लाइफ पत्रिका ने अपनी फोटो आर्काइव गूगल सर्च के माध्यम से उपलब्ध कराई है – व्यक्तिगत और नॉन-कमर्शियल प्रयोग के लिये।
मुझे यह आभा गांधी की फोटो बहुत अच्छी लगी। मारग्रेट बुर्के-ह्वाइट का सन १९४६ में लिया गया यह चित्र आभाजी को पुराने और नये मॉडल के चर्खे के साथ दिखाता है। कितनी सुन्दर लग रही हैं आभाजी। मैने ज्यादा पता नहीं किया, पर बंगला लड़की लगती हैं वे। और यह फोटो देख मेरा मन एक चरखा लेने, चलाने का होने लगा है।
Location: Delhi, India
Date taken: May 1946
Photographer: Margaret Bourke-White
और यह देखिये गांधीजी प्रेसिडेण्ट हर्बर्ट हूवर के साथ। बापू ने थोड़ी लाज रख कर कमर से ऊपर धोती ओढ़ ली है:
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जी विश्वनाथ: मंदी का मेरे व्यवसाय पर प्रभाव

दुर्लभ ! चरखा तो नहीं तकली एक-दो बार जरूर ट्राई किया है.
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Nice pictures.
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शुक्र है, गांधी चर्चा ‘नीलामी’ से अन्य सन्दर्भ में हुई।गांधी आज केवल भारत की ही नहीं, समूचे विश्व की अनिवार्यता हैं। उनका रास्ता की समूची मानवता की बेहतरी का रास्ता है।मैं खुद चरखा नहीं कातता हूं किन्तु आपसे अनुरोध कर रहा हूं कि आपके मन में चरखा लेने का भाव आया है तो चरखा अवश्य लीजिए किन्तु कातने के लिए, ड्राइंग रूम की सजावट के लिए नहीं।यदि ऐसा कर सकें तो अपने अनुभव अवश्य बताइएगा।
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nice pictures
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अब तो आप जो भी लिख देंगे टिप्पणीकार महानुभाव लाइन लगा देंगे। एक दूसरे पर गिर पड़ेंगे। यह उपलब्धि हासिल करने में जरूर आपने बड़ी मेहनत की होगी। ठीक वैसे ही जैसे गान्धी बाबा ने की थी। तभी तो उनका चरखा आज भी आभा जी को खूबसूरत बना दे रहा है। नेहरू जी ने गान्धी के कुटीर उद्योग की अवधारणा हवा में उड़ा दी थी । बड़े-बड़े उद्योगों को भारत का मन्दिर बताया था …लेकिन गान्धी नाम के साथ कुछ भी चल जाएगा जी। जैसे यह पोस्ट।
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