टूटा मचान खूब मचमचा रहा है। सदरू भगत चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उसकी टूटी मचिया पर। पर जितनी बार ट्राई मारते हैं, उतनी बार बद्द-बद्द गिरते हैं पठकनी के बल। आलू-परवल का चोखा खा कर इण्टेलेक्चुअल बनने चले हैं लण्ठ कहीं के!
सदरुआइन बार बार कहती हैं कि तोहरे सात पुश्त में कौनो इण्टेलेक्चुअल रहा; जौन तुम हलकान किये जा रहे हो जियरा! इतना हलकान हम पर किये होते तो सिलिमडाक जैसी फिलिम बना दिये होते। रह गये बौड़म के बौड़म!
टूटा मचान भविष्यवाणी करता है – इण्टेलेक्चुअल बनना है तो दलितवादी बनो, साम्यवादी बनो। समाजवादी भी चलेगा। पर भगतवादी बनने से तो आरएसएस के भलण्टियर से ज्यादा न बन पाओगे! कौनो करीयर न बनेगा – न साहित्त में, न राजनीति में न साइकल का ही!
टूटा मचान की चिथड़ी पॉलीथीन की ध्वजा फहरा रही है। पर यह चिरकुट ही कहते हैं कि हवा बह रही है या ध्वजा फहरा रही है। इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है।
मन को टूटे मचान पर एकाग्र करो मित्र! पंगेबाजी में क्या धरा है!
बताओ, कबीर एमबीए भी न थे! यह मुझे शिवकुमार मिश्र की इसी पोस्ट की टिप्पणी से पता चला! :
सदरू भगत अगर अनपढ़ हैं तो क्या हुआ? कबीर कौन सा बीए, एमए पास किये थे? सुना है एमबीए भी नहीं पास कर पाए थे। कबीर का लिखा पढ़कर न जाने कितने इंटेलेक्चुअल गति को प्राप्त हो गए!

इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है। मेरी नजर में आप ऐसे इकलौते ब्लॉगर हैं, जो नए नए कोटेशन गढते रहते हैं।
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बात तो घणी चोखी कही जी आपने. अब सदरू भगत और रमदेई भी स्टार हो रहे है.रामराम.
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इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है। -गहन चिंतन है Sir जी आज!–नीरज जी की बात पर भी ध्यान दिजीयेगा.. अम्मा जी की बनाई गुजिया की तस्वीर ही दिखा देते आप कम से कम!यूँ bhi घर की बनी गुजिया खाए /देखे साल हो गया -खुद बनाने में बहुत आलस आता है!:D
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कमाल है, सदरू भगत ने किताब कब से लिखना शुरू कर दिया जबकि उन्हें मैंने अनपढ ही गढा है। उनकी सदरूआईन यानि रमदेई भी क्या इतनी इसमारट हो गई है कि सिलमडाक तक झाड कर रख दे। लगता है सदरू भगत का कोई और Version Develop हो रहा है :)जय हो सदरू भगत की :)
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प्रणामपवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है। मन तो चंचल है , उसे चंचल ही रहने दिया जाये , बाकि तो दिमाग का फितूर है चलता ही रहेगा .
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अरे वाह,ये तो एक नया चैनल चालू कर दिया आपने, :-)वैसे आपने होली पर कोई पोस्ट नहीं लिखी, कम से कम घर पर बने पापड/चिप्स/गुंजिया की फ़ोटो ही दिखा देते :-) इलाहाबाद वालों ने आपको जमकर रंग लगाया कि नहीं ?
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आर एस एस के तीन काम भोजन बैठक और विश्राम
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जो भी हो सामने तो हो…..ये क्या की बाहर सामाजवादी ओर अन्दर से हांफ पेंटिया ….कम से कम इस मामले में हांफ पेंटिया अच्छे है जो सामने है वाही भीतर है .वैसे भी मुलायम जैसे समाजवादी ओर बंगाल के कोम्मुनिस्तो को देखकर अब किसी वाद से डर लगने लगा है …..अभिव्यक्ति से डर काहे ????
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अरे यहाँ तो कुछ और ही लिखा है । हम शीर्षक देख कर कुछ और ही समझे थे ।
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ठीक है जी, जिसको जो कहना है कहे. मात्र हाफ पेंटिये कहलाने के डर से चुप काहे रहें? :) चिंतन सही है.
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