मेरे प्रिय ब्लॉगर अशोक पाण्डेय ने एक महत्वपूर्ण बात लिखी है अपनी पिछली पोस्ट पर। वे कहते हैं, कि टाटा की नैनो को ले कर चीत्कार मच रहा है। पर सस्ता ट्रेक्टर बनाने की बात ही नहीं है भूमण्डलीकरण की तुरही की आवाज में। उस पोस्ट पर मेरा विचार कुछ यूं है:
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विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह हुआ है। यहां यूपी-बिहार में कोई इस दिशा में काम करे तो पहले रंगदारी और माफिया से निपटे। वो निपटे, उससे पहले ये उसे निपटा देंगे। उसके अलावा सौ लोगों के सामुहिक चरित्र का भी सवाल है। लोग सामुहिक लाभ के लिये काम करना नहीं जानते/चाहते। एक परिवार में ही मार-काट, वैमनस्य है तो सामुहिकता की बात बेमानी हो जाती है। फिर लोग नये प्रयोग के लिये एक साल भी सब्र से लगाने को तैयार नहीं हैं। मैं जानता हूं कि यह लिखने के अपने खतरे हैं। बुद्धिमान लोग मुझे आर्म-चेयर इण्टेलेक्चुअल या पूंजीवादी व्यवस्था का अर्थहीन समर्थक घोषित करने में देर नहीं करेंगे। पर जो सोच है, सो है। लोगों की सोच बदलने, आधारभूत सुविधाओं में बदलाव, मशीनों के फीच-फींच कर दोहन की बजाय उनके सही रखरखाव के साथ इस्तेमाल, उपज के ट्रांसपेरेण्ट मार्केट का विकास … इन सब से ट्रैक्टर का मार्केट उछाल लेगा। और फिर नैनो नहीं मेगा ट्रैक्टर की डिमाण्ड होगी – जो ज्यादा कॉस्ट-इफेक्टिव होगा। तब कोई टाटा-महिन्द्रा-बजाज अपने हाराकीरी की बात ही करेगा, अगर वह ध्यान न दे! और कोई उद्योगपति हाराकीरी करने पैदा नहीं हुआ है! क्या ख्याल है आपका? ~~~~~
दमदार काम में बच्चा ट्रैक्टर शायद ज्यादा फायदेमन्द नहीं है! एक हजार में उन्नीस किसानों के पास ही ट्रैक्टर है। लिहाजा बाजार तो है ट्रैक्टर का। पर बॉटलनेक्स भी होंगे ही। |
और पुछल्ले में यह मस्त कमेण्ट –
नये ब्लॉगर के लिये क्या ज्ञान दत्त, क्या समीर लाला और क्या फुरसतिया…सब चमेली का तेल हैं, जो नजदीक आ जाये, महक जाये वरना अपने आप में चमकते रहो, महकते रहो..हमें क्या!!!
