नीतिशतक मुझे मेरे एक मित्र ने दिया था। उनके पिताजी (श्री रविशकर) ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया है, जिसे भारतीय विद्या भवन ने छापा है। मैं उस अनुवाद के दो पद हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत कर रहा हूं –
२: एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।
४: कोई शायद रेत को मसल कर तेल निकाल सके; कोई मरीचिका से अपनी प्यास बुझा सके; अपनी यात्रा में शायद कोई खरगोश के सींग भी देख पाये; पर एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना असंभव है।

अरविन्द जी,दम्भी को खुश करने की जरूरत पड़ सकती है, यदि वह आपका बॉस निकल जाय। या परीक्षक ही बन कर आ जाय। सरकारी महकमें में रहकर भी आपको किसी दम्भी से पाला न पड़ा हो और उसे खुश करने की जरूरत न पड़ी हो ऐसा मैं नहीं मानता। :)
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सत्य वचन!yah sangrah kahan milega?Internet par kahin uplabdh hai to kripya link deejiyega.
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