फिर निकल आयी है शेल्फ से काशी का अस्सी । फिर चढ़ा है उस तरंग वाली भाषा का चस्का जिसे पढ़ने में ही लहर आती है मन में। इसका सस्वर वाचन संस्कारगत वर्जनाओं के कारण नहीं करता। लिहाजा लिखने में पहला अक्षर और फिर *** का प्रयोग। शि*, इतनी वर्जनायें क्यों हैं जी! और ब्लॉगContinue reading “काशीनाथ सिंह जी की भाषा”