नीतिशतक मुझे मेरे एक मित्र ने दिया था। उनके पिताजी (श्री रविशकर) ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया है, जिसे भारतीय विद्या भवन ने छापा है। मैं उस अनुवाद के दो पद हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत कर रहा हूं –
२: एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी आसान है। पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते।
४: कोई शायद रेत को मसल कर तेल निकाल सके; कोई मरीचिका से अपनी प्यास बुझा सके; अपनी यात्रा में शायद कोई खरगोश के सींग भी देख पाये; पर एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना असंभव है।

आपकी पोस्ट पढकर हम तो और भी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं :)
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पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते। “” सच कहा, दम्भी अपने थोड़े ज्ञान की वजह से ना यहाँ का ना वहां का..”Regards
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सत्य वचन महाराज। दंभी ज्ञानी और मूर्ख में वैसे ज्यादा फर्क नहीं ना होता है। पर प्रसन्न करना ही काहे को, किसी को, खुदै ही प्रसन्न रहिये। दूसरों को प्रसन्न करने के चक्कर में लाइफ चौपट हो लेती है। कायदे से देखे, तो बंदा पूरी लाइफ अपनी बीबी को ही प्रसन्न नहीं ना कर पाता, औरों पे ट्राई ही क्यों करो। जिसे होना है, वो बिना कुछ किये प्रसन्न हो जायेगा, नहीं तो टाइम खोटी नहीं ना करना चाहिए। प्रसन्नता के मामले में बंदे को आत्मनिर्भर होना चाहिए। जमाये रहिये जी। दूर की खोज कर लाये हैं। ऐसे नीति शतक रोज लाइये।
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sir aapke blog par aakar kuch na kuch jaroor sikhta hoo. aapke nirdeshanushar maine mail me function ko apne blog me attach kar diya hai
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हम तो ढूंढ रहे है सर जी……. कोई ऐसा इंसान जो अपनी प्रशंसा से खुश ना हो………ना किसी का यू आर एल मिलता .ना असल जिंदगी में कोई मिलता ……मुर्ख हो या बुद्धिमान दोनों खुश हो जाते है…….
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प्रशंसा सबको प्रिय होती है, दम्भी को केवल वही चाहिए शायद. आज पोस्ट सार्थक रही.
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कोई शायद रेत को मसल कर तेल निकाल सकेएक वक्त था कि तेल का दाम १४० डालर प्रति बैरल था | तब कनाडा के आयल सैंड से तेल निकलता था | एक बड़ी सी मशीन रेत को खुरच के बड़े डब्बे में डालती जाती थी और फ़िर उसी से तेल निकलता था | अब ससुरा ४१ डालर प्रति बैरल के दिन देख रहे हैं, आयल सैंड वाले रो रहे हैं | यहाँ अमेरिका में ७२ रुपये में ३.७८ लीटर पेट्रोल | अब तो पास होने के नाम से भी डर लगता है की तेल कंपनी वाले कहाँ से नौकरी देंगे | अल्लाह खैर करे … :-)
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सत्य वचन।भर्त्रिहरि के नीतिवचनों का नाम तो बहुत सुना था, पर उन्हें पढने का मौका पहली बार मिला है। शुक्रिया।
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हमारे एक मित्र का कहना है ,जिसका बैंड बजाना हो उसकी भरपुर प्रशंसा किजीये वो अपने-आप निपट जायेगा।
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भर्तृहरि ने तीन शतकों की रचना की थी, श्रृंगार शतक, निती शतक और वैराज्ञ शतक ! अपने अपने क्षेत्र में इन तीनो से ऊपर आज तक कुछ भी नही लिखा गया ! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज भी जाने अनजाने इन्ही के अंतर्गत व्यवहारिक जीवन चल रहा है ! ये तीनो शतक भर्तृहरि महाराज के जीवन का अनुभव था कोई पुस्तकों की या साहित्य की रचना नही थी !महाराज भर्तृहरि के सदृश्य ना तो कोई प्रेमी हुआ, ना राजा हुआ और ना कोई योगी हुआ ! सक्षेप में ये उनके जीवन का निचोड़ है इसलिए हर जगह आज भी उपयुक्त है ! आज हमको इन अनुभवों की जरुरत है ! अच्छा किया आपने उनको याद किया ! रामराम !
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