फुरसतिया और समीर लाल के चमेली का तेल लगाये चित्र चाहियें।

सूरन खिला के चमेली तो गयी बाग में अब तेल लगा छुछूँदर बनके बैठनें के इलावा उपचार ही क्या?कुछ लोग होते हैं दिखते नहीं,कुछ लोग दिखते हैं होते नहीं।लेकिन आप आज इन्टेलीजेन्ट होते हैं।बेअदबी के लिए मुआफी चाहता हूँ।
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ह्म्म, बात तो आप यूपी-बिहार के मामले में सही कहे हैं!! और सामूहिक श्रम के बारे में भी, लोग वाकई साथ में काम करने लायक नहीं हैं, हर कोई सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना लाभ देखता है चाहे वह छोटा ही हो और बड़े लाभ की कीमत पर मिलता हो। लोग हज़ारपति बन कर खुश हो लेना चाहते हैं यह सोचे बिना कि साथ काम करें तो लखपति हो लें। जब तक वैमनस्य की भावना नहीं जाती तब तक लोग ऐसे ही विभाजित रहेंगे और माफ़िया का ऐसे ही राज रहेगा।खेती में इंडस्ट्रियलाइज़ेशन हो तो पैदावार काफ़ी बढ़ सकती है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन मुझे इसके आगे खेती के बारे में और उसकी मौजूदा स्थिति के बारे में अधिक ज्ञान नहीं इसलिए आगे कुछ कहना उचित न होगा।
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“ya very well suggested, nice artical to read”Regards
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मुझे लगता है भारतीयों में मूर्खतापूर्ण होड़ अधिक है। खेती-किसानी की पृष्ठभूमि कभी नहीं रही। फिर भी छोटा ट्रैक्टर भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त है इसीलिए सर्वे के बाद अंगद निकाला गया था। मगर वहीं होड़….पड़ोसी ने लिया इसलिए हम भी लेंगे बड़ा। विडम्बना देखिये कि भारतीय किसान के पास वैसे ही कम जोत वाली खेती होती है। पारिवारिक झगड़ों की वजह से और कम होती जाती है। ऐसे में बड़े ट्रैक्टर वैसे ही अनुपयोगी हैं। कहां तो हमारे खेतों को इन्सान द्वारा जोतने के कारुणिक उदाहरण मिलते हैं और कहां कर्ज लेकर ट्रैक्टर …यहां तक की ज़मीन का टुकड़ा बेचकर ट्रैक्टर लिया जाता है। विदेशों में बड़ी जोतें होती है। हमारे यहां चार कदम चले नहीं कि मेड़ आ गई। वहां मेड़ देखने के लिए बाइनाकुलर की ज़रूरत पड़ती है। बड़ी जोत के बावजूद वहां पावर टिलर खूब लोकप्रिय हैं जबकि हमारे यहां पावर टिलर के बारे में किसान अभी तक कम जानते हैं जबकि पावर टिलर एक ग़रीब किसान के दिन फेर सकता है। ग्रामीण पृष्ठभूमिवाले हमारे लठैत जनप्रतिनिधि ही खेत, खेती और किसान की बदहाली के जिम्मेदार हैं। ज्ञानदा, यह मेरा विषय नहीं है इसलिए चाहूंगा कि आप मेरे विचारों पर कुछ कहें। सही है या नहीं ?
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आपने सही लिखा है. मेरा मानना है, खेती पर निर्भर लोगो की सखंया को कम कर खेती को फायदे का काम बनाया जा सकता है. उसका आधुनिकिकरण किया जा सकता है. फिलहाल जरूरत से ज्यादा लोग इसमें घूसे हुए है.
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पहले छछूदर फिर चमेली का तेल -कुछ अजब गजब हो रहा है !
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” चमेली के मँडवे तले” ..(ये गीत याद आ गया )..पर होता तो बढिया है कोई शक्क !! :)और जोक्स अपार्ट, ट्रेक्टर नँदा परिवार के ऐस्कोर्टवाले भी बनाते थे ना …?अशोक जी की पोस्ट हमेँ बहुत पसँद आई ..आगे इस प्रकरण का इँतज़ार रहेगा- लावण्या
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चमेली का तेल बिक रहा है। ट्रैक्टर बन ही नहीं पा रहा! :)
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सही है गुरु.. चमेली का तेल भी, क्यूट वाली फोटू भी और यह पुसर भी.. तीनो मस्त.. :)
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बहुत अच्छा विचार है आपका . समाचार पत्रों के अनुसार नैनो का कारखाना लगवाने के लिए तो लाइन लगी थी और जो सुविधाएँ उद्योग लगाने पर उद्योगपतियों को मिल रही हैं वो तो ट्रक्टर का कारखाना लगाने पर भी मिलेंगी .रोज़गार के अवसर भी बहुत सारे उपलब्ध होंगे .दरअसल हिंदुस्तान के हिसाब से यह विचार अतिउत्तम है.
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