मन्दी


मेरी पत्नी होली विषयक अनिवार्य खरीददारी करने कटरा गई थीं। आ कर बताया कि इस समय बाजार जाने में ठीक नहीं है। बेतहाशा भीड़ है। मैने यह पूछा कि क्या मन्दी का कुछ असर देखने को नहीं मिलता? उत्तर नकारात्मक था।

मेरा संस्थान (रेलवे) बाजार से इन्सुलर नहीं है और मन्दी के तनाव किसी न किसी प्रकार अनुभूत हो ही रहे हैं।

शायद इलाहाबाद औद्योगिक नहीं सरकारी नौकरों की तनख्वाह और निकट के ग्रामीणों के पैसे पर निर्भर शहर है और यहां मन्दी का खास असर न हो। पर बीबीसी हिन्दी की साइट पर नौकरियां जाने की पीड़ा को ले कर धारावाहिक कथायें पढ़ने को मिल रही हैं। मुझे अहसास है कि हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। होली के रंग बहुत चटख नहीं होंगे। 

 Vishwanath in 2008
जी विश्वनाथ

श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी ने अपने बीपीओ/केपीओ वाले बिजनेस को समेटने/बेचने और उसी में तनख्वाह पर परामर्शदाता बनने की बात अपनी टिप्पणी में लिखी थी। वे रिलीव्ड महसूस कर रहे थे (उनके शब्द – “The feeling is more of relief than sadness or loss”)। पर उनकी टिप्पणी से यह भी लगता है कि व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं और भारत भी अछूता नहीं है। भूमण्डलीकरण से अचानक हम इन्सुलर होने और कृषि आर्धारित अर्थव्यवस्था के गुण गाने लगे हैं। यह भी हकीकत है कि कृषि अपेक्षित विकास दर नहीं दे सकती। मन्दी के झटके तो झेलने ही पड़ेंगे।

सरकारी कर्मचारी होने के नाते मुझे नौकरी जाने की असुरक्षा नहीं है। उल्टे कई सालों बाद सरकारी नौकरी होना सुकूनदायक लग रहा है। पर मेरा संस्थान (रेलवे) बाजार से इन्सुलर नहीं है और मन्दी के तनाव किसी न किसी प्रकार अनुभूत हो ही रहे हैं।

यह मालुम नहीं कितनी लम्बी चलेगी या कितनी गहरी होगी यह मन्दी। पर हिन्दी ब्लॉगजगत में न तो इसकी खास चर्चा देखने में आती है और (सिवाय सेन्सेक्स की चाल की बात के) न ही प्रभाव दिखाई पड़ते हैं। शायद हम ब्लॉगर लोग संतुष्ट और अघाये लोग हैं।

इस दशा में बीबीसी हिन्दी का धारावाहिक मुझे बहुत अपनी ओर खींचता है। 

Bharatlal

भरतलाल से मैने पूछा – कहीं मन्दी देखी? वह अचकचाया खड़ा रहा। बारबार पूछने पर बोला – का पूछत हयें? मन्दी कि मण्डी? हमके नाहीं मालुम! (क्या पूछ रहे हैं? मन्दी कि मण्डी? हमें नहीं मालुम!) 
यह इंस्टेण्ट रियेक्शन है सरकारी आदमी का! 
@@@भरतलाल ने घोर गरीबी और उपेक्षा देख रखी है। उसकी लिखें तो बड़ा उपन्यास बन जाये। पर मन्दी? यह क्या बला है?!


Papadमेरी अम्मा होली की तैयारी में आलू के पापड़ बनाने में लगी हैं। गुझिया/मठरी निर्माण अनुष्ठान भी आजकल में होगा – मां-पत्नी के ज्वाइण्ट वेंचर से।

आपको होली मुबारक।

पिछली पोस्ट – एक गृहणी की कलम से देखें।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

34 thoughts on “मन्दी

  1. मंदी की चर्चा ब्लॉगजगत में न देखकर मुझे भी थोडी हैरानी हुई मगर मुझे लगा शायद अपने गायब रहने की वजह से मुझे पता नहीं चला होगा मगर मुझे नहीं लगता कि जिन लोगों को मंदी की चपेट लगी है या जो इससे बहुत प्रभावित हुए हैं, ऐसे लोगों की उपस्थिति हिंदी ब्लॉगजगत में ज्यादा है. जो हैं, मेरी तरह, उनकी सिट्टी-पिट्टी मेरी ही तरह गम है और ब्लॉगजगत से गायब रहेने का सबब भी यही मंदी है. हो सकता है मेरा मत गलत हो.

