कल एक टिप्पणी मिली अमैच्योर रेडियो के प्रयोगधर्मी सज्जन श्री बी एस पाबला की। मैं उनकी टिप्पणी को बहुत वैल्यू देता हूं, चूंकि, वे (टिप्पणी के अनुसार) एक जुनूनी व्यक्ति लगते हैं। अपनी टिप्पणी में लिखते हैं –
“अकेले ही पॉपुलर मेकेनिक जैसी पत्रिकायों में सिर गड़ाये रखना, वो इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट्स के लिये दर दर भटकना (हमारे जैसे क्षेत्र में), लिखित जानकारी जुटाना, अमैच्योर रेडियो के लाइसेंस के लिये बार बार टेस्ट देना और फिर एक अनजानी सी भिनभिनाहट के साथ आती हजारों मील दूर से से आवाज ऐसा अनुभव देती थी जैसे अकेले हमीं ने मार्स रोवर बना कर मंगल की सैर की हो!
वह रोमांच यहाँ तीन क्लिक या तीन सेकेंड में ब्लॉग बना कर कहाँ मिलेगा?”
उनके प्रोफाइल से उनका ई-मेल एड्रेस ले कर मैने धन्यवादात्मक ई-मेल किया।
उत्तर में उनका जो ई-मेल आया, उसकी बॉटमलाइन बहुत रोचक है –
“कम्प्यूटर अविश्वसनीय रूप से तेज, सटीक और भोंदू है।
पाबला अविश्वसनीय रूप से धीमा, अस्पष्ट और प्रतिभावान है।
लेकिन दोनों मिलकर, कल्पना-शक्ति से ज़्यादा ताकतवर हैं!!”
इम्प्रेसिव! पर अफसोस, मैं और मेरा कम्प्यूटर मिल कर इतने इमैजिनेटिव और पावरफुल नहीं हैं! यद्यपि किसी जमाने में हम भी टेलीकम्यूनिकेशन इन्जीनियर हुआ करते थे! और धीमेपन में तो हमारी तुलना इल्ली घोंघा
(स्नेल) से करें!
मैं पाबला जी को मैच नहीं कर सकता, पर उनके ब्लॉग की प्रतीक्षा करूंगा। उनके ब्लॉग का नाम है – जिन्दगी के मेले। यह ब्लॉग अभी इनविटेशन पर है।
जीवन में जीवंतता के लिये क्या चाहिये? उत्कृष्टता का जुनून (A Passion for Excellence) ही शायद जरूरत है।

कभी हैम रेडियो के बारे में सुना था….आज भी केवल सुना ही है, कभी देखा नहीं….अच्छा ही होगा ।
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क्या चरचा हो रहा है? भाई हमे भी बताओ ?
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बी.एस.पाबला जी का स्वागत हम भी करते है। हिन्दी ब्लॉगजगत में आप जैसे उत्साही व्यक्तियों की अत्यन्त आवश्यकता है।
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@ श्री सागर नाहर – धन्यवाद। पोस्ट में उपयुक्त परिवर्तन कर दिया है!
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मेरा कम्प्यूटर तो बहुत पॉवरफुल है पर उसकी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा. बस नेट सर्फिंग और फ़िल्म देखने का काम ही हो पा रहा है. जीवंतता के लिये तो पता नहीं पर उत्कृष्टता का जुनून जरूरी है.
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जिसका फोटो लगा कर इल्ली बताया है वह इल्ली नहीं घोंघा है। :)
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बी एस पाबला का स्वागत है।पाबलाजी, कृपया अपना प्रोफ़ाइल update कीजिए।आपका स्वास्थ्य के लिए हमारी शुभकामनाएं।मुझे कोई Crisis नहीं दिखता।एक जमाने में हम चिट्टी लिखा करते थे, आज ई मेल भेज रहे हैंएक जमाने में ham radio का शौक था केवल कुछ लोगों के लिए जो इसकी विशेष जानकारी रखते थे, इसपर मेहनत करने के लिए तैयार थे और पैसे खर्च करने के लिए भी तैयार थे। आज हर कोई internet chat कर सकता है बिना पैसे खर्च किए। चिट्ठों की संखया बढ़ने लगी हैं। माना कि हर कोई नियमित रूप से लिखता नहीं तो क्या हुआ? नियमित रूप से लिखने वालों की संखया भी बढ़ रही हैं, उसी अनुपात में। जो प्रसन्नता हमें दूर से केसी से चिट्टी पाकर मिलती थी वही आज ई मेल प्राप्त होने पर मिलती है। (spam nuisance को हमें कुछ समय और सहन करना होगा लेकिन आशा है कि इसका और virus का भी समाधान एक दिन उपलब्ध होगा)तो कहाँ है Crisis?जिनके लिए ब्लॉग केवल शौक है, उनके लिए कोई crisis नहीं है। ब्लॉग लिखना और भी आसान हो जाएगा। अधिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। जैसे जैसे इंटरनेट का विकास होगा और speeds बढेंगे, Sound/video/picture embedding और भी आसान हो जाएंगे। जो इन सुविधाओं का कल्पनात्मक प्रयोग कर सकेंगे, वह अधिक सफ़ल होंगे। सफ़ल ब्लॉग्गर बनने के लिए यह आवशयक नहीं है की हर रोज़ कुछ लिखा जाए। सप्ताह में दो या तीन पोस्ट काफ़ी होना चाहिए। हाँ, यह अवश्य कहूँगा कि ब्लॉग से पैसे कमाने के इच्छुक को प्रतिस्पर्धा का डर रहेगा। वे ही लोग crisis के बारे में सोचेंगे। एक हफ़्ते से निजी मामले निपटाने में व्यस्त था। टिप्पणी कर नहीं सका।आशा है अब फ़िर से सक्रिय हो सकूँगा।शुभकामनाएं
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“कम्प्यूटर अविश्वसनीय रूप से तेज, सटीक और भोंदू है। पाबला अविश्वसनीय रूप से धीमा, अस्पष्ट और प्रतिभावान है। लेकिन दोनों मिलकर, कल्पना-शक्ति से ज़्यादा ताकतवर हैं!!” ” amezing superb….words”Regards
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पुराने ज़माने का इंटरनेट ही था हैम रेडियो…बढ़िया है…
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ज्यादा ताक़त भी अच्छी नही गुरूजी।
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