मैं विफलता-सफलता की बात कर रहा था। सत्यम की वेब साइट, जो अब बड़ी कठिनाई से खुल रही थी (बहुत से झांकने का यत्न कर रहे होंगे), के मुख्य पन्ने पर बने विज्ञापन में एक छवि यूं है:
सफलता लक्ष्य/परिणाम पर सतत निगाह रखने का मसला है।
काश सत्यम ने यह किया होता।
सत्यम छाप काम बहुत सी कम्पनियां कर रही होंगी। और आस पास देखें तो बहुत से लोग व्यक्तिगत स्तर पर उस प्रकार के छद्म में लिप्त हैं। अन्तर केवल डिग्री या इण्टेंसिटी का है। मिडिल लेवल इण्टेंसिटी वाले “सत्यमाइज” होते हैं। बड़े पापी मार्केट लीडर हो जाते हैं। छोटे छद्म वालों को कोई नोटिस नहीं करता।
बाइबल की कथा अनुसार पतिता को पत्थर मारने को बहुत से तैयार हैं। पहला पत्थर वह मारे जो पाक-साफ हो!
सत्यम का शेयर ३९-४० रुपये पर बिक रहा है। खरीदने वाले तो हैं। सब पत्थर मार रहे हैं तो कौन खरीद रहा है?


कौन कंपनी ऐसी है जिस में फर्जीवाड़ा नहीं है? तीस साल में कितनी कंपनियों की बैलेंस शीटें देखी हैं। देखने और कमेंट पढ़ने भर से पता लग जाता है कि कहाँ घोटाला है। पता नहीं इतने सीए और अर्थ विशेषज्ञ उन्हें पढ़ क्यों नहीं पाते हैं?
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हम तो खैर मना रहे हैं कि सत्यम के शेयर पहले ही लॉस खाकर बेच दिए नहीं तो लुटिया डूब जाती :)
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सत्यम बड़ा नाम था, जब कालेज में पहली बार आयी(सन् 2005) तो हर आई. टी. का छात्र-छात्रा चाहता था कि वहाँ काम कर, पर पिछ्ले साल सुनने में आया कि कंपनी बाण्ड राशि रक़म 2 लाख रुपये पहले ही धरवा रही है… अब समझ आया माज़रा!—मेरा पृष्ठगुलाबी कोंपलें
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रातो रात ब्लूचिप और नवरत्न कम्पनीं बननें के लिए न जानें कितनें सत्यम होंगे जिन्होंने कौन कौन से पाप किये होंगे,कौन जानता है?लेकिन एक बार यह फिर चौंकानें वाला तथ्य सामनें आया है कि कांग्रेस शासन काल में ही ऎसे कुकर्म ज्यादा होते हैं चाहे वह हर्षद मेहता काण्ड़ हो तेलगी हो या फिर सत्यम।सबसे दुःखद तो यह है कि जहाँ नियोजकों का पैसा डूबनें की स्थिति आ गयी है वहीं ५२ हजार कर्मचारियों और उन पर निर्भर परिजनों का भविष्य भी संकटग्रस्त हो गया है। वह भी इस मंदी के काल में। लेकिन एक बार फिर भ्रष्टाचार देश को मुँह चिढ़ा रहा है,क्या चारटर्ड़ एकाउन्टेन्टस्,कम्पनीं सेक्रेट्रीज़,एड़्वोकेटस कम्पनीं लाँ बोर्ड़ और राजनेंताओं की मिली भगत के बिना यह संभव हो सकता है/था?
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हारने से पहले शिबू सोरेन – सीट डाउन ऑन कुर्सी।हारने के बाद – सीट डाउन ऑन भुईंया ( जमीन)। अब दरी-बिछौना लेकर बैठेंगे या ऐसे ही भुईंया बैठेंगे – बूझने वाली बात है। वैसे सत्यम के राजू भी कहीं दरी-चादर ढूँढ रहे हैं, का पता इस वक्त बिछाकर बैठने से ज्यादा ओढने में मजा हो, ……ओढने लोगों की नजरों से बचे जो रह सकेंगे, लेकिन पब्लिक है कि चादर में कोंच लगाकर कहेगी – ए राजू …. तनिक हेने आवा :)
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शेखावत जी और शिबू सोरेन जैसे कारनामें तो आम हैं। लेकिन सत्यम का हाल सुनकर लगता है कि ये सब स्मार्ट से लगने वाले लोग पलीता ही लगाते रहते हैं क्या!
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आज की पोस्ट का आज के विचार से कुछ मेल बैठता है क्या ? आलोक पुराणिक जी विराजमान हैं वहां…वैसे सत्यम प्रमुख को अब साईं शरण में चले जाना चाहिए…(हम पुट्टपर्थी की बात नहीं कर रहे हैं)
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अभी उनके शेयर खरीदने वाले भी सत्यम शिवम सुन्दरम में से ही हैं. बड़ा जहाज डूबा है, आगे शेख चिल्लियों का तमाशा देखियेगा.
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ज्ञानजी, भारत की किसी राजनीतिक पार्टी को एक और लीडर मिल गया है, अभी फिलहाल मोल भाव चल रहा होगा (जैसा कहा जा रहा है इंवेस्टिगेशन चल रहा है) उसकी बिना पर ही तय किया जायेगा क्लीन चिट देने ना देने का। संजू बाबा को तो मुलायम अमर ले उड़े देखना ये है कि यहाँ कौन बाजी ले जाता है।
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मुझे यह अर्थ की कारगुजारियां समझ में ही नहीं आतीं, इसलिये इस पोस्ट पर केवल इतना ही – ” पहला पत्थर वह मारे जो पाक-साफ हो! “
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