भर्तृहरि का नीति शतक – दो पद


नीतिशतक मुझे मेरे एक मित्र ने दिया था। उनके पिताजी (श्री रविशकर) ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया है, जिसे भारतीय विद्या भवन ने छापा है। मैं उस अनुवाद के दो पद हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत कर रहा हूं –

२: एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।

४: कोई शायद रेत को मसल कर तेल निकाल सके; कोई मरीचिका से अपनी प्यास बुझा सके; अपनी यात्रा में शायद कोई खरगोश के सींग भी देख पाये; पर एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना असंभव है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

32 thoughts on “भर्तृहरि का नीति शतक – दो पद

  1. एक लंबे समय के बाद भरथरी (भर्तहरी) नीति शतक के बारे में पढ़ना बड़ा सुखकर लगा ! हमारी यह पुरातन पुस्तक निधियां, भारत की संस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं , और आज भी उतनी ही सार्थक हैं ! एक एक पद बार बार पढने का मन करता है !संयोग से आपके मित्र श्री विश्वनाथ के पिता श्री रविशंकर जी से, नॉएडा में पड़ोसी होने के नाते, मैं भली भांति परिचित हूँ ! ऋषि स्वभाव, ७५ वर्षीय श्री रविशंकर ने भर्तहरी रचित श्रंगार शतक और वैराग्य शतक का भी इंग्लिश अनुवाद करके, भारतीय संस्कृति के इन मोतियों को, विश्व के समक्ष लाने का महान प्रयास किया है ! उक्त पुस्तकों का प्रकाशन भी भारतीय विद्या भवन ने ही किया है ! अफ़सोस है कि उक्त नीतिशतक की प्रतिलिपियाँ बाज़ार में अब उपलब्ध नही हैं !इस खूबसूरत धरोहर की याद ताज़ा करने के लिए, आपका आभारी हूँ !

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  2. भर्तृहरि शतकम् व विदुरनीति संस्कृत के ऐसे प्रचलित नीति शतक हैं कि भर्तृहरि को तो लगभग सभी भारतीय भाषाओं का साहित्य अपने यहाँ का प्रमाणित करता है, व अनेक लोक कथाएँ स्वयम् भर्तृहरि के साथ प्रवाद सी जुड़ी हुई हैं। कोई आधुनिक काल का भी विरला संस्कृत का विद्यार्थी नहीं मिलेगा जिसने इसे न्यूनाधिक्य पढ़ा न हो।

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  3. कल बी बी सी पर एक रीपोर्ट देखी कि उच्च वर्गीय शुल मेँ ब्रिटीश बच्चोँ को सँस्कृत सीखाई जा रही है – और आज भर्तृहरी के ये दो सिध्धाँत पढकर सोच रही हूँ, क्यूँ ना अँग्रेज़ी माध्यम स्कुलोँ मेँ भीहमारी विरासत के अमूल्य नगीने भावि पीढी को सीखलायेँ जायेँ ? आम जनता को स्कुल बोर्ड से अनुरोध करना लाज्मी हो गया है अब – The common Folks need to demand such things from those in authority. To save the future generations …is what i feel .

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  4. यह तो झलक मात्र है. यह संख्या पांच होती तो..खैर . पूरा ग्रंथ कितना सुन्दर होगा ?

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  5. एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते। सत्य है ………

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