परन्तु श्री अरविन्द हमें सावधान भी करते हैं – इस मोहनी शक्ति को प्रसन्न करना इतना सहज नहीं है। — अन्त:करण का सामंजस्य और सौन्दर्य, चिन्ता और अनुभूति का सामंजस्य और सौन्दर्य, प्रत्येक बाह्यकर्म और गतिविधियों में सामंजस्य और सौन्दर्य, जीवन और जीवन के चतु:पार्श्व का सामंजस्य और सौन्दर्य – यह है महालक्ष्मी को प्रसन्न करने का अनुष्ठान। जहां प्रेम नहीं, सौन्दर्य नहीं, वहां मां महालक्ष्मी के होने की गुंजाइश नहीं। सन्यासियों की सी रिक्तता और रुक्षता उन्हें पसन्द नहीं। — प्रेम और सौन्दर्य के द्वारा ही वे मनुष्यों को भग्वत्पाश में बांधती हैं।
महालक्ष्मी की आराधना ज्ञान को समुन्नत शिखर पर पंहुच देती है। भक्ति को भगवान की शक्ति से मिला देती है। शक्तिमत्ता को छन्द सिखा देती है।
आज मां महालक्ष्मी के आवाहन और पूजन का दिन है। आइये हम मातृशक्ति को उनके सही रूप में याद कर ध्यान करें।
ऊँ महालक्ष्मी जय जय, देवी महालक्ष्मी जय जय।
पल पल सुन्दर सुमधुर, समरस आनंद की लय॥
ऊँ महालक्ष्मी जय जय!

आप को और रीता भाभी को दीवाली का प्रणाम!दीपावली आप और परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि और खुशियाँ लाए!
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एक है दृढ़ और अटूट अभीप्सा और दूसरी है भाग्वतप्रसादरूपा मातृशक्ति। शायद इसी भाव को गीता में निम्न श्लोक में कहा गया है:यत्र योगेश्वरो कृष्णो यत्र पार्थो धनंजयः।तत्र श्रीविजयोर्भूतिर्ध्रुवानीतिर्मतिर्मम।।समस्त पाण्डेय परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं! आज के दिन तो मैं भी कहूंगा: महलक्ष्मी नमोस्तुते!
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बहुत अच्छा लगा पढ़ कर. इतनी अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद भाभी जी को. श्री अरविन्द की कई बातें मेरे घर और दफ्तर में छोटे छोटे पोस्टर के रूप में लगी हैं …. अभी मेरे कंप्यूटर स्क्रीन के ठीक ऊपर ये है :The One whom we adore as the Mother is the divine Conscious Force that dominates all existence, one and yet so many-sided that to follow her movement is impossible even for the quickest mind and for the freest and most vast intelligence.आप को और आप के समस्त परिवार को दीवाली की मंगलकामनाएं.
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bahut khub jeenarayan narayan
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क्या केने क्या केने स्वामी ज्ञानानंदजी की जय हो। लक्ष्मी हर रुप में मोहनीय हैं। सारा खेला उन्ही का है। सारा मेला उन्ही का है। सारा ठेलमठेला उन्ही का है। आजकल सेनसेक्स से रुठी चल रही हैं, पर कब तक रुठी रहेंगी। कभी ना कभी तो सुध लेंगी। कबहु तो भनक पड़ेगी कान। जमाये रहिये। परिवार में सबको शुभकामनाएं।
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सामयिक और अच्छी ज्ञानवर्धक पोस्ट। पूरे परिवार को मेरी ओर से दीपावली की सादर शुभकामनाऐं।
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@ उड़न तश्तरी – (आप अपनी पोस्ट भी भाभी से जंचवा लिया करें..बस सलाह मात्र है..हा हा!)आपको कैसे लगता है कि निरंकुश लिखता हूँ। जंचवाता नहीँ?
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अवसरानुकुल भाभी जी की पोस्ट जबरदस्त है. आप अपनी पोस्ट भी भाभी से जंचवा लिया करें..बस सलाह मात्र है..हा हा!मेरी तरफ से पूरे परिवार को दीपावली की सादर शुभकामनाऐं.
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वाह रीता भाभीजी ने कितना सुँदर लिखा है और माता महालक्ष्मी जी का स्मरण किया है -हम भी शामिल हैँ पूजन मेँ – महलक्ष्मी नमोस्तुते !!
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आपको एंव आपके परिवार पर माँ के समस्त रुपों का आशीर्वाद बना रहे, यही मंगलकामना!!शुभ दीपावली
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