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  2. आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

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  3. होली की मुबारकबाद,पिछले कई दिनों से हम एक श्रंखला चला रहे हैं “रंग बरसे आप झूमे ” आज उसके समापन अवसर पर हम आपको होली मनाने अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करते हैं .अपनी अपनी डगर । उम्मीद है आप आकर रंगों का एहसास करेंगे और अपने विचारों से हमें अवगत कराएंगे .sarparast.blogspot.com

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  4. मन्‍दी का प्रभाव उतना व्‍यापक अनुभव नहीं होगा जितना अखबारों में देखने/पढने को मिलता है। हमारे बैंकों ने, अमरीकी बैंकों की तरह ‘सब प्राइम लोन’ नहीं दिए, सो हमारा बेडा गर्क नहीं हुआ। मध्‍यम वर्ग की ‘बचत की मानसिकता’ ने इस दौर में जो ताकत पूरे देश को दी है उसकी कल्‍पना भी कोई नहीं कर पा रहा है।निस्‍सन्‍देह, मन्‍दी का प्रभाव है तो अवश्‍य किन्‍तु उतना नहीं, जितना चर्चाओं में, अखबारों में है। यह हमारे परम्‍परावादी (और कुछ सीमा तक रूढीवादी) होने का प्रतिफल भी है।ब्‍लागर अघाए हुए लोग हैं या नहीं किन्‍तु मन्‍दी से प्रत्‍यक्षत: प्रभावित तो नहीं ही हैं।

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  5. हम दाल रोटी वाले ब्लागर हैं। खाये-पिये अघाये नहीं। लोगों से सरकारी नौकरी के रोने सुनते मुझे २० सालहो गये। लेकिन ऐसे लोग बीस भी नहीं मिले जो नौकरी छो़ड़कर गये हों कहीं।होली मुबारक। गुझिया बनवाने के किस्से लिखे जायें!

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  6. Aapke blogpe pehlee baar aayee hun..bohot achhaa laga padhke….Haan…kaisee vidambana hai….Jo aapne kathan kee….!Roman hindi me likh rahee hun, isliye, dono shabon ke hijje ekhee honge…!Aapko aur aapke sabhee blog ke doston ko tyohaar kee hardik shubhkaamnayen..!

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  7. टिप्पणी लिखी थी पता नहीं कहा गयी, फ़िर से लिख रही हूँ ।आप ने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया, इस बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने भी कह दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद ये मंदी का सबसे खतरनाक दौर है, और ग्रेट डिप्रेशन एक बार फ़िर से हमारे द्वार खड़ा है। हां हम सरकारी नौकर कुछ हद तक बचे हुए तो है पर डरे हुए भी हैं। दूसरों के घर के मनहूसी छायी हो तो अपने घर मस्ती कैसे छा सकती है।खैर , आप को सपरिवार होली की शुभकामनाएं।आलू के पापड़? अब भी बनते हैं? प्लीईईईईइज मुझे रेसीपी दिला देगें क्या? बहुत साल हो गये खाये हुए? ये ब्लोगजगत और क्या क्या याद दिलवायेगा हमें?…।:)

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  8. आप ने बहुत सही मुददा उठाया है, मंदी के बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने कहना शुरु कर दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद का ये सबसे खराब दौर है, यानि के एक और डिप्रेशन सर पर है। हम सरकारी नौकरी वाले कुछ हद्द तक बचे हुए हैं लेकिन डरे हुए हैं। बहुत जल्द इसके बारे में लिखेगें। आलू के पापड़? क्या अब भी बनते हैं? प्लीईईईईईइज हमें रेसिपी दिला दिजीए न, बहुत साल हो गये खाये। और क्या क्या याद दिलायेगा ये ब्लोगजगत मुझे?………:)

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  9. आपको एवम आपके सपरिवार को हे प्रभु के पुरे परिवार, कि तरफ से भारतीय सस्कृति मे रचा- बसा, “होली” पर्व पर घणी ने घणी शुभकामनाऐ :)(: )(::